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छत्तीसगढ में अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण एवं विकास के लिए विधिक प्रावधान और नीतियां

  1. वामपंथी आतंकवाद (नक्स्लवाद) के निपटने की योजनाएं
    1. केन्द्र सरकार व्दारा प्रदेश के 16 जिले वामपंथी गतिविधि से प्रभावित होने के कारण LWE जिलों की सूची में सम्मिलित किये गये है जिनके नाम क्रमशः बस्तर, कोण्डागांव, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, सरगुजा, बलरामपुर, जशपुर, कोरिया, महासमुंद, बालोद, गरियाबंद, धमतरी एवं राजनांदगांव हैं.
    2. केन्द्र सरकार व्दारा दो विशेष भारत रक्षित वाहिनियों की स्वीकृति दी है, जिनमें से प्रत्येक में 2-2 तकनीकी कंपनी हैं जो इन क्षेत्रों में अधोसंरचना के निर्माण में सहयोग करेगी और शेष कंपनी सुरक्षा प्रदान करेंगी.
    3. सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम 2011 के तहत सहायक सशस्त्र पुलिस बल बनाया गया है जिसमें बस्तर क्षेत्र के युवकों से भर्ती की गई है और जवानों की तैनाती भी उसी क्षेत्र में की गई हैं इसके तहत लगभग 4000 का बल तैयार किया गया है.
    4. छत्तीसगढ़ शासन गृह विभाग मंत्रालय रायपुर के आदेश क्रमांक एफ-4/82/गृह-सी/2001/दिनांक 20 अक्टूबर 2004 में उल्लेख अनुसार राज्य शासन नक्सल पीड़ित व्यक्तियों/परिवारों तथा आत्मसमर्पित नक्सलियों को समाज की मुख्य धारा से जोडे जाने के उद्देश्य से तथा पर्याप्त सुरक्षा एवं पुनर्वास के लिये कार्ययोजना बनाई है जिसमें विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायता, समर्पित शस्त्रों के लिए मुआवज़ा देने, शासकीय नौकरी प्रदान करने, आत्मसमर्पित नक्सलियों के बच्चों को छात्रवृत्ति देने तथा पात्रतानुसार शासकीय नौकरी देने तथा कृषि भूमि प्रदान करने आदि के प्रावधान हैं.
  2. अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 - सवर्ण व्यक्ति के व्दारा अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति पर उत्पीड़न व अत्याचार किए जाने की शिकायत प्राप्त होने पर ऐसे प्रकरणों में अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दण्डित किए जाने का प्रावधान है. राज्य में कुल 11 विशेष न्यायालय क्रमशः जिला-रायपुर, दुर्ग, जगदलपुर, राजनांदगांव, बिलासपुर, सरगुजा, कोरबा, रायगढ़, जांजगीर, जशपुर तथा कोरिया जिलों हेतु स्वीकृत हैं, जिसमें 08 रायपुर, दुर्ग, जगदलपुर, राजनांदगांव, बिलासपुर, सरगुजा, कोरबा तथा रायगढ़ में विशेष न्यायालय कार्यरत है.
  3. आदिवासियों की भूमि का अनुसूचित क्षेत्र में क्रय-विक्रय -
    1. अंतरण पर प्रतिबंध- छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 165 की उपधारा (6) में अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्तियों से गैर अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्तियों को भूमि अन्तरण पर प्रतिबंध के संबंध में निम्नानुसार प्रावधान किये गये है -
      1. धारा 165(6) - उपधारा (1) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, किसी ऐसी जनजाति के, जिसे कि राज्य सरकार ने, उस संबंध में अधिसूचना व्दारा, उस पूरे क्षेत्र के लिए जिसको कि यह कोड लागू होता है, या उसके किसी भाग के लिये आदिम जनजाति (Aboriginal Tribe) होना घोषित किया हो, किसी भूमि स्वामी का अधिकार –

