वापस जायें / Back
भारत के संविधान में नागरिकता संबंधी प्रावधान (अनुच्छेद 5 से 11)
नागरिकता व्यक्ति और राज्य के बीच संबंध को दर्शाती है. किसी भी राज्य में भी दो तरह के लोग रहते हैं - नागरिक और विदेशी. भारत के नागरिक, भारतीय राज्य के पूर्ण सदस्य हैं और उसके प्रति निष्ठावान हैं. उन्हें सभी नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं. 'नागरिकता' का विचार गैर-नागरिकों को कुछ अधिकारों से वंचित करता है.
भारत के राष्ट्रपति की यूट्यूब चैनल President of India पर Creative Commons Attribution license (reuse allowed) के अंतर्गत उपलब्ध पूर्व राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद के राष्ट्र के नाम संदेश में सुनिये कि महामहिम राष्ट्रपति जी कह रहे हें कि भारत उसके सभी नागरिकों के लिये है.
नागरिकता प्रदान करने के दो प्रसिद्ध सिद्धांत हैं:
- ‘jus soli’ का सिद्धांत जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है.
- ‘jus sanguinis’ का सिद्धांत रक्त संबंधों को मान्यता देता है.
भारत में ‘jus soli’ को ही माना जाता है. ‘jus sanguinis’ के विचार को नस्लीय मानते हुए संविधान सभा ने खारिज कर दिया था. संविधान सभा ने उसे भारतीय विचारधारा के विरुध्द माना था.
स्वतंत्रता पूर्व युग में ब्रिटिश नागरिकता अधिनियम और वर्ष 1914 का विदेशी अधिकार अधिनियम लागू था. इसे वर्ष 1948 में भारत में निरस्त कर दिया गया था. ब्रिटिश राष्ट्रीयता अधिनियम के तहत भारतीयों को ब्रिटेन की नागरिकता नहीं मिली थी, परन्तु उन्हें बिना नागरिकता के अस्थायी रूप से ब्रिटिश प्रजा माना गया था. वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान के बीच बड़े पैमाने पर जनसंख्या की आवाजाही हुई. लोग अपनी पसंद के देश में रहने और उस देश की नागरिकता हासिल करने के लिये स्वतंत्र हो गये. संविधान सभा ने इन प्रवासियों की नागरिकता के निर्धारण के तात्कालिक उद्देश्य के लिये संविधान में नागरिकता संबंधी प्रावधान किये.
संविधान का भाग II में अनुच्छेद 5 से 11, नागरिकता से संबंधित हैं. परन्तु इसमें कोई स्थायी व्यवस्था नहीं की गई है. ये अनुच्छेद केवल उन व्यक्तियों की पहचान करते है जो संविधान के प्रारंभ के समय अर्थात् 26 जनवरी, 1950 को भारत के नागरिक बन गए थे. साथ ही अनुच्छेद 11 संसद को नागरिकता से संबंधित कानून बनाने का अधिकार देता है. तदनुसार संसद ने नागरिकता अधिनियम, वर्ष 1955 बनाया है, जिसमें समय-समय पर संशोधन भी किया गया है.
संविधान के संबंधित अनुच्छेदों का पाठ निम्नानुसार है -
5. संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता– इस संविधान के प्रारंभ पर प्रत्येक व्यक्ति जिसका भारत के राज्यक्षेत्र मे अधिवास हैऔर–
(क) जो भारत के राज्यक्षेत्र मे जन्मा था, या
(ख) जिसके माता या पिता मे से कोई भारत के राज्यक्षेत्र मे जन्मा था, या
(ग) जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले कम से कम पांच वर्ष तक भारत के राज्यक्षेत्र मे मामूली तौर से निवासी रहा है,
भारत का नागरिक होगा.
