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बाल श्रम

कानून व्दारा निर्धारित आयु से कम आयु के व्यक्ति के श्रम करने को बाल श्रम कहते हैं. खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की उम्र में कोई बच्चा अगर श्रम करने को मजबूर हो जाए तो समाज प्रगति नहीं कर सकता. अक्सर गरीब परिवारों के बच्चे परिवार की आय को बढ़ाने के लिए श्रम करने के लिये मजबूर हो जाते हैं. इसी प्रकार अनाथ बच्चे और घर से भागे हुए बच्चे भी जीवन यापन के लिए श्रम करने को मजबूर होते हैं. बाल श्रम न केवल समाज के लिए अभिशाप है बल्कि मानवाधिकारों का हनन भी है. प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक विकास का अधिकार है. यह सारे अधिकार और स्कूल, खेल, प्यार-स्नेह, आत्मीयता आदि बाल श्रमि‍कों के लिये केवल कल्पना की वस्तु, हैं.

बालश्रम का प्रारंभ औद्योगिक क्रांति से हुआ. कार्ल मार्क्स ने ब्रिटेन के कारखानों में बाल श्रम अतिभयंकर स्वरूप का वर्णन किया है. वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, भारत में बाल श्रमिकों की संख्या लगभग 1.26 करोड़ थी. यह संख्या सरकार के प्रयासों से कम हुई है, परन्तु 2011 की जनगणना के अनुसार भी भारत में लगभग 43.53 लाख बाल श्रमि‍क हैं. छत्तीसगढ़ में 2001 की जनगणना के अनुसार 3.64 लाख बाल श्रमिक थे जिनकी संख्या 2011 में कम होकर 63,884 हो गई है. इनमें से लगभग 60% बाल श्रमिकों की आयु 10 वर्ष से भी कम है. लगभग 36% बच्चे घरेलू कार्य में लगे हुए हैं. शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बच्चे होटलों और ढ़ाबों में काम करते हैं. कुछ चिथड़े उठाने एवं सामानों की फेरी लगाने में संग्लन हैं. बहुत से बच्चे जोखिम वाले उद्यमों और हानिकारक प्रदूषित कारखानों में काम करते हैं. कई कारखानों में तो 1200 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक ताप पर जलती हुई भट्टियां हैं. आर्सेनिक और पोटेशियम जैसे खतरनाक रसायन हैं. काम करते हुए उनका बदन दुखता है, दिल रोता है और आत्मा दुखी रहती है, लेकिन फिर भी उन्हें 12 से 15 घंटे लगातार काम करना पड़ता है. कूड़े के ढ़ेर से सामग्री इकट्ठा करने वाले बच्चे कई खतरनाक और संक्रामक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं.

बाल श्रम के प्रमुख कारण

  1. गरीबी
  2. सभी बच्चों की शिक्षा तक पहुंच न होना
  3. सामाजिक आर्थिक पिछड़ापन
  4. बीमारी, नि:शक्त्ता और नशा आदि में फंस जाना
  5. कानून का ठीक प्रकार से पालन न होना
  6. सस्ते श्रमिक प्राप्त करने की चाहत
  7. पारिवारिक परंपराएं
  8. लड़का एवं लड़की के बीच भेदभाव

भारत में बालश्रम को रोकने के लिए संवैधानि‍क प्रावधान

  1. अनुच्छेद 21 क – शिक्षा का अधिकार राज्य छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले सभी बालकों नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का ऐसी रीति में, जो राज्य: विधि व्दारा, अवधारित करे, उपबंध करेगा.
  2. अनुच्छेद 24 – कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध 14 वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिये नियोजित नहीं किया जायेगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जायेगा.
  3. अनुच्छेद 39 (च) बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ‍ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएं और बालको और अल्प‍वय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए.