        (एक) ऐसे क्षेत्रों में, जिसमें आदिम जनजातियां प्रमुख रूप से निवास करती हो, तथा ऐसी तारीख से, जिसे/जिन्हे कि राज्य सरकार, अधिसूचना व्दारा विनिर्दिष्ट करे, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो कि उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किये गये क्षेत्र में की ऐसी जनजाति का न हो व्दारा विक्रय या अन्यथा या उधार संबंधी किसी संव्यवहार के परिणामस्वरूप न तो अन्तरित किया जायेगा और न ही अंतरणीय होगा,

        (दो) खंड (एक) के अधीन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किये गये क्षेत्रों से भिन्न क्षेत्रों में, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो कि ऐसी जनजाति का न हो, किसी राजस्व अधिकारी जो कलेक्टर की पद श्रेणी से अनिम्‍न न हो, की ऐसी अनुज्ञा के बिना, जो कि लेखबध्दक किये जाने वाले कारणों से दी जायेगी, विक्रय व्दारा या अन्यथा या उधार संबंधी संव्यवहार के परिणामस्वरूप न तो अन्तरित किया जायेगा और न ही अंतरणीय होगा.

        इस तरह राज्य के अधिसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के किसी भी कृषक के व्दारा अपनी भूमि का हस्तांतरण केवल अनुसूचित जनजाति वर्ग के कृषकों को ही किया जा सकता है, गैर अनुसूचित जनजाति वर्ग के कृषकों को नहीं. राज्य में कुल 146 विकासखंड है, जिनमें से 85 विकासखंड अधिसूचित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं तथा 61 विकासखंड गैर अधिसूचित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं. इन 85 अधिसूचित विकासखंडों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के कृषकों व्दारा गैर अनुसूचित जनजाति वर्ग के कृषकों को भूमि का हस्तांतरण पूर्णतः प्रतिबंधित है. शेष 61 गैर अधिसूचित विकास खंडों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के कृषकों की भूमि जिला कलेक्टर की अनुमति से ही हस्तांतरित की जा सकती है, अन्यथा नही. अधिनियम में उक्त प्रावधान वर्ष 1976 से लागू किये गये है.
    2. कपटपूर्वक किये गये अन्तरण की जांच - छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 165 की उपधारा (6) के उल्लंघन में या वर्ष 1976 में संशोधित उक्त प्रावधान लागू होने के पूर्व कपटपूर्वक किये गये अन्तरणों या अन्य रीति से किये गये अन्तरणों की जांच करने एवं ऐसा अन्तरण विधि विरूध्द या असद्भाविक पाये जाने पर ऐसे अन्तरणों को निरस्त करने के लिए संहिता की धारा 170 में प्रावधान किये गये है. संक्षेप में प्रावधान निम्नानुसार है:-
      1. धारा 170 में यह प्रावधान किया गया है, कि वर्ष 1976 में संशोधन अधिनियम लागू होने के पूर्व यदि अनुसूचित जनजाति से गैर अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्ति को भूमि का अन्तरण किया गया हो, अथवा वर्ष 1978 के बाद की स्थिति में, अन्तरण के दिनांक से 12 वर्ष के भीतर मूल भूमि स्वामी स्वयं या उसके वारिसान ऐसी अन्तरित भूमि का कब्जा दिलाये जाने के लिए आवेदन पत्र प्रस्तुत कर सकेंगे. ऐसा आवेदन पत्र अनुविभागीय अधिकारी के व्दारा निराकृत किये जाने का प्रावधान है.
      2. संहिता की धारा 170 में वर्ष 1980 में नया प्रावधान शामिल कर नवीन धारा 170(ख) शामिल की गयी, जिसमें यह प्रावधान किया गया कि वर्ष 1980 के पूर्व अनुसूचित जनजाति वर्ग के कृषकों व्दारा धारित भूमि यदि गैर अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्ति के कब्जे में हैं, तो कब्जेदार 2 वर्ष के भीतर ऐसी भूमि के संबंध में अनुविभागीय अधिकारी को सूचित करेगा, कि वह भूमि उसके कब्जे में कैसे आयी. ऐसी सूचना के आधार पर अनुविभागीय अधिकारी के व्दारा जांच की जावेगी, कि अन्तरण सद्भाविक है, या नही. यदि अन्तरण असद्भाविक पाया जाता है तो अनुविभागीय अधिकारी व्दारा उक्त भूमि मूल कृषक या उसके वारिसानों को वापस किया जावेगा. इस धारा के अंतर्गत यह भी प्रावधान किया गया है, कि उक्त संशोधन अधिनियम लागू होने की तिथि के 2 वर्ष के भीतर अर्थात वर्ष 1980 से 2 वर्ष के भीतर यदि कब्जेधारी व्दारा ऐसी सूचना नहीं दी जाती है, तो यह उप धारणा की जावेगी, कि अंतरण असद्भाविक है.
      3. वर्ष 1998 में अधिनियम की धारा 170 (ख) में उपधारा (2-क) शामिल कर यह नवीन प्रावधान शामिल किया गया है, कि अनुविभागीय अधिकारी को अंतरण की जांच करने के लिए जो शक्तियां प्राप्त है, वह अधिसूचित क्षेत्र की ग्राम सभाओं को होंगी. इस तरह वर्तमान प्रावधानों के अनुसार उक्त शक्तियां अधिसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को भी प्राप्त हैं. यदि ग्राम सभा उक्त कार्यवाही करने में असमर्थ होती है, तो अनुविभागीय अधिकारी के व्दारा उक्त कार्यवाही की जावेगी।
      4. अधिनियम की धारा 170(ग) में गैर आदिवासी को पीठासीन अधिकारी की अनुमति से ही अधिवक्ता नियोजित करने का प्रावधान है. इसी तरह धारा 170(घ) व्दारा ऐसे समस्त आदेश, जो 24 अक्टूबर 1983 को या उसके पश्चात धारा 170 के तहत पारित किये गये हैं, उनमें व्दिातीय अपील वर्जित की गयी है.

