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भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार - भाग - 5
संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता एवं धर्म निरपेक्षता के संबंध में हैं.
अनुच्छेद 25. अंतःकरण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता–
(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा.
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो–
(क) धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निबर्न्धन करती है ;
(ख) सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सावर्जनिक प्रकार की हिन्दुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिन्दुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती हैं.
स्पष्टीकरण 1–कृपाण धारण करना और लेकर चलना सिक्ख धर्म के मानने का अंग समझा जाएगा.
स्पष्टीकरण 2–खंड (2) के उपखंड (ख) मे हिन्दुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतगर्त सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश हैऔर हिन्दूओं की धार्मिर्क संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा.
अनुच्छेद 26. धार्मिक कार्य के प्रबंध की स्वतंत्रता–लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिर्क संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को–
(क) धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,
(ख) अपने धर्म विषयक कार्य का प्रबंध करने का,
(ग) जंगम और स्थावर संपत्ति के अजर्न और स्वामित्व का, और
(घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का,
अधिकार होगा.
अनुच्छेद 27. किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृध्दि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता–
किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृध्दि या पोषण मे व्यय करने के लिए विनिदिर्ष्ट रूप से विनियोजित किए जाते हैं.
अनुच्छेद 28. कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिकशिक्षा या धार्मिक उपासना मे उपिस्थत होने के बारे में स्वतंत्रता–
(1) राज्य- निधि से पूणर्तः पोषित किसी शिक्षा संस्था मे कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी.
(2) खंड (1) की कोई बात ऐसी शिक्षा संस्था को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है.
(3) राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपिस्थत होने वाले किसी व्यिक्त को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा मे भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था मे या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धर्मिक उपासना में उपिस्थत होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है.
हमें याद रखना चाहिये कि अल्पसंख्यकों के अधिकार भारत के संविधान में मज्ञैलिक अधिकार होने के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ केअनुसार मानव अधिकार भी है. इस संबंध में यूट्यूब की चैनल UN Human Rights पर Creative Commons Attribution licence (reuse allowed) के अंतर्गत उपलब्ध वीडियो All In 4 Minority Rights देखिये.
न्यायालयीन प्रकरणों के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में धार्मिक स्वतंत्रता एवं धर्म निरपेक्षता का विश्लेषण
धर्म विश्वास या आस्था का विषय है. भारत का संविधान लोगों के जीवन में धर्म के महत्व को स्वीकार करता है. अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है. कई प्रकरणों में, शीर्ष अदालत ने धर्मनिरपेक्षता को संविधान की मूल संरचना माना है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण केसवानंद भारती मामला है.
धर्मनिरपेक्षता शब्द की उत्पत्ति मध्ययुगीन यूरोप में हुई. 1948 में संविधान सभा की बहस के दौरान के.टी. शाह द्वारा संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को शामिल करने की मांग की गई थी, लेकिन इसे प्रस्तावना में शामिल नहीं किया गया. 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने 42वां संविधान संशोधन अधिनियम बनाया जिसके व्दारा प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़ा गया.
- एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ, एआईआर 1994 एससी 1918 में 9 जजों की बेंच ने माना कि धर्मनिरपेक्षता भारत के संविधान की मूल विशेषता है. न्यायालय ने यह भी कहा कि धर्म और राजनीति को एक साथ नहीं मिलाया जा सकता. राज्य के मामलों में धर्म का कोई स्थान नहीं है. राज्य के दृष्टिकोण से, धर्म, आस्था और विश्वास सारहीन हैं.
- तिलकायत श्री गोविंदलालजी महाराज बनाम राजस्थान राज्य में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि किसी धर्म के अभिन्न अंग क्या है, इसे तय करने के लिये यह देखना होगा कि उस धर्म का पालन करने वाले समुदाय द्वारा इसे अभिन्न माना जाता है या नहीं.
- एस.पी. मित्तल बनाम भारत संघ के मामले में, अदालत ने कहा कि धर्म के लिये आस्तिक होना आवश्यकता नहीं है.
- बिजो इमैनुएल बनाम केरल राज्य, में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राष्ट्रगान न गाने पर बच्चों को स्कूल से निकालने की कार्रवाई उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है. न्यायालय ने कहा कि कानून का ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी को राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर करता हो. अगर कोई व्यक्ति सम्मानपूर्वक खड़ा होता है लेकिन राष्ट्रगान नहीं गाता है तो यह अपमानजनक नहीं है.
- वहीं श्याम नारायण चौकसे बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक या व्यक्ति भारत के राष्ट्रगान के प्रति सम्मान दिखाने के लिए बाध्य है. न्यायालय ने यह भी कहा कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं है. इस बारे मे एन.डी.टी.वी. पर उस समय प्रसारित एक खबर को देखिये.
- अनुच्छेद 51ए हमारे राष्ट्रगान के प्रति सम्मान दिखाना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य मानता है.
- रमेश बनाम भारत संघ, (1988) 1 एससीसी 668 में दूरदर्शन धारावाहिक 'तमस' की स्क्रीनिंग पर रोक लगाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दायर की गई थी. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए माना कि यह सीरियल अनुच्छेद 21 और 25 का कोई उल्लंघन नहीं करती है. लेखक ने सद्भाव से रहने और धार्मिक बाधाओं से ऊपर उठने की इच्छा पर जोर दिया है. धारावाहिक को संपूर्ण रूप से देखने पर वह शांति और सह-अस्तित्व की भावना पैदा करता है और इससे हिंसा भड़कने की संभावना नहीं है.
- एन. आदित्य बनाम त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड के मामले में मुद्दा यह था कि क्या केरल के कोंगोरपिल्ली नीरीकोड शिव मंदिर के पुजारी के रूप में एक गैर-मलयाला ब्राह्मण की नियुक्ति संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है. अदालत ने माना कि यदि कोई व्यक्ति देवता की पूजा उचित तरीके से करने के लिए निपुण, योग्य और प्रशिक्षित है, तो ऐसे व्यक्ति को उसकी जाति के बावजूद पुजारी के रूप में नियुक्त किया जा सकता है.
- भूरी बनाम जम्मू एवं कश्मीर राज्य, एआईआर 1997 एससी 1711 में, सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर माता वैष्णो देवी श्राइन अधिनियम, 1988 को संवैधानिक रूप से वैध माना और कहा कि पूजा का अधिकार एक पारंपरिक अधिकार है और राज्य कानून बनाकर इसे समाप्त कर सकता है.
- एम इस्माइल फारुकी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. मुसलमान कहीं भी, खुले में भी नमाज़ पढ़ सकते हैं. यह आवश्यक नहीं है कि यह केवल मस्जिद में ही पढ़ी जाए.
- एम सिद्दीक विरुध्द महंत सुरेश दास में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राज्य के पास संपत्ति अधिग्रहीत करने की संप्रभु शक्ति है. राज्य के पास मस्जिद, चर्च, मंदिर आदि जैसे पूजा स्थलों का अधिग्रहण करने की भी शक्ति भी है. पूजा स्थलों का अधिग्रहण अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन नहीं है. परन्तु यदि ऐसे स्थान के विलुप्त होने से उस धर्म से संबंधित व्यक्तियों के धर्म पालन करने के अधिकार का उल्लंघन होता है, तो ऐसे स्थानों के अधिग्रहण की अनुमति नहीं दी जा सकती.
- तीन तलाक: शायरा बानो बनाम भारत संघ - तलाक-ए-बिद्दत को तीन तलाक के नाम से जाना जाता है. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने विवादित तीन तलाक मामले में 3:2 के बहुमत से, अदालत ने फैसला सुनाया कि तलाक-ए-बिद्दत की प्रथा अवैध और असंवैधानिक है. इसके बाद सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अध्यादेश, 2018 जारी किया. अंततः मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 आया जिसने मुस्लिम पुरुष व्दारा तीन बार तलाक कहकर पत्नी को तलाक देने को अवैध करार दिया.
इस विषय पर यूट्यूब की चैनल Webdunia Hindi पर Creative Commons Attribution licence (reuse allowed) के अंतर्गत उपलब्ध वीडियो का अंश देखिये.
- धर्म के नाम पर ध्वनि प्रदूषण : चर्च ऑफ गॉड (पूर्ण सुसमाचार) बनाम के.के.आर. में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी धर्म में यह उल्लेख नहीं है कि प्रार्थना ढोल बजाकर या ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से की जानी चाहिए, जिससे दूसरों की शांति भंग होती है. यदि ऐसी कोई प्रथा है, तो इसे दूसरों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना और उनकी गतिविधियों में हस्तक्षेप किए बिना किया जाना चाहिए. इसके पहले काफी समय से सभी धर्मों के लोग लाउडस्पीकर पर पूजा-प्रार्थना करने को लेकर विवाद करते रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से आखिर इस विवाद का अंत हुआ. इस बारे में यूट्यूब की चैनल AAPKA PRAHAR TIMES पर Creative Commons Attribution licence (reuse allowed) के अंतर्गत उपलब्ध वीडियो का अंश देखिये.
- री-ध्वनि प्रदूषण मामले में उच्चतम न्यायालय ने धर्म के नाम पर होने वाले ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कुछ निर्देश दिए हैं:
- रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक ध्वनि उत्सर्जित करने वाले पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध.
- सार्वजनिक आपात स्थिति को छोड़कर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच ड्रम बजाने, टॉम-टॉम, तुरही बजाने या किसी भी ध्वनि एम्पलीफायर के उपयोग पर प्रतिबंध.
- राज्य द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक शोर उत्पन्न करने वाले लाउडस्पीकर कोजब्त करने का प्रावधान किया जाएगा.
- अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय ने माना, क्योंकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना केंद्रीय कानून द्वारा की गई थी, इसलिए यह दावा नहीं किया जा सकता कि विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई थी.
अनुच्छेद 29. - अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण–
(1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा.
(2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था मे प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमे से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा.
अनुच्छेद 30. शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार–
(1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा.
(1क) खंड (1) में निदर्ष्ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अजर्न के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चत करेगा कि ऐसी संपत्ति के अजर्न के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बन्धित या निराकृत न हो जाए.
(2) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक-वर्ग के प्रबंध मे है.
अनुच्छेद 29 एवं 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की व्याख्या
अल्पसंख्यक कौन हैं: संविधान का अनुच्छेद 30 दो प्रकार के अल्पसंख्यक समुदायों की बात करता है - भाषाई और धार्मिक. अनुच्छेद 29(1) कहता है कि "अपनी खुद की एक विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति" वाले किसी भी व्यक्ति को इसे संरक्षित करने का अधिकार है. धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के संदर्भ में, अल्पसंख्यक अधिनियम की धारा 2(सी) 5 धर्मों को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में मान्यता देती है, अर्थात् मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी.
- रवनीत कौर बनाम क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (1997) के मामले में, न्यायालय ने कहा कि राज्य से सहायता प्राप्त निजी स्कूल और कॉलेज भी छात्रों के साथ धर्म, जाति या नस्ल के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते.
- डीपी जोशी बनाम मध्य भारत राज्य (1955) के मामले में, न्यायालय ने पाया कि निवास स्थान के आधार पर भेदभाव अभी भी मौजूद है. विश्वविद्यालय छात्रों के प्रवेश के लिए निवास योग्यता के मानदंडों का उपयोग करते हैं. अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ (2008), सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जब स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश की बात आती है तो निवास या संस्थागत प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण नहीं देना बेहतर होगा.
- एस.पी.मित्तल बनाम भारत संघ, एआईआर 1983 एससी 1 में न्यायालय ने यह माना कि ऑरोविले (आपातकालीन प्रावधान) अधिनियम, 1980 लिसके व्दारा तामिल नाड़ सरकार ने ऑरोविले का प्रबंधन अपने हाथों में ले लिया था, अनुच्छेद 29 और 30 का उल्लंघन नहीं करता है. ऑरोविले धार्मिक नहीं था और श्री अरबिंदो की विचारधारा पर आधारित था इसलिये उसे इन अनुच्छेदों के तहत सुरक्षा नहीं मिल सकती.