बालश्रम के विरुध्द अन्य विधिक प्रावधान

  1. बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल-मज़दूरी की समस्या और उससे निज़ात दिलाने हेतु उपाय सुझाने के लिए 'गुरुपाद स्वामी समिति' का गठन किया था. इस समिति की सिफारिशों के आधार पर यह अधिनियम लागू किया गया. इस अधिनियम में 14 वर्ष की आयु से कम के किसी भी व्यक्ति को बालक परिभाषित किया गया है और बालकों का घरेलू कार्य सहित किसी भी कार्य में नियोजन पूर्णत: प्रतिबंधित है. इसके अतिरिक्त 14 वर्ष से 18 वर्ष तक की आयु के व्यक्तियों को किशोर कहा गया है. किशोरों का खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रियाओं में नियोजन प्रतिबंधित है. इन खतरनाक व्यवसायों की सूची अधि‍नियम की अनुसूची में दी गई है. कोई भी व्यक्ति जो १४ साल से कम उम्र के बच्चे से काम करवाता है अथवा १४-१८ वर्ष के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रिया में काम देता है, उसे ६ महीने – २ साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है और साथ ही २०,००० -५०,००० रूपए तक का जुर्माना भी हो सकता है. परन्तु १४ वर्ष से कम आयु के बच्चों को ऐसे पारिवारिक व्यवसाय में नियोजित किया जा सकता है जिनका संचालन किसी करीबी रिश्तेदार (माता, पिता, भाई या बहन) या दूर के रिश्तेदार (पिता की बहन और भाई, या माँ के बहन और भाई) व्दारा किया जाता है. पारिवारिक व्यापार इस क़ानून के तहत परिभाषित खतरनाक प्रक्रिया या पदार्थ से जुड़ा नही होना चाहिए. सामान्यतः बच्चों के माता-पिता /अभिभावकों को अपने बच्चों को इस कानून के विरुध्द काम करने की अनुमति देने के लिए सज़ा नहीं दी जाती है परन्तु यदि किसी १४ वर्ष से कम आयु के बच्चे को व्यावसायिक उद्देश्य से काम करवाया जाता है या फिर किसी १४-१८ वर्ष की आयु के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रिया में काम करवाया जाता है तो यह प्रतिरक्षा लागू नहीं होती और उन्हें सज़ा दी जा सकती है. क़ानून उन्हें अपनी भूल सुधारने का एक अवसर देता है. यदि वह ऐसा करते हुए पहली बार पकड़े जाते हैं तो वह इसे समाधान/समझौते की प्रक्रिया से निपटा सकते हैं, पर यदि वह फिर से अपने बच्चे को इस क़ानून का उल्लंघन करते हुए काम करवाते हैं तो उन्हें १०,००० रूपए तक का जुर्माना हो सकता है. इस क़ानून का उल्लंघन करने वाली परिस्थितियों से जिन बच्चों को बचाया जाता है उनका नए कानून के तहत पुनर्वास किया जाना चाहिए. ऐसे बच्चे जिन्हें देख-भाल और सुरक्षा की आवश्यकता है, उन पर किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा) अधिनियम २०१५ लागू होता है.
  2. फैक्टरी कानून 1948 यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिध्द करता है. 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किये जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो. इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गयी है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है.
  3. खान अधिनियम 1952 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के खानों में नियोजन को प्रतिबंधित करता है.
  4. निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 यह अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ. अधिनियम में निम्नलिखित प्रावधान हैं -
    1. किसी पड़ौस के स्कू्ल में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिए बच्चों का अधिकार.
    2. 'अनिवार्य शिक्षा' का तात्पर्य छह से चौदह आयु समूह के प्रत्येक बच्चे को निशुल्क प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने और अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने को सुनिश्चित करने के लिए संबंधि‍त सरकार की बाध्यता से है.
    3. 'निशुल्क ' का तात्पर्य यह है कि कोई भी बच्चा प्रारंभिक शिक्षा को जारी रखने और पूरा करने से रोकने वाली फीस या प्रभारों या व्ययों को अदा करने का उत्तरदायी नहीं होगा.
    4. यह गैर-प्रवेश दिए गए बच्चे के लिए उचित आयु कक्षा में प्रवेश किए जाने का प्रावधान करता है.
    5. यह निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने में उचित सकारों, स्थानीय प्राधिकारी और अभिभावकों कर्त्तव्यों और दायित्वों और केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच वित्तीय और अन्य जिम्मेदारियों को विनिर्दिष्ट करता है.
    6. यह, अन्य के साथ-साथ, छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर), भवन और अवसंरचना, स्कूल के कार्य दिवस, शिक्षक के कार्य के घंटों से संबंधित मानदण्डों और मानकों को निर्धारित करता है.
    7. यह राज्य या जिले अथवा ब्लॉक के लिए केवल औसत की बजाए प्रत्येक स्कूल के लिए रखे जाने वाले छात्र और शिक्षक के विनिर्दिष्ट अनुपात को सुनिश्चित करके अध्यापकों की तैनाती के लिए प्रावधान करता है, इस प्रकार यह अध्यापकों की तैनाती में शहरी-ग्रामीण संतुलन को सुनिश्चित करता है.
    8. यह दसवर्षीय जनगणना, स्थानीय प्राधिकरण, राज्य विधान सभा और संसद के लिए चुनाव और आपदा राहत को छोड़कर गैर-शैक्षिक कार्य के लिए अध्यापकों की तैनाती का भी निषेध करता है.
    9. यह उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रावधान करता है अर्थात अध्या‍पक में अपेक्षित शैक्षिक योग्यिताएं होना अनिवार्य है.
    10. यह निम्नलिखित का निषेध करता है –
      1. शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न;
      2. बच्चों के प्रवेश के लिए अनुवीक्षण प्रक्रियाएं;
      3. प्रति व्यक्ति शुल्क;
      4. अध्यापकों व्दारा निजी ट्यूशन और
      5. बिना मान्यता के स्कूलों को चलाना