        प्रावधान लागू होने से अब तक दर्ज प्रकरणों की संख्या 44464 है, अब तक निराकृत प्रकरण 44093 हैं शेष प्रकरण 371 हैं अ.ज.जा वर्ग के पक्ष में निराकृत प्रकरण 18037 हैं. अ.ज.जा. वर्ग को लौटाई गई भूमि का रकबा 12212.147 हेक्टेयर है, कब्जा देने हेतु शेष प्रकरण 81 और शेष रकबा 100.183 हैक्टेयर है.
  4. औद्योगिक नीति छत्तीसगढ़ राज्य की औद्योगिक नीति में अनुसूचित जनजातियों को विभिन्नि प्रकार के अनुदान दिए जाते हैं. इनमें ब्यान अनुदान, स्था‍ई पूंजी निवेश अनुदान, परियोजना प्रतिवेदन अनुदान, विद्युत शुल्क अनुदान, भूमि आबंटन पर प्रीमियम में छूट, नि:शुल्क प्लाद आबंटन, उद्योग शेड, गुण्वत्ता प्रामा‍णीकरण अनुदान, तकनीकी पेटेंट अनुदान, प्राद्योगिकी क्रय अनुदान, मार्जिन मनी अनुदान आदि शामिल हैं. इसके अतिरिक्त पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र देने का भी प्रावधान है.
  5. अनुसूचित क्षेत्र मे आबकारी नीति - संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्र में पेसा एक्ट के अंतर्गत आबकारी नीति निम्नानुसार है:-
    1. नीति लागू होने के बाद पुरानी मदिरा दुकानें बंद की गई हैं. वर्तमान में मदिरा दुकानों का आबंटन लाटरी के माध्यम से किया जाता है जिसमें भागीदारी सभी वर्ग के लोग कर सकते हैं.
    2. नीति को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु आबकारी अधिनियम में संशोधन भी किये गये है.
    3. अनुसूचित क्षेत्रों में उपलंभन कार्य हेतु कलेक्टर की अनुमति आवश्यक है.
    4. आबकारी अधिनियम 1915 की धारा 61ख के तहत इस समुदाय के लोगों को संरक्षण प्राप्त है.
    5. ग्राम सभा व्दारा पारित किसी भी निर्णय को लागू करने के लिये उपखंड मजिस्ट्रेट या उसके व्दारा प्राधिकृत अधिकारी आबकारी अधिनियम की धारा 61च के तहत कार्यवाही करने हेतु प्राधिकृत है.
    6. आबकारी अधिनियम की धारा 61घ के अनुसार अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को अधिनियम के कतिपय उपबंधों से छूट -
      1. इस अधिनियम के उपबंध, आसवन व्दारा देशी मदिरा के विनिर्माण, उसके कब्जे तथा उपभोग के संबंध में अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों पर लागू नहीं होंगे.
      2. अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के सदस्य निम्नलिखित शर्तो के अध्याधीन रहते हुए, आसवन व्दारा देशी मदिरा का विनिर्माण कर सकेंगे अर्थात:-