6. पाकिस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार– अनुच्छेद 5 मे किसी बात के होते हए भी, कोई व्यक्ति जिसने ऐसे राज्यक्षेत्र से जो इस समय पाकिस्तान के अंतगर्त है, भारत के राज्यक्षेत्र को प्रव्रजन किया है, इस संविधान के प्रारंभ पर भारत का नागरिक समझा जाएगा–
(क) यदि वह अथवा उसके माता या पिता मे से कोई अथवा उसके पितामह या पितामही या मातामह या मातामही मे से कोई (मूल रूप में यथा अधिनियमित) भारत शासन अधिनियम, 1935 मे परिभाषित भारत मे जन्मा था ; और
(ख) (i) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है जिसने 19 जुलाई, 1948 से पहले इस प्रकार प्रव्रजन किया है तब यदि वह अपने प्रव्रजन की तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र मे मामूली तौर से निवासी रहा है ; या
(ii) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है जिसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके पश्चात् इस प्रकार प्रव्रजन किया है तब यदि वह नागरिकता प्राप्ति के लिए भारत डोमीनियन की सरकार द्वारा विहित प्ररूप मे और रीति से उसके द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले ऐसे अधिकारी को, जिसे उस सरकार ने इस प्रयोजन के लिए नियुक्त किया है, आवेदन किए जाने पर उस अधिकारी द्वारा भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया है :
परंतु यदि कोई व्यक्ति अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम छह मास भारत के राज्यक्षेत्र मे निवासी नहीं रहा है तो वह इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत नहीं किया जाएगा.
7. पाकिस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार– अनुच्छेद 5 और अनुच्छेद 6 में किसी बात के होते हुए भी, कोई वयक्ति जिसने 1 मार्च, 1947 के पश्चात् भारत के राज्यक्षेत्र से ऐसे राज्यक्षेत्र को, जो इस समय पाकिस्तान के अंतगर्त है, प्रव्रजन किया है, भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा :
परंतु इस अनुच्छेद की कोई बात ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्यक्षेत्र को, जो इस समय पाकिस्तान के अंतगर्त है, प्रव्रजन करने के पश्चात भारत के राज्यक्षेत्र को ऐसी अनुज्ञा के अधीन लौट आया है जो पुनर्वास के लिए या स्थायी रूप से लौटने के लिए किसी विधि के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन दी गई है और प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के बारे मे अनुच्छेद 6 के खंड (ख) के प्रयोजन के लिए यह समझा जाएगा कि उसने भारत के राज्यक्षेत्र को 19 जुलाई , 1948 के पश्चात प्रव्रजन किया है.
8. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार– अनुच्छेद 5 मे किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति जो या जिसके माता या पिता मे से कोई अथवा पितामह या पितामही या मातामह या मातामही मे से कोई (मलू रूप मे यथा अधिनियमित) भारत शासन अधिनियम, 1935 मे परिभाषित भारत मे जन्मा था और जो इस प्रकार परिभाषित भारत के बाहर किसी देश मे मामूली तौर से निवास कर रहा है, भारत का नागरिक समझा जाएगा, यदि वह नागरिकता प्राप्ति के लिए भारत डोमीनियन की सरकार द्वारा या भारत सरकार द्वारा विहित प्ररूप मे और रीति से अपने द्वारा उस देश मे, जहां वह तत्समय निवास कर रहा है, भारत के राजनायिक या कौंसिल या प्रतिनिधि को इस सविधान के प्रारंभ से पहले या उसके पश्चात् आवेदन किए जाने पर ऐसे राजनायिक या कौंसिल या प्रतिनिधि द्वारा भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया है.
9. विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्ति का नागरिक न होना– यदि किसी व्यक्ति ने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है तो वह अनुच्छेद 5 के आधार पर भारत का नागरिक नहीं होगा अथवा अनुच्छेद 6 या अनुच्छेद 8 के आधार पर भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा.
10. नागरिकता के अधिकारों का बना रहना– प्रत्येक व्यक्ति, जो इस भाग के पूवर्गामी उपबंधों मे से किसी के अधीन भारत का नागरिक है या समझा जाता है, ऐसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जो संसद् द्वारा बनाई जाए, भारत का नागरिक बना रहेगा.
11. संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना– इस भाग के पूवर्गामी उपबंधों की कोई बात नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध मे उपबंध करने के संसद की शक्ति का अल्पीकरण नहीं करेगी.
वर्ष 1955 में संसद द्वारा अधिनियमित नागरिकता अधिनियम में नागरिकता की आवश्यकताओं और पात्रता के लिये विशिष्ट प्रावधान किये गए. नागरिकता अधिनियम, 1955 संविधान के लागू होने के बाद नागरिकता के पाने और समाप्त होने का प्रावधान करता है. मूल अधिनियम में राष्ट्रमंडल नागरिकता के लिये भी प्रावधान किया गया था, लेकिन यह प्रावधान नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 द्वारा निरस्त कर दिया गया था.