बाल श्रम नीति

बाल श्रम के मुद्दे पर सरकार ने अगस्त, 1987 में राष्ट्रीय बाल श्रम नीति बनाई. इस नीति के तीन मुख्य घटक हैं :

  1. कानूनी कार्य योजना – विभिन्न श्रम कानूनों के अंतर्गत बाल श्रम से संबंधित कानूनी प्रावधानों को कठोरतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना.
  2. सामान्य विकास कार्यक्रम पर ध्यान देना – जहाँ तक संभव हो विभिन्न मंत्रालयों/विभागों व्दारा बाल श्रमिकों के कल्याण के लिए चलाए जा रहे विकास कार्यक्रमों का उपयोग करना.
  3. परियोजना आधारित कार्य योजना – जिन क्षेत्रों में बाल-श्रमिकों का प्रभाव अधिक है उन क्षेत्रों में कार्यरत बच्चों के लिए योजनाएँ बनाना.

राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना

  1. यह बाल श्रमिकों के पुनर्वास की योजना है.
  2. परियोजना की निगरानी, देखरेख और मूल्यांकन के लिए एक केन्द्रीय निगरानी समिति बनाई गई है. इसके अध्यक्ष श्रम और रोजगार मंत्रालय के सचिव हैं और राज्य सरकारों तथा संबध्द मंत्रालयों /विभागों के प्रतिनिधि इसके सदस्य हैं.
  3. छह वर्ष से अधिक आयु के बालक जिन्होने स्कूल में प्रवेश नहीं लिया है, उन्हें पहचान कर आर.टी.ई. अधि‍नियम में स्कूल में प्रवेश दिलाया जाता है.
  4. इस योजना के अंतर्गत जिला स्तर पर गठित परियोजना समितियों को बाल मजदूरों के पुनर्वास के लिए विशेष स्कूल / पुनर्वास केन्द्र खोलने के लिए पूरी आर्थिक सहायता दी जाती है.
  5. यह विशेष स्कूल / पुनर्वास केन्द्र ऐसे बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा, व्यवसायिक प्रशिक्षण, पूरक पौष्टिक आहार, छात्रवृत्तियां आदि देते हैं.
  6. सर्वेक्षण के दौरान जिन बाल मजदूरों की पहचान की जाती हैं उन्हें विशेष स्कूलों में डाला जाता है और निम्न सुविधाएं दी जाती हैं -
    1. अनौपचारिक/औपचारिक शिक्षा, हुनर/शिल्प प्रशिक्षण,
    2. पाँच रुपये प्रति बच्चा प्रति दिन के हिसाब से पूरक पौष्टिक आहार,
    3. सौ रूपये मासिक प्रति बच्चा छात्रवृत्ति और स्वास्थ्य सुविधाएं, जिसके लिए 20 स्कूलों के समूह पर एक डाक्टर नियुक्त किया जाता है.

स्वतंत्रता के पूर्व भारत में बाल श्रम संबंधी कानून

  1. बाल श्रम से संरक्षण देने वाला पहला कानून भारतीय कारखाना अधिनियम, 1881 है जिसमें 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों के कार्य के घंटे प्रतिदिन अधिकतम 9 घंटे निर्धारित किए गए थे, और माह में 4 दिन की छुट्टी अनिवार्य की गई थी. इसके बाद समय-समय पर इस कानून में सशोधन करके बाल श्रमिकों की हालत में सुधार के प्रयास किए गए.
  2. खान अधिनियम 1901 में 12 वर्ष की आयु से कम के बच्चों का खानों में नियोजन प्रतिबंधित किया गया. इसके बाद इन कानून में समय-समय पर संशोधन करके बाल श्रमिकों की हालत में और सुधार किया गया.
  3. चाय ज़ि‍ला आव्रजन श्रमिक अधिनियम 1933 में प्रावधान किया गया कि 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों को तब तक ज़ि‍ले में आव्रजित और नियोजित नही किया जाएगा जब तक वे अपने माता-पिता अथवा ऐसे किसी वयस्क रिश्तेदार के साथ न हों जिनपर वे निर्भर हैं.
  4. बालक (श्रम के लिये बंधक करना) अधिनियम 1933 गरीबी और ऋण से ग्रसित माता-पिता व्दारा ऋण के एवज़ में अपने बच्चों को श्रम के लिये बंधक रखने को प्रतिबंधित करने के लिये बनाया गया था.

बाल श्रम और संयुक्त राष्‍ट्र संघ

  1. बाल श्रम निषेध दिवस अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा बाल श्रम के उन्मूलन हेतु वैश्विक स्तर पर 12 जून 2002 में विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाने की प्रक्रिया का शुभारम्भ किया गया. प्रति वर्ष 12 जून को श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने तथा बाल श्रम के पूर्ण उन्मूलन में सहयोग करने के प्रयास के क्रम में पूरे विश्व में सरकार,नियोक्ता,श्रमिक संगठन,सामाजिक नागरिक आदि इस दिशा में चिंतन करते हुए एक साथ प्रयास करने की कोशिश करते हैं.
  2. न्यूनतम आयु अभिसमय, 1973 (Minimum Age Convention, 1973) जून, 1973 में आईएलओ द्वारा अपनाया गया वह अभिसमय रोजगार में प्रवेश के लिए आवश्यक न्यूनतम आयु से संबंधित है. 31 मार्च, 2017 को कैबिनेट ने इसकी मंजूरी दी है. 10 अप्रैल, 2017 को श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने स्वीकृति इसके अनुमोदन के प्रस्ताव को संसद के समक्ष रखा. यह अभिसमय 19 जून, 1976 से प्रभावी है. इसका अनुमोदन करने वाले प्रत्येक देश की निम्न बाध्यताएं होंगी -
    1. बाल श्रम के प्रभावी उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय नीति का निर्माण एवं क्रियान्वयन.
    2. रोजगार में प्रवेश हेतु एक न्यूनतम आयु का निर्दिष्टीकरण, जो अनिवार्य स्कूली शिक्षा के पूरा होने की उम्र से कम नहीं होनी चाहिए.
    3. इस बात की प्रत्याभूति देना कि युवाओं के स्वास्थ्य एवं उनकी नैतिकता की सुरक्षा से समझौता करने वाले किसी भी प्रकार के रोजगार में प्रवेश की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होगी.
  3. बाल श्रम का निकृष्टतम् रूपों के उन्मूलन हेतु अभिसमय, 1999 (Worst Form of Child Labor Convention, 1999) जून, 1999 में आईएलओ द्वारा अपनाया गया यह अभिसमय बाल श्रम के निकृष्टतम् रूपों के उन्मूलन हेतु आवश्यक निषेध एवं तत्काल कार्यवाही से संबंधित है. 31 मार्च, 2017 को कैबिनेट ने इसकी मंजूरी दी है. 10 अप्रैल, 2017 को श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने स्वीकृति इसके अनुमोदन के प्रस्ताव को संसद के समक्ष रखा. यह अभिसमय 19 नवंबर, 2000 को प्रभावी हुआ. इस अभिसमय में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को बालक (Child) की श्रेणी में रखा गया है. इस अभिसमय के अनुसार, बाल श्रम के निकृष्टतम् रूप निम्न हैं-
    1. दासता या इसके समकक्ष सभी गतिविधियां जैसे-बच्चों की खरीद-फरोख्त और तस्करी, ऋण बंधन एवं बलात् श्रम तथा सशस्त्र संघर्ष हेतु बच्चों की अनिवार्य भर्ती.
    2. पोर्नोग्राफी या अश्लील कार्यक्रम या वेश्यावृत्ति के लिए बच्चों का उपयोग या खरीद या पेशकश.
    3. अवैध गतिविधियों विशेषकर अंतरराष्ट्रीय संधियों द्वारा परिभाषित ड्रग्स के उत्पादन एवं तस्करी के लिए बच्चों का उपयोग या खरीद या पेशकश.
    4. ऐसा कार्य जिसमें चाहे कार्य की प्रकृति या परिस्थितिवश बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं नैतिकता की क्षति होने की संभावना है.
  4. बाल श्रम एवं बलात् बाल श्रम पर ब्‍यूनस आयर्स घोषणा 16 नवंबर 2017 वर्ष 2025 तक विश्व से बाल श्रम का उन्मूलन करने की घोषणा.

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