- मद्रास राज्य बनाम चंपकम दोराईराजन (1951) में सर्वोच्च न्यायालय ने जाति के आधार पर आरक्षण को संविधान के अनुच्छेद 29(2) का उल्लंघन माना. इस आदेश के फलस्वरूप भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(4) में पहली बार संशोधन किया गया जिससे सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को आगे लाने के लिए विशेष नियम और कानून बनाने का अधिकार राज्य को मिला.
- बॉम्बे राज्य बनाम बॉम्बे एजुकेशनल सोसाइटी के मामले में कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थानों को अपनी पसंद के छात्रों को प्रवेश देने का अधिकार है, भले ही उन्हें सरकारी सहायता प्राप्त हो.
अनुच्छेद 29(2) और अनुच्छेद 15(1) के बीच अंतर
अनुच्छेद 29 (2) और अनुच्छेद 15 (1) काफी समान हैं. दोनों जाति, नस्ल, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव को रोकते हैं. उनमें एक बड़ा अंतर यह है, कि अनुच्छेद 15 जाति, नस्ल, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव के खिलाफ एक व्यापक दायरा प्रदान करता है, और अनुच्छेद 29 उन लोगों के लिए विशिष्ट क्षतिपूर्ति प्रदान करता है, जिन्होंने प्रवेश या प्रवेश के समय राज्य संचालित शैक्षणिक संस्थानों से भेदभाव का सामना किया है. संविधान निर्माताओं ने शैक्षणिक संस्थानों द्वारा भेदभाव को रोकने के लिए अतिरिक्त कदम इसलिये उठाया क्योंकि किसी समुदाय के फलने-फूलने और बढ़ने के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है. इसलिये यह जरूरी है कि अल्पसंख्यक समुदायों को शिक्षा तक पहुंच मिले और भेदभाव के खिलाफ राहत मिले. दोनो अनुच्छेदों के बीच अंतर को इस चित्र से समझिये.
अनुच्छेद 29(1) और 30(1) के बीच संबंध
अनुच्छेद 29(1) उन समुदायों के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करता है जिनकी अलग भाषा, संस्कृति और लिपि है. अनुच्छेद 30(1) शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन के संबंध में अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करता है. इस प्रकार दोनों ही अनुच्छेद अल्पसंख्यकों को अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने की सुविधा प्रदान करते हैं. अंतर केवल इतना है कि 29(1) यह परिभाषित करता है कि अल्पसंख्यक समुदाय कौन हैं.
- मान्यता या संबद्धता का अधिकार, मौलिक अधिकार नहीं है: शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन करने का अल्पसंख्यक समुदायों का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, परन्तु संबद्धता या मान्यता मौलिक अधिकार नही है. सिद्धराज भाई बनाम गुजरात राज्य में अदालत ने संबद्धता को मौलिक अधिकार नही माना. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य और पी.ए. इनामदार बनाम महाराष्ट्र राज्य, यह माना गया कि सरकार को ऐसे नियम और विनियम स्थापित करने की अनुमति है जिनका पालन संस्थानों को संबद्धता प्राप्त करने के लिए पालन करना, बशर्ते वे उत्कृष्टता के लिये हों.
- इस्लामिक एकेडमी ऑफ एजुकेशन बनाम कर्नाटक राज्य, एआईआर 2003 एससी 3724 में न्यायालय ने कहा कि जिन शैक्षणिक संस्थानों को राज्य द्वारा सहायता नहीं दी जाती है, वे स्वायत्तता के हकदार हैं परन्तु उन्हें योग्यता के सिद्धांत की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.
- पी.ए. इनामदार बनाम महाराष्ट्र राज्य: निजी शैक्षणिक संस्थान में आरक्षण को अनुच्छेद 30 और 19(1)(जी) का उल्लंघन माना. न्यायालय ने कहा कि ऐसी नीतियां सीटों के 'राष्ट्रीयकरण' का कारण बनेंगी. न्यायालय का मानना है कि ऐसी नीतियों से अल्पसंख्यक समुदायों को स्वायत्त रूप से शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रबंधित करने के अनुच्छेद 30 का उल्लंघन होता है.
- बाल पाटिल बनाम भारत संघ में, अदालत ने जैनों को अल्पसंख्यक अधिनियम की धारा 2(सी) के तहत अल्पसंख्यक नही माना.