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने के पाँच तरीके निर्धारित करता है - जैसे जन्म, वंश, पंजीकरण, देशीयकरण और क्षेत्र का समावेश
1. जन्म द्वारा:
क. 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद लेकिन 1 जुलाई, 1987 से पहले भारत में पैदा हुआ व्यक्ति जन्म से भारत का नागरिक है, भले ही उसके माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो.
ख. 1 जुलाई, 1987 को या उसके बाद भारत में पैदा हुए व्यक्ति को भारत का नागरिक तभी माना जाता है, जब उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो.
ग. 3 दिसंबर, 2004 को या उसके बाद भारत में जन्म लेने वालों को भारत का नागरिक तभी माना जाता है, जब उनके माता-पिता दोनों भारत के नागरिक हों या जिनके माता-पिता में से एक भारत का नागरिक हो और दूसरा बच्चे के जन्म के अवैध प्रवासी न हो.
परन्तु, भारत में तैनात विदेशी राजनयिकों के बच्चे और शत्रु एलियंस जन्म से भारतीय नागरिकता हासिल नहीं कर सकते.
2. पंजीकरण द्वारा:
केंद्र सरकार, आवेदन देने पर, ऐसे किसी भी व्यक्ति जो अवैध प्रवासी न हो, को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है, यदि वह निम्नलिखित में से किसी भी श्रेणी से संबंधित है:
क. भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो पंजीकरण के लिये आवेदन करने से पहले सात साल से भारत में सामान्य रूप से निवासी है;
ख. भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी भी देश या स्थान में सामान्य रूप से निवासी है;
ग. ऐसा व्यक्ति जो भारत के नागरिक से विवाहित है, और पंजीकरण के लिये आवेदन करने से पहले सात साल से भारत में सामान्य रूप से निवासी है;
ड. ऐसे व्यक्तियों के नाबालिग बच्चे जो भारत के नागरिक हैं;
च. पूर्ण आयु और क्षमता का ऐसा व्यक्ति जिसके माता-पिता भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हैं;
छ. पूर्ण आयु और क्षमता का ऐसा व्यक्ति, जो स्वयं या जिसके माता-पिता में से कोई भी स्वतंत्र भारत का एक पूर्व नागरिक था और पंजीकरण के लिये आवेदन करने से ठीक पहले बारह महीने से भारत में सामान्य रूप से निवासी है;
ज. पूर्ण आयु और क्षमता का ऐसा व्यक्ति जो पाँच साल के लिये भारत के कार्डधारक के रूप में एक विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकृत है, और जो पंजीकरण के लिये आवेदन करने से पहले बारह महीने के लिये भारत में सामान्य रूप से निवासी है.
किसी व्यक्ति को भारतीय मूल का माना जाएगा यदि वह या उसके माता-पिता में से कोई एक, अविभाजित भारत में या ऐसे अन्य क्षेत्र में पैदा हुआ था, जो 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बन गया.
भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत होने से पहले उपरोक्त सभी श्रेणियों के व्यक्तियों को निष्ठा की शपथ लेनी होगी.
3. वंश द्वारा:
क. 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद लेकिन 10 दिसंबर, 1992 से पहले भारत के बाहर पैदा हुआ व्यक्ति वंश से भारत का नागरिक है, यदि उसके पिता उसके जन्म के समय भारत के नागरिक थे.
ख. 10 दिसंबर, 1992 को या उसके बाद भारत से बाहर पैदा हुए व्यक्ति को भारत का नागरिक माना जाता है यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो.
ग. अगर भारत के बाहर या 3 दिसंबर, 2004 के बाद पैदा हुए व्यक्ति को नागरिकता हासिल करनी है तो उसके माता-पिता को यह घोषित करना होगा कि नाबालिग के पास दूसरे देश का पासपोर्ट नहीं है और उसका जन्म एक साल के भीतर भारतीय वाणिज्य दूतावास में पंजीकृत है.
4. प्राकृतिकरण द्वारा:
कोई व्यक्ति प्राकृतिकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त कर सकता है, यदि वह 12 साल (आवेदन की तारीख से 12 महीने पहले और कुल मिलाकर 11 साल) के लिये भारत का निवासी है और नागरिकता अधिनियम की तीसरी अनुसूची में सभी योग्यताओं को पूरा करता है.
5. प्रादेशिक निगमन द्वारा:
यदि कोई विदेशी क्षेत्र भारत का हिस्सा बन जाता है तो भारत सरकार उन व्यक्तियों को निर्दिष्ट करती है जो उस क्षेत्र के लोगों में से भारत के नागरिक होंगे. ऐसे व्यक्ति अधिसूचित तिथि से भारत के नागरिक बन जाते हैं.
अधिनियम दोहरी नागरिकता प्रदान नहीं करता है.
महत्त्वपूर्ण संशोधन
इस अधिनियम में वर्ष 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और 2019 में संशोधन किया गया है. इन संशोधनों के माध्यम से संसद ने जन्म के आधार पर नागरिकता के सिद्धांतों को संकुचित किया है.
1. वर्ष 1986 का संशोधन:
इस संशोधन से इस शर्त को जोड़ा गया था, कि जो लोग 26 जनवरी 1950 के बाद लेकिन 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में पैदा हुए थे वही भारतीय नागरिक होंगे. 1 जुलाई, 1987 के बाद और 4 दिसंबर, 2003 से पहले जन्म लेने वालों को भारत में अपने जन्म के आधार पर नागरिकता तभी मिल सकती है जब जन्म के समय उनके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो.
2. वर्ष 2003 का संशोधन:
बांग्लादेश से घुसपैठ को ध्यान में रखते हुए, इस संशोधन ने उपर्युक्त शर्त को और अधिक कठोर बना दिया. 4 दिसंबर, 2004 को या उसके बाद पैदा हुए लोगों के लिये, माता-पिता दोनों को भारतीय नागरिक होने चाहिए अथवा माता-पिता में से एक को भारतीय नागरिक होना चाहिए और दूसरे को अवैध प्रवासी नहीं होना चाहिए. इसके अतिरिक्त अवैध प्रवासी देशीकरण या पंजीकरण द्वारा नागरिकता का दावा नहीं कर सकता, भले ही वह सात साल से भारत का निवासी हो.
3. वर्ष 2005 का संशोधन:
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2005 में सभी देशों के भारतीय मूल के व्यक्तियों को विदेशी भारतीय नागरिकता प्रदान करने के (पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर) प्रावधान शामिल किये गए थे. इन्हें 2015 में पुन: संशोधित किया गया.
4. वर्ष 2015 का संशोधन:
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 ने मूल अधिनियम में प्रवासी भारतीय नागरिक (OCI) से संबंधित प्रावधानों को संशोधित किया है. इसने भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) कार्ड योजना और OCI कार्ड योजना को मिलाकर "ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्डधारक" नामक एक नई योजना शुरू की है.
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 के संबंध में यूट्यूब की चैनल Bharatiya Janata Party पर Creative Commons Attribution license (reuse allowed) के अंतर्गत उपलब्ध माननीय मंत्री री राजनाथ सिंह जी के संसद में भाषण का यह वीडियो देखिये.
5. वर्ष 2019 का संशोधन:
इस संशोधन से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई, व्यक्ति, यदि वे 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश करते हैं, तो वे भारत में रहना जारी रख सकेंगे. यह संशोधन ने इन वर्गों को नागरिकता प्रदान करने के लिये निवास की आवश्यकता को भी 11 वर्ष से घटाकर मात्र 5 वर्ष कर दिया है. इन प्रवासियों को पासपोर्ट अधिनियम और विदेशी अधिनियम से भी छूट दी गई है. हाल ही में इस अधिनियम के अंतर्गत नियम अधिसूचित किये गए हैं. असम एवं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध किया गया, क्योंकि यह बांग्लादेशी हिंदू अवैध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान कर सकता है. इस संशोधन का औचित्य यह है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यक हैं, और धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिये भारत भाग आए हैं. इन देयाों में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं इसलिये, उनके लिये ऐसा प्रावधान नहीं किया गया है. यह पहली बार है जