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भारत मे नियोजित विकास

इतिहास

  1. वर्ष 1934 में एम. विश्‍वेश्वरैया ने 10 वर्ष की योजना अपनी पुस्तक ‘’प्ला‍न्ड इकानामी फार इंडिया’’ में प्रस्तुत की.
  2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1936 में भारत मे नियोजित विकास पर विचार करने के लिये राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया.
  3. वर्ष 1944 में मुम्बई के 8 उद्योगपतियों ने 15 वर्ष की योजना "ए प्लान फार इकानामिक डेवलपमेंट फार इंडिया" के नाम से प्रस्तुत की. इसमें टाटा बिरला आदि शामिल थे.
  4. वर्ष 1944 में ही श्रीमन नारायण ने गांधीवादी योजना प्रस्तुत की.
  5. एम. एन. राय ने 1944 में ही "जन योजना" प्रस्तुत की.
  6. जयप्रकाश नारायण ने वर्ष 1950 में "सर्वोदय योजना" प्रस्तुत की.

भारत में आर्थिक योजना के प्रमुख तत्व

  1. भारत में योजना निर्माण मूलत: केन्द्रीक्रत है.
  2. योजना का क्रियान्व्यन विकेन्द्रीक्रत है.
  3. पूंजीवादी एवं समाजवादी दोनों ही तत्व विद्यमान है. भारत में मिश्रित अर्थव्य‍वस्था है.
  4. योजना बहुउद्देशीय है. इसमें आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय पर भी बल दिया जाता है.

भारत में आर्थिक नियोजन के लक्ष्य

    li> संवध्दि – वस्तुसओं एवं सेवाओं की उत्पादकता में वृध्दि जिससे व्यक्ति की आय एवं राष्ट्रीय आय में वृध्दि हो.
  1. आधुनिकीकरण – आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग एवं सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव.
  2. आत्मिनिर्भरता – खाद्यान्न उत्पादन एवं अन्यं आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में
  3. समानता – आय एवं संपत्ति की समानता और समाजवादी समाज की स्थापना.

योजना आयोग

  1. योजना आयेाग की स्थापना मार्च 1950 में हुई.
  2. इसे संसाधनों के उचित उपयोग और प्राथमिकताओं के निर्णारण के लिये योजना बनाने की जिम्मेदारी दी गई.
  3. योजना आयोग व्दारा बनाई गईं पंचवर्षीय योजनाओं का अनुमोदन राष्ट्रीय विकास परिषद करती है.
  4. राष्ट्रीय विकास परिषद विकास के मुद्दों पर विचार एवं निर्णय करने वाली सर्वोच्च संस्था है. इसके अध्यक्ष प्रधान मंत्री होते है. केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य , राज्यों के मुख्य मंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि एवं नीति आयोग के सदस्य इसके सदस्य हैं. इसका गठन 6 अगस्त 1952 को शासन के आदेश से किया गया था.

