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भारतीय संविधान के भाग-3 में मौलिक अधिकार भाग -1

इंग्लैंड के किंग जॉन ने सन् 1215 में सामंतों के दबाव में जनता के अधिकारों को एक लिखित दस्‍तावेज़ जारी किया था जिसे मैग्नाकार्टा कहा जाता है. भारत से संविधान में मौनिक अधिकारों की तुलना मैग्नाकार्टा से की जाती है. इसी प्रकार अमरीका के संविधान में बिल ऑफ राइट्स है जिसमें लोगों को अधिकार दिये गये है. मौलिक अध्किार भारत के संविधान के भाग III में अनुच्छेद 12-35 तक हैं.

नागरिकों को प्रदान किए गए अधिकांश मौलिक अधिकारों का दावा राज्‍य के विरुध्‍द किया जाता है न कि निजी व्‍यक्तियों के विरुध्‍द. अनुच्छेद 12 राज्‍य शब्द को परिभाषित करता है. "राज्य'' में भारत की सरकार और संसद तथा प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल तथा भारत के क्षेत्र के भीतर या उसके नियंत्रण में आने वाले सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी शामिल हैं. राज्य कुछ उपकरणों के माध्यम से भी काम करता है. ये उपकरण भी अनुच्छेद 12 में 'राज्य' के दायरे में आते हैं. जिन एजेंसियों के माध्यम से राज्‍य अपने कार्यों का निर्वहन करता है, उन्हें भी राज्य ही माना जाना चाहिए. यह सवाल भी उठाया जाता है कि क्‍या न्यायपालिका अनुच्‍छेद 12 के अंतर्गत राज्‍य के अंतर्गत आती है. यदि न्‍यायपालिका को भी राज्‍य माना गया तो यह भी मानना होगा कि हमारे मौलिक अधिकारों का संरक्षक स्वयं उनका उल्लंघन करने में सक्षम है. Rupa Ashok Hurra v. Ashok Hurra, 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व के निर्णय की पुनः पुष्टि करते हुये निर्णय दिया है कि किसी भी न्यायिक कार्यवाही को किसी भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला नहीं कहा जा सकता है. उच्च न्यायालय अनुच्छेद 12 के तहत राज्‍य या अन्य प्राधिकरण के दायरे में नहीं आते हैं.

भारत के संविधान में मौलिक अधिकार असीमित नहीं हैं. उनपर राज्‍य के व्दारा उचित एवं आवश्‍यक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. क्‍या उचित एवं आवश्‍यक है इसका फैसला करने का अधिकार न्‍यायालय को है. इसलिये इन प्रतिबंधों से व्‍यथित व्‍यक्ति न्‍यायालय की शरण में जा सकता है. अनुच्‍छेद 32 लोगों को सीधा सर्वोच्‍च न्‍यायाल के समक्ष जाने की अनुमति देता है. यह भी ध्‍यान रखना ज़रूरी है कि अनुच्‍छेद 32 से अंतर्गत सर्वोच्‍च न्‍यायालय की शरण में जाने का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है.

न्यायिक समीक्षा - भारत के संविधान का अनुच्छेद 13 यह घोषित करता है कि मौलिक अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ शून्य होंगी. सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 32 में और उच्च न्यायालयों को अनुच्छेद 226 में न्‍यायिक समीक्षा के व्दारा ऐसी विधियों को शून्‍य घोषित करने का अधिकार प्राप्त है.

संविधान में अनुच्‍छेद 14 से 32 तक 6 मौलिक अधिकार हैं -

  1. समता का अधिकार - अनुच्छेद 14 से 18.
  2. स्वतंत्रता का अधिकार - अनुच्छेद 19 से 22.
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार - अनुच्छेद 23 एवं 24.
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार - अनुच्छेद 25 से 28.
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार - अनुच्छेद 29 एवं 30.
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार - अनुच्छेद 32.

अनुच्छेद 31के अंतर्गत संपत्ति का अधिकार मूल संविधान में मौलिक अधिकारों में शामिल था, परन्‍तु 44वें संविधान अधिनियम, 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों से हटाकर संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 300 (A) में रख दिया गया है.

कुछ अधिकार केवल भारत के नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं, जबकि अन्य सभी व्यक्तियों के लिये उपलब्ध हैं. व्‍यक्तियों में विदेशी नागरि‍क भी शामिल है और परिषदों एवं कंपनियाँ जैसे कानूनी व्यक्ति भी.

मौलिक अधिकारों का निलंबन -

  1. राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 20 और 21 में दिये गये अधिकारों को छोड़कर अन्‍य मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है.
  2. अनुच्छेद 19 में उल्लिखित मौलिक अधिकारों को केवल उसे स्‍थित में निलंबित किया जा सकता है, जब राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा, युद्ध या विदेशी आक्रमण के आधार पर की गई हो. इन्हें सशस्त्र विद्रोह या आंतरिक आपातकाल के आधार पर स्थगित नहीं किया जा सकता है.
  3. सशस्त्र बलों, अर्द्ध-सैनिक बलों, पुलिस बलों, गुप्तचर संस्थाओं आदि सेवाओं के लिये संसद मोलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा सकती है - अनुच्छेद 33.
  4. यदि कोई इलाका फौजी कानून या सैन्य शासन के अंतर्गत हो तो वहां भी मोलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है.

वे मौलिक अधिकार जो शत्रु देश के लोगों को छोड़कर अन्‍य सभी व्‍यक्तियों को प्राप्‍त हैं, चाहे वह नागरिक हो अथवा नहीं -

  1. कानून के समक्ष समता.
  2. अपराधों के दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण.
  3. प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण.
  4. प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार.
  5. कुछ मामलों में गिरफ्तारी और नज़रबंदी के खिलाफ संरक्षण.
  6. बलात् श्रम एवं अवैध मानव व्यापार के विरुद्ध प्रतिषेध.
  7. कारखानों में बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध.
  8. धर्म की अभिवृद्धि के लिये प्रयास करने की स्वतंत्रता.
  9. धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता.
  10. किसी धर्म को प्रोत्साहित करने हेतु कर से छूट.
  11. कुछ विशिष्ट संस्थानों में धार्मिक आदेशों को जारी करने की स्वतंत्रता.

केवल नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार, जो विदेशियों को प्राप्त नहीं है

  1. धर्म, मूल वंश, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध.
  2. लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता.
  3. अनुच्छेद 19 में उल्लिखित स्वतंत्रता के छह मौलिक अधिकारों का संरक्षण.
  4. अल्पसंख्यकों की भाषा, लिपि और संस्कृति का संरक्षण.
  5. शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार.

आज हम समानता के अधिकार पर बात करेंगे जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 और 18 में दिये गये हैं. इन्‍हें आप इस चित्र में दी गई ट्रिक से याद कर सकते हैं - यह ट्रिक है - एक डाउट - ईक्‍वालिटी (समानता) अनुच्‍छेद - 14, डिस्क्रिमिनेशन (भेदभाव) अनुच्‍छेद - 15, ऑपरचुनिटी (अवसर) अनुच्‍छेद - 16, अनटचेबिलिटी (अस्‍पृश्‍यता) अनुच्‍छेद - 17, टाइटिल (खिताब) अनुच्‍छेद - 18.

विधि के समक्ष समता: अनुच्छेद 14 - स्थिति और अवसर की समानता की बात भारत के संविधान की प्रस्तावना में भी कही गई है. यह अधिकार नागरिक एवं अन्‍य सभी व्यक्तियों को मिला हुआ है. इसके 2 पहलू हैं -

  1. विधि के समक्ष समता (Equality Before Law) - यह अवधारणा इंग्लिश कॉमन लॉ से ली गई है जिसका अर्थ है कि किसी भी व्‍यक्ति को कोई विशेषाधिकार नही है. सभी पर कानून समान रूप से लागे है. कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है. इसे विधि का शासन भी कहते हैं. (Rule of Law).
  2. विधियों का समान संरक्षण (Equal Protection of Law) - यह अवधारणा अमेरिकी संविधान के चौदहवें संशोधन के पहले खंड के अंतिम भाग पर आधारित है. यह सभी लोगों को बिना पक्षपात के कानून की समान सुरक्षा की गारंटी देता है. यह राज्य से सकारात्मक कार्रवाई की अपेक्षा करता है. समान परिस्थितियों में सभी को समान उपचार की गारंटी है. यह भी कि असमान लोगों के बीच समानता करना भी अन्‍याय होगा.

अपवाद -

  • अनुच्छेद 361 - भारत के राष्ट्रपति एवं राज्‍यों के राज्यपाल अपने कार्यकाल में किये गए किसी कार्य के लिये किसी भी न्यायालय में जवाबदेह नहीं होंगे. राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध उनकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्यवाही प्रारंभ नहीं की जा सकती.
  • अनुच्छेद 361-A - संसद या राज्य विधानसभा की कार्यवाही से संबंधित विषय-वस्तु का प्रकाशन करने पर न्यायालय में वाद नही चलाया जा सकता.
  • अनुच्छेद 105 - संसद या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी.
  • अनुच्छेद 194 - राज्य के विधानमंडल में या उसकी किसी समिति में विधानमंडल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी.
  • विदेशी शासक, राजदूत एवं कूटनीतिज्ञ, दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों से मुक्त होंगे.
  • अनुच्‍छेद 14 पर महत्‍वपूर्ण न्‍यायालयीन निर्णय -

    1. E.P. Royappa v. State of Tamil Nadu, 1974, में सर्वोच्‍च न्‍यायालय में कहा कि अनुच्‍छेद 14 राज्‍य की मनमानी के विरुध्‍द संरक्षण देता है.
    2. S.G. Jaisinghani v. Union of India में न्‍यायमूर्ति सुब्‍बाराव निर्णय के पैराग्राफ 14 में कहा “In this context it is important to emphasize that the absence of arbitrary power is the first essential of the rule of law upon which our whole constitutional system is based. In a system governed by rule of law, discretion, when conferred upon executive authorities, must be confined within clearly defined limits.”
    3. Maneka Gandhi v. Union of India, 1978, में न्‍यायमूर्ति भगवती ने कहा है कि समता राज्‍य की मनमानी के विरुध्‍द अधिकार देती है. राज्‍य से सभी के प्रति समान व्‍यवहार अपेक्षित है. इस प्रकरण में 7 जजों की पीठ ने इसे एक गोल्‍डन ट्राईएंगल माना है जैसा इस चित्र में दिखाया गया है - a trinity exists between Article 14, Article 19 and Article 21. All these articles have to be read together. Any law interfering with personal liberty of a person must satisfy a triple test: (i) it must prescribe a procedure; (ii) the procedure must withstand the test of one or more of the fundamental rights conferred under Article 19 which may be applicable in a given situation; and (iii) it must also be liable to be tested with reference to Article 14.”

    4. Ram Krishna Dalmia v. Justice Tendolkar, 1958 में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने कहा हैकि अनुच्‍छेद 14 के प्रतिबंध के बावजूद राज्‍य वर्गीकरण कर सकता है - provided that the classification is founded on intelligible differentia (i.e. objects within the class are clearly distinguishable from those that are outside) and has a rational nexus with the objective sought to be achieved by the classification.