        (एक) अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों व्दारा देशी मदिरा का विनिर्माण केवल घरेलू उपभोग तथा सामाजिक और धार्मिक समारोहों पर उपभोग के प्रयोजनों के लिए ही किया जाएगा.

        (दो ) इस प्रकार विनिर्मित की गई देशी मदिरा का विक्रय नहीं किया जायेगा.

        (तीन) इस प्रकार विनिर्मित की गई देशी मदिरा को कब्जे में रखने के प्रति गृहस्थी अधिकतम सीमा किसी भी समय 5 लीटर होगी.

        परंतु ग्राम सभा देशी मदिरा के कब्जे की सीमा को कम कर सकेगी.

        स्पष्टीकरण:- गृहस्थी से अभिप्रेत है ऐसे व्यक्तियों का कोई समूह जो एक ही घरेलू इकाई के सदस्यों के रूप में संयुक्त रूप से निवास तथा भोजन करता है.
    7. धारा 61 ड़ मादक द्रव्यों के विनिर्माण विक्रय आदि को विनियमित करने तथा प्रतिसिध्द करने की शक्ति ग्राम सभा को प्राप्त है.
    8. आबकारी मामलों से राहत - जन सामान्य को, विशेषकर समाज के कमजोर वर्गो को नियम-कानूनों की जानकारी नहीं होने के कारण वे कई बार आपराधिक प्रकरणों में फंस जाते हैं, जिससे उन्हें सामाजिक, मानसिक तथा आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. आबकारी मामलों में ऐसी परेशानियां झेल रहे लाखों परिवारों को राहत देने के लिए छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम 1915 की धारा 34 के अंतर्गत आदिवासी उपयोजना क्षेत्रों में आदिवासियों के विरूध्द 31 दिसंबर 2011 तक दर्ज प्रकरण समाप्त करने का निर्णय लिया गया है.
  6. शासकीय सेवाओं में आरक्षण - संविधान के अनुच्छेद 335 के अंतर्गत छत्तीसगढ़ में जनगणना वर्ष 2001 के आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जनजाति के लिए 32 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति के लिए 12 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान छत्तीसगढ़ शासन व्दारा किया गया है. आरक्षण की सुविधा शासकीय सेवाओं के साथ ही शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए भी दी गई है.
  7. आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान - राज्य में आदिवासियों की जनसंख्या के दृष्टिगत भारत सरकार जनजातीय कार्य मंत्रालय की अनुशंसा अनुरूप राज्य शासन व्दारा केन्द्र प्रवर्तित योजनान्तर्गत देश की 15 वें आदिमजाति अनुसंधान संस्थान की स्थापना 02.09.2004 को राज्य में की गई. संस्थान के प्रमुख कार्य हैं -
    1. अनुसूचित जनजातियों संबंधी आधारभूत सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन एवं सर्वेक्षण करना.
    2. अनुसूचित जनजातियों में व्याप्त समस्याओं का अध्ययन कर इनके निराकरण हेतु शासन को सुझाव देना.
    3. अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु शासन व्दारा संचालित योजनाओं का मूल्यांकन करना.
    4. अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने संबंधी प्राप्त अभ्यावेदनों के संदर्भ में जातियों का इथनोलाजिकल, एन्थ्रोपोलाजिकल परीक्षण कर शासन को अभिमत देना.