पंचवर्षीय योजनाएं

  1. पहली योजना (1951 – 56) वृध्दि लक्ष्य -2.9% उपलब्धि - 3.6%
    1. यह योजना हैराड-डोमार माडल पर आधारित थी.
    2. इस योजना में कृषि, बिजली एवं सिंचाई पर बल दिया गया
    3. वर्ष 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारंभ किया गया
    4. भाखरा एवं हीराकुड जैसी सिंचाई परियोजनाएं प्रारंभ हुईं.
  2. दूसरी योजना (1956 – 61) वृध्दि लक्ष्य 4.5% उपलब्धि 4.3%
    1. इसका फोकस भारी उद्योगों पर था
    2. सार्वजनिक क्षेत्र का विकास किया गया
    3. यह योजना महालनोबिस माडल पर थी
  3. तीसरी योजना (1961 – 66) वृध्दि लक्ष्य 5.6% उपलब्धि 2.8%
    1. कृषि की उन्नति एवं गेहूं के उत्पाादन पर बल दिया गया जिससे खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता आ सके.
    2. भारत-चीन युध्द 1961 में हुआ जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था की कमियां उजागर हुईं और रक्षा क्षेत्र पर फोकस किया गया
    3. ग्रामीण क्षेत्र में स्कू‍ल खोले गये
  4. योजना अवकाश (1966-69)
    1. वर्ष 1965–1966 में भारत-पाक युध्द हुआ
    2. वर्ष 1965 में भयंकर सूखा पड़ा
    3. युध्द के कारण महंगाई बढ़ी जिससे प्राथमिकता कीमतें स्थिर रखने की हो गई
    4. बांधों का निर्माण हुआ
    5. हरित क्रांति 1966-67 में प्रारंभ हुई.
  5. चौथी योजना (1969 – 1974) वृध्दि लक्ष्य 5.7% उपलब्धि 3.3%
    1. एलेन मान्ने एवं अशोक रुद्र के माडल पर आधारित थी.
    2. 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 में किया गया
    3. प्राथमिकता स्थिरता के साथ विकास की थी
    4. बांगला देशी शरणार्थियों के आने से भी समस्या बढ़ी
  6. पांचवी योजना (1974 – 79) वृध्दि लक्ष्य 4.4% उपलब्धि 4.8%
    1. इसे डी.पी. धर के व्दारा बनाया गया था
    2. इसके 2 प्रमुख उद्देश्य थे:– गरीबी हटाओ और – आत्म निर्भरता
    3. उच्च वृध्दि दर, आय का बेहतर वितरण, और घरेलू बचत में उल्लेखनीय वृध्दि पर ज़ोर दिया गया
    4. यह योजना वर्ष 1978 में ही (1979 के स्थान पर) जनता सरकार के आने से समाप्त कर दी गई
  7. अनवरत योजना (1978 - 80) – यह जनता सरकार के समय 2 वर्ष के लिये चलाई गई
  8. छठवीं योजना (1980 – 85) वृध्दि लक्ष्य 5.2% उपलब्धि 6.0%
    1. राष्ट्रीय आय में वृध्दि, प्रौद्योगिकी का आधुनिकीकरण, गरीबी और बेरोज़गारी में लगातार कमी लाना तथा जनसंख्या नियंत्रण इस योजना के प्रमुख उद्देश्य थे
  9. सातवीं योजना (1985 – 90) वृध्दि लक्ष्य 5.0% उपलब्धि 6.0%
    1. तीव्र गति से खाद्यान्न उत्पादन और रोजगार के अवसरों तथा उत्पादकता में वृध्दि
  10. आठवीं योजना (1992 – 97) वृध्दि लक्ष्य 5.6% उपलब्धि 6.8%
    1. केन्द्र में राजनीतिक अनिश्चितता, भुगतान के संतुलन के बिगड़ने तथा बढ़ती महंगाई के कारण यह योजना 2 वर्ष देरी से लागू की गई
    2. वर्ष 1990-92 में 2 वार्षिक योजनाएं चलाई गईं
    3. यह जान डब्लू मिलर के उदारीक्रत आर्थिक माडल पर आधारित थी
    4. खराब आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कई कदम उठाए गए
    5. प्रमुख रूप से तीव्र आर्थिक वृध्दि, कृषि में वृध्दि विनिर्माण क्षेत्र में वृध्दि, आयात एवं निर्यात में वृध्दि के लक्ष्य प्राप्त हुए
  11. नौवीं योजना (1997 – 2002) ) वृध्दि लक्ष्य 6.5% उपलब्धि 5.4%
    1. इसका प्रमुख उद्देश्य जीवन की गुणवत्ता में सुधार था. इसमें चार प्रमुख बातें थीं:– जीवन की गुावत्ता, रोजगार सृजन, क्षेत्रीय असंतुलन में कमी और आत्मनिर्भरता
    2. सभी को न्यूनतम सेवाएं प्रदान करने के लिये - सभी के लिये शिक्षा, पेयजल, प्राथमिक स्वावस्य , परिवहन, एवं ऊर्जा
    3. जनसंख्या नियंत्रण
    4. समाजिक मुद्दे जैसे महिलाओं का सशक्तीकरण एवं विशेष सामाजिक समूहो को सहायता
    5. उदारीक्रत बाज़ार व्यजवस्था जिससे निजी निवेश को बढ़ावा मिले
  12. दसवीं योजना (2002 – 2007) वृध्दि लक्ष्य 8.0% उपलब्धि -7.8%
    1. साक्षरता एवं मजदूरी की दरों में जेण्डर के अंतर में वर्ष 2007 तक 50% की कमी लाना.
    2. रोज़गार के 7 करोड़ नये अवसर निर्मित करना जिससे बेरोज़गारी को 5% के नीचे लाया जा सके.
    3. अकुशल श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी 20 प्रतिशत बढ़ सके
    4. स्कूली बच्चों की ड्राप आउट दर में 2003-04 की 52.2% से 2011-12 तक 20% कमी लाना
    5. 7 वर्ष एवं अधिक के लोगों में साक्षरता की दर 85% तक लाना
    6. 0-6 वर्ष की आयु का लिंग अनुपात जो वर्ष 2011-12 में 935 था उसे 2016-17 तक बढ़ाकर 950 तक लाना
    7. यह सुनिश्चित करना कि सभी शासकीय कार्यक्रमों में कम से कम 33 प्रतिशत हितग्राही महिलाएं और बालिकाएं हों
    8. सभी गांवों को नवंबर 2007 तक टेलीफोन से जेाड़ना और 2012 ब्राड बैंड से जोड़ना
    9. वन क्षेत्र को 5 प्रतिशत से बढ़ाना
  13. ग्याहरवीं योजना (2007 – 2012 वृध्दि लक्ष्य पारंभ में 9% जिसे बाद में घटाकर 8.1% कर दिया गया उपलब्धि – 7.9%
    1. तीव्र एवं समावेशी वृध्दि
  14. बारहवीं योजना (2012-2017) वृध्दि लक्ष्य 8%
    1. तीव्र टिकाऊ ओर अधिक समावेशी वृध्दि
    2. स्वास्‍थ्‍य, शि‍क्षा, कौशल विकास, पर्यावरण, प्रकृतिक संसाधनों और अधोसंरना पर ज़ोर