    5. Indra Sawhney v UOI, 1993 आरक्षण के संबंध में अतिमहत्‍वपूर्ण निर्णय है. इसमें न्‍यायालय ने माना है कि - Article 16(1) is a facet of Article 14. Just as Article 14 permits reasonable classification, so does Article 16(1). A classification may involve reservation of seats or vacancies. The principle aims of Article 14 and 16 is equality and equality of opportunity and Clause (4) of Article 16 is a means of achieving the very same objective. Both the provisions have to be harmonized keeping in mind the fact that both are the restatements of the principle of equality enshrined in Article 14.”
    6. Visakha v State of Rajasthan, 1997 में अनुच्‍छेद 14, 19 एवं 21 के अंर्तगत working women के अधिकारों की व्‍याख्‍या की गई है. न्‍यायालय ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को लैंगिक समानता के महिलाओं के अधिकार का उल्‍लंघन माना और गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्‍लंघन भी माना.
    7. National Legal Service Authority [NALSA] v UOI, 2014 में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने तृतीय लिंग के व्‍यक्तियों के विरुध्‍द भेदभाव को मौलिक अधिकारों का उल्‍लंघन माना.
    8. Shayara Bano v UOI, 2016 में 5 जजों की पीठ ने तीन तालक को (तलाक उउल बिद्दत) को असंवैधानिक करार दिया.

    भेदभाव पर रोक - अनुच्छेद 15 - राज्य द्वारा किसी नागरिक के प्रति केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान को लेकर विभेद नहीं किया जाएगा. यह अधिकार केवल नागरिकों को मिला है.

    अपवाद -

    महिलाओं, बच्चों, सामाजिक या शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के उत्थान के लिये कानून में विशेष प्रावधान किये जा सकते हैं. (Positive discrimination) उदाहरण के लिये, आरक्षण, मुफ्त शिक्षा आदि.

    सार्वजनिक नियोजन में अवसर की समानता - अनुच्छेद 16 - राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समता होगी.

    अपवाद -

    1. राज्य की सेवाओं में समान प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण राज्य नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान कर सकता है.
    2. किसी संस्था के कार्यकारी परिषद के सदस्य के लिये धार्मिक आधार पर व्यवस्था की जा सकती है.

    अस्पृश्यता का उन्मूलन - अनुच्छेद 17 - अस्पृश्यता समाप्त कर दी गई है और किसी भी रूप में इसका आचरण निषिद्ध है तथा अपराध भी है जो दंडनीय है. अस्पृश्यता के अपराध के दोषी व्यक्ति को संसद या राज्य विधानसभा के लिये चुनाव हेतु अयोग्य भी घोषित किया गया है.

    इन अपराधों में शामिल हैं -

    1. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता का प्रचार.
    2. किसी भी व्यक्ति को किसी भी दुकान, होटल, सार्वजनिक पूजा स्थल और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थान में प्रवेश करने से रोकना.
    3. अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों या छात्रावासों में सार्वजनिक हित के लिये प्रवेश से रोकना.
    4. पारंपरिक, धार्मिक, दार्शनिक या अन्य आधारों पर अस्पृश्यता को उचित ठहराना.
    5. अस्पृश्यता के आधार पर अनुसूचित जाति के व्यक्ति का अपमान करना.

    People’s Union for Democratic Rights v. Union of India, AIR 1982 में सर्वोच्‍च नयायालय ने कहा है कि यदि अनुच्‍छेद 17 के अंतर्गत अधिकारों का हनन किसी निजी व्‍यक्ति व्दारा किया जाता है तो राज्‍य का यह कर्तव्‍य है कि वह पीड़ित की रक्षा करे और तत्‍काल कार्यवाही करे. State of Karnataka v. Appa Balu Ingale में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने कहा है कि अस्‍पृश्‍यता एक प्रकार से गुलामी प्रथा ही है.

    उपाधियों का उन्मूलन - अनुच्छेद 18 - उपाधियों का अंत करता है और इस संबंध में चार प्रावधान करता है:

    1. राज्य सेना या शिक्षा संबंधी सम्मान के अलावा और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा.
    2. भारत का कोई नागरिक विदेशी राज्य से कोई उपाधि प्राप्त नहीं करेगा.
    3. राज्य के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से कोई भी उपाधि भारत के राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं कर सकता.
    4. राज्य के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं कर सकता. Balaji Raghavan v. Union of India, AIR 1996, में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने माना है कि भारत रत्‍न, और पद्म पुरस्कार अनुच्‍छेद 18 के अंतर्गत उपाधि नहीं हैं.

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