    5. अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के निराकरण हेतु देश के प्रमुख विषय विशेषज्ञों को आमंत्रित कर राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला एवं संगोष्ठियों का आयोजन करना.
    6. आदिवासी हितों के संरक्षण हेतु बनाये गये विभिन्न अधिनियमों तथा जनजातीय विकास से संबंधित कार्यक्रमों की जानकारी देने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करना आदि.
  8. जाति प्रमाण-पत्र उच्च स्तरीय छानबीन समिति - माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय कु. माधुरी पाटिल बनाम एडिशनल कमिश्नर ट्रायबल डेव्हलपमेंट एवं अन्य, ए.आई.आर. 1995 एस.सी. 94 एवं लावेतीगिरी विरूध्द डायरेक्टर ट्रायबल वेलफेयर आन्ध्रप्रदेश, ए.आई.आर. 1995 एस.सी. 1506 में समस्त राज्य सरकारों को दिए गए दिशा-निर्देशों के परिपालन में छत्तीसगढ़ शासन, सामान्य प्रशासन विभाग की अधिसूचना दिनांक 22.08.2013 व्दारा छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (सामाजिक प्रास्थिति के प्रमाणीकरण का विनियमन) अधिनियम, 2013 की धारा 7 की उपधारा (1) के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सक्षम प्राधिकारी व्दारा जारी प्रमाण-पत्रों के सत्यापन हेतु पत्र दिनांक 17.03.2017 व्दारा 6 सदस्यीय उच्च स्तरीय छानबीन समिति का पुनर्गठन किया गया है. छानबीन समिति व्दारा दिनांक 01.04.2016 से 25.07.2017 तक माननीय उच्चतम न्यायालय एवं छत्तीसगढ़ शासन व्दारा जारी सामाजिक प्रास्थिति प्रमाणीकरण विनियमन नियम, 2013 में विहित प्रावधान एवं दिशा-निर्देशों का अनुसरण करते हुए 68 प्रकरणों पर आदेश पारित किये गये है जिनमें से 23 जाति प्रमाण-पत्र सही एवं 45 जाति प्रमाण-पत्र गलत पाये गये.
  9. जाति प्रमाण पत्रों का प्रदाय - अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के कक्षा 8वी से 12वीं में शाला में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की सुविधा की दृष्टि से जिला स्तर पर जाति प्रमाण तैयार कर निःशुल्क प्रदान किये जा रहे है ताकि जाति प्रमाण पत्र बनवाने में कठिनाईयों का सामना न करना पड़े एवं विभिन्न आवश्यकताओं के लिए उन्हे जाति प्रमाण पत्र समय पर उपलब्ध हो सके.
  10. अनुसूचित क्षेत्र के पंचायतों के लिए विशेष प्रावधान - पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) केन्द्रीय अधिनियम-1996 के उपबंध 4 का छत्तीसगढ़ प्रदेश व्दारा कियान्वयन/पालन -
    क्र. केन्द्रीय अधिनियम में प्रावधान राज्य शासन व्दारा किये गये प्रावधान
    1.प्रत्येक पंचायत पर अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानों का आरक्षण उस पंचायत में उस समुदायों की जनसंख्या के अनुपात में होगा, जिनके लिये संविधान के भाग-9 के अधीन आरक्षण दिया जाना चाहा गया है.

    परंतु अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण स्थानों की कुल संख्या के आधे से कम नहीं होगी,

    परन्तु अनुसूचित जनजातियों के अध्यक्षों के सभी स्थान सभी स्तरों पर अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित होंगे.
    छ.ग. पंचायत राज (व्दिसतीय संशोधन) अधिनियम 1997 के अध्याय-14 क अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों के लिये विशिष्ट उपबंध की धारा 129-ड में निम्न प्रावधान रखे गये है-

    अनुसूचित क्षेत्रों में प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिये स्थान का आरक्षण उस पंचायत में उनकी अपनी-अपनी जनसंख्या के अनुपात में होगा.

    परन्तु अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण स्थानों की कुल संख्या के आधे से कम नहीं होगा.

    परंतु यह और भी कि अनुसूचित क्षेत्रों में सभी स्तरों पर पंचायतों के यथा स्थिति सरपंच या अध्यक्ष के समस्त स्थान अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिये आरक्षित रहेंगे.
    2.राज्य सरकार ऐसी अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों का जिनका मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत में प्रतिनिधित्व नहीं है, नाम निर्देशन कर सकेगी,

    परंतु ऐसा नाम निर्देशन उस पंचायत में निर्वाचित किये जाने वाले कुल सदस्यों के दसवें भाग से अधिक नहीं होगा.
    छ.ग. पंचायत राज (द्वितीय संशोधन) अधिनियम 1997 के अध्याय-14 क अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों के लिये विशिष्ट उपबंध की कंडिका 129-ड (2) एवं (3) में निम्न प्रावधान रखे गये है-

    1. राज्य सरकार ऐसी अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों को नाम निर्दिष्ट कर सकेगी जिनका अनुसूचित क्षेत्रों में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत में या अनुसूचित क्षेत्रों में जिला स्तर पर पंचायत में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है,

    परंतु ऐसा नाम निर्देशन उस पंचायत में निर्वाचित किये जाने वाले कुल सदस्यों के दशमांश से अधिक नहीं होगा.

    2. अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत में अन्य पिछड़े वर्गो के व्यक्तियों के लिये ऐसी संख्या में स्थान आरक्षित किये जायेंगे जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों यदि कोई हो के लिये आरक्षित स्थानों के साथ मिलकर उस पंचायत के समस्त स्थानों के तीन चैथाई स्थानों से अधिक नहीं होंगे.
    3.ग्राम सभा या समुचित स्तर पर पंचायतों से विकास परियोजनाओं के लिये अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अर्जन करने से पूर्व और अनुसूचित क्षेत्रों में ऐसी परियोजनाओं व्दारा प्रभावित व्यक्तियों को पुर्नव्यवस्थापित या पुनर्वास करने से पूर्व परामर्श किया जायेगा,

    अनुसूचित क्षेत्रों मे परियोजनाओं की वास्तविक योजना और उनका कार्यन्वयन राज्य स्तर पर समन्वित किया जायेगा.
    इसके लिए राज्य की पुनर्वास नीति में प्रावधान किया गया है.
    4.अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के अन्य संक्रमण के निवारण की ओर किसी अनुसूचित जनजाति की किसी विधि विरूध्द तथा अन्य संक्रामित भूमि को प्रत्यावर्तित करने के लिये उपयुक्त कार्रवाई करने की शक्ति उक्त प्रावधान के प्रकाश में छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 में दिनांक 05.01.98 को संहिता की धारा-170-ख में संशोधन किया गया है। संशोधन व्दारा उक्त धारा में एक नई उपधारा (2-क) जोड़ी गई है, जो निम्नानुसार हैः-

    (2-क) यदि कोई ग्राम सभा संविधान के अनुच्छेद 244 के खंड (1) में विनिर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्र में यह पाती है कि आदिम जाति के सदस्य से भिन्न कोई व्यक्ति आदिम जाति के भू-स्वामी की भूमि के कब्जे में बिना किसी विधिपूर्ण प्राधिकार के है, तो वह ऐसी भूमि का कब्जा उस व्यक्ति को प्रत्यावर्तित करेगी जिसकी कि वह मूलतः थी और यदि उस व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उसके विधिक वारिस को प्रत्यावर्तित करेगी.

    परंतु यदि ग्राम सभा ऐसी भूमि का कब्जा प्रत्यावर्तित करने में असफल रहती है, तो वह मामला उपखंड अधिकारी की ओर निर्दिष्ट करेगी जो ऐसी भूमि का कब्जा निर्देश की प्राप्ति की तारीख से तीन मास के भीतर प्रत्यावर्तित करेगा.
  11. अधिसूचित क्षेत्र में राज्यपाल के अनुमोदन से लागू केन्द्रीय एवं राज्य सरकार के नियम
    1. विशेष पिछड़ी जनजातियों को शासकीय सेवा में (विशेष भर्ती अभियान) में प्राथमिकता छ.ग.शासन, सामान्य प्रशासन विभाग के ज्ञापन 5.एफ 9-8/2002/1/3 रायपुर दिनांक 18.07.2003 व्दारा राज्य शासन ने निर्णय लिया है कि,छ.ग.राज्य की विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह जिसमें पहाड़ी कोरवा, बैगा, कमार, अबूझमाड़िया, बिरहोर, भुंजिया तथा पंडो जनजाति शामिल है के उम्मीदवार यदि तृतीय श्रेणी (गैर कार्यपालिक) एंव चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए निर्धारित न्यूनतम अर्हताएं पूर्ण करते हों तो उन्हे अनुसूचित जनजाति वर्गो के लिए रिक्त पदों पर भर्ती के समय चयन संबंधी निर्धारित प्रक्रिया का अनुसरण किये बिना ही सीधे नियुक्ति प्रदान किये जाने की विशेष सुविधा दी जावे.
    2. राज्य में नियुक्तियों पर प्रतिबंध बस्तर संभाग हेतु शिथिलीकरण - छ.ग.शासन,वित्त विभाग के ज्ञापन क्रमांक/772/एफ-3/1/2004/वित्त/ब-4/ चार दिनांक 13 मई 2010 के व्दारा राज्य के शासकीय कार्यालयों तथा निगम/मंडल/प्राधिकरण/स्वशासी संस्थाओं आदि में नियुक्ति पर प्रतिबंध के संबंध में संदर्भित ज्ञापन व्दारा विस्तृत निर्देश जारी किये गये है। राज्य शासन व्दारा अब निर्णय लिया गया है कि बस्तर संभाग स्थित इन कार्यालयों में सीधी भर्ती के सभी स्वीकृत किंतु रिक्त पदों को संबंधित भर्ती नियमों के प्रावधान अनुसार सक्षम प्राधिकारियों व्दारा भरे जाने हेतु वित्त विभाग की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी. शेष सभी संभागों हेतु पूर्व में जारी निर्देश यथावत लागू रहेंगे.
    3. छत्तीसगढ़ शासन, सामान्य प्रशासन विभाग के अधिसूचना क्रमांक एफ 1-1/2012/1-3 दिनांक 25.02.2017 व्दारा बस्तर तथा सरगुजा संभाग के अंतर्गत आने वाले जिलों में जिला संवर्ग के तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के रिक्त पदों को स्थानीय निवासियों से भरने बाबत् निर्देश जारी किए गए हैं.
    4. वन अधिकार अधिनियम के तहत निरस्त दावा प्रकरणों के हितग्राहियों को सुविधा प्रदान करने की दृष्टि से अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) नियम 2007 के नियम 6 के खंड (ड) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोडा जावे अर्थात:-

      (ढ) उप-खंड स्तरीय समिति व्दारा निरस्त समस्त दावों को स्वतः याचिका के रूप में माना जा सकेगा तथा अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (2007 का 2) के उपबंधों के अधीन तथा नियम 13 के खंड (क) से (झ) के अधीन केवल एक बार के लिए पुनः परीक्षण किया जा सकेगा.
  12. विशेष पिछड़ी जनजातियों का विकास - भारत शासन व्दारा निम्नलिखित मापदण्डों के आधार पर किसी अनुसूचित जनजाति समुदाय को विशेष पिछड़ी जनजाति की मान्यता प्रदाय की जाती है –
    1. कृषि में पूर्व प्रौद्यागिकी का चलन (झूम खेती)
    2. साक्षरता का निम्न स्तर
    3. अत्यंत पिछड़े व दूर दराज के क्षेत्रों में निवास करना
    4. स्थिर या घटती हुई जनसंख्या दर का होना

    विशेष पिछड़ी जनजातियों के समेकित विकास हेतु राज्य में 11 सूत्रीय कार्यक्रम की शुरूआत की गई है जिनका विवरण निम्नानुसार है:-

    1. आवासहीन परिवारों के लिए आवास
    2. पेयजल विहीन ग्रामों में पेयजल की उपलब्धता
    3. विद्युत विहीन ग्रामों का विघुतीकरण
    4. स्वास्थ्य परीक्षण
    5. खाद्य सुरक्षा प्रदान करना
    6. 0-6 वर्ष आयु के बच्चों तथा गर्भवती माताओं को कुपोषण से बचाने के लिये पोषण आहार (न्यूट्रीशियस फूड) का प्रदाय सुनिश्चित करना
    7. कौशल उन्नयन
    8. सामाजिक सुरक्षा
    9. वन अधिकार पत्रों का वितरण
    10. जाति एवं निवास प्रमाण पत्र प्रदाय
    11. सूचना जागरूकता हेतु रेडियों तथा दैनंदिन आवश्यकता हेतु छाता एवं कम्बल प्रदाय
  13. छत्तीसगढ़ जनजाति सलाहकार परिषद - संविधान के अनुच्छेद 244 के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों एवं जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन हेतु छत्तीसगढ़ जनजाति सलाहकार परिषद का गठन किया गया है - अध्येक्ष - डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री, उपाध्यहक्ष - श्री केदार कश्यढ़प मंत्री, आ.जा.तथा अनु.जा.वि.वि., सदस्य् - श्री दिनेश कश्यप, सांसद, बस्तऱ, श्री विष्णुदेव साय, सांसद, रायगढ़, श्री विक्रम उसेंडी, सांसद, कांकेर, सुश्री चम्पादेवी पावले, विधायक भरतपुर-सोनहत, श्री रामसेवक पैंकरा, विधायक, प्रतापपुर, श्री राजशरण भगत, विधायक, जशपुर, श्री रोहित कुमार साय, विधायक, कुनकुरी, श्री शिवशंकर पैकरा, विधायक, पत्थलगांव, श्रीमती सुनीती सत्यानंद राठिया, विधायक, लैलूंगा, श्री गोवर्धन सिंह मांझी, विधायक, बिन्द्रानवागढ़, श्री श्रवण मरकाम, विधायक, सिहावा, श्री महेश गागड़ा, विधायक, बीजापुर, श्री चिन्तामणी महाराज, विधायक, लुण्ड्रा, श्रीमती तेजकुंवर गोवर्धन नेताम, विधायक, मोहला-मानपुर, श्रीमती देवती कर्मा, विधायक, दन्तेवाड़ा, श्री खेलसाय सिंह, विधायक, प्रेमनगर एवं प्रमुख सचिव/सचिव, छत्तीसगढ़ शासन, आ.जा.तथा अनु.जा. विकास विभाग – सचिव.

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