नीति आयोग

नेशनल इन्टीट्यूशन फार ट्रांसफार्मिंग इंडिया (नीति) को नीति आयोग कहा जाता है. इसका गठन 1 जनवरी 2015 को केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के आदेश से हुआ था. यह भारत की नीति विषयक महत्वपूर्ण सोच-विचार करने वाली संस्था है जो नीति संबंधी सलाह देती है. नीति आयोग केन्द्र सरकार को लंबे समय के लिये और रणनीतिक रूप ये नीति निर्धारण में सहायता करती है और राज्यों तथा केन्द्र को भी संबंधित विषयों पर तकनीकी सलाह भी उपलब्ध कराती है.

भारत सरकार ने अपने सुधार के एजेंडा के तारतम्य में 1950 में बने योजना आयोग को समाप्त करके उसके स्थान पर नीति आयोग का गठन किया है. यह संस्था केन्द्र और राज्यों के बीच बेहतर संबंधों और राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए सहकारी संघवाद के सिध्दांतों पर काम करती है. अब पंचवर्षीय योजनाएं बनाना बंद कर दिया गया है. उनके स्थान पर नीति आयोग ने 15 वर्ष के लिये एक दृष्टि पत्र बनाया है जिसमें राष्ट्र के लंबे समय के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं. नीति आयोग को राज्यों को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता देने का अधिकार नहीं हैं.

राष्ट्रीय आय के महत्वपूर्ण सूचक

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एक निश्चित अवधि में किसी देश की भैगोलिक सीमाओं के भीतर उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य होता है. इसमें विदेश से प्राप्त आय शामिल नहीं होती है.

शुध्द घरेलू उत्पाद (NDP) सकल घरेलू उत्पाद से पूंजीगत हृास को कम करके निकाला जाता है.

सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) एक निश्चित अवधि में किसी देश के नागरिकों व्दारा उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्यु होता है. इसमें विदेश से प्राप्त आय शामिल होती है, परन्तुं देश में रहने वाले विदेशियों की आय शामिल नहीं है.

शुध्द राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) सकल राष्ट्रीय उत्पाद से पूंजीगत हृास को कम करके निकाला जाता है.

राष्ट्रीय आय – जब शुध्द राष्ट्रीय उत्पाद की गण्ना साधन लागत पर की जाती है तो उसे राष्ट्रीय आय कहते हैं. यदि इसकी गणना बाज़ार मूल्य पर की जाये तो उसमें से अप्रत्यक्ष करों को घटाया जाता है और सरकार व्दारा दी गई अनुदान राशि को जोडा जाता है.

प्रति व्यक्ति आय– राष्ट्रीय आय को जनसंख्या का भाग देकर निकाली जाती है.

वास्तविक राष्ट्रीय आय – की गणना वर्तमान मूल्य पर एवं स्थिर मूल्यों पर की जाती है. निश्चित आधार वर्ष के मूल्यों के आधार पर गणना की गई स्थिर कीमतो पर राष्ट्रीय आय को वास्तविक राष्ट्रीय आय माना जाता है.

क्रय शक्ति समता रीति – वह रीति है जिसमे किसी देश में उस देश की मुद्रा से वस्तुओं एवं सेवाओं के एक कामन समूह को क्रय करने की तुलना किसी अन्य देश में उसकी मुद्रा से क्रय करने से की जाती है.

राष्ट्रीय आय को मापने के तरीके

  1. उत्पादन गणना विधि: अर्थयवस्था में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य . अंतिम वस्तु से तात्पर्य उन वस्तुओं से है जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं के निर्माण में नहीं किया जाता और जिना सीधा उपभोग किया जाता है.
  2. आय गणना विधि: इसमें साधनों की आय का जोड़ लगाया जाता है. साधारणत: साधन चार प्रकार के होते हैं - श्रम, जिसकी आय वेतन अथवा मजदूरी है, पूंजी जिसकी आय ब्याज है, भूमि जिसकी आय किराया है और उद्यमिता जिसकी आय लाभ है.
  3. व्यय विधि: इसमें सभी प्रकार के व्यय जोड़े जाते हें जिसमें निजी उपभोग, शासकीय उपभोग, सकल पूंजी निर्माण और सकल निर्यात शामिल हैं.

भारत में राष्ट्री य आय का मापन

दादा भाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक ''पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया'' में भारत की प्रति व्यक्ति आय 20 रुपये बताई थी.

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पी.सी. महालनोबिस की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आय समिति बनाई गई.

केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन

राष्ट्रीय आय का मापन इसके व्दारा किया जाता है. इस संगठन ने राष्ट्रीय आय के प्रथम आधिकारिक अनुामन 1956 में दिये थे. आजकल राष्ट्रीय लेखों के लिये आधार वर्ष 2011-12 है. राष्ट्रीय आय के मापन के लिये अर्थव्यवस्था को 3 क्षेत्रों में बांटा गया है -

  1. प्राथमिक क्षेत्र – कृषि, वानिकी, मत्‍सय उद्योग और खनन
  2. व्दितीयक क्षेत्र – विनिर्माण, निर्माण, बिजली, गैस एवं जलापूर्ति
  3. तृतीयक क्षेत्र – परिवहन, भंडारण, संचार, व्यापार, जलपानगृह, बैकिंग एवं बीमा, रियल एस्टेट, लोक प्रशासन, अन्य सेवाए एवं विदेशी क्षेत्र

केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन व्दारा हाल के बदलाव–

विकास को अब स्थिर बाज़ार मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद व्दारा मापा जायेगा जैसा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है. पूर्व में इसे कारक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद से मापते थे. इसी प्रकार जोड़े गए सकल मूल्य (GVA) को भी कारक मूल्य के स्थान पर मूल कीमतों पर मापा जायेगा.

आधार वर्ष भी 2004-05 से बदलकर 2011-12 कर दिया गया है.

जोड़ा गया सकल मूल्य (Gross value added) यह उत्पादकता का माप है जो अर्थव्यवस्था में किसी क्षेत्र के हिस्से का मापन करता है. इसकी गणना उत्पादित वस्तुओ एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य से सभी इनपुट के मौद्रिक मूल्य को घटाकर की जाती है.

कारक मूल्य पर GVA, मूल कीमतों पर GVA एवं GDP की तुलना–

GVA at factor cost + (Production taxes less Production subsidies) = GVA at basic prices

GDP at market prices = GVA at basic prices + Product taxes‐ Product subsidies

क्षेत्रवार GVA में अंश (2011-12 श्रंखला के अनुसार)

क्षेत्र 2013-14 2014-15
कृषि एवं संबंधित 18.6 17.6
उद्योग 30.5 29.7
सेवाएं 50.9 52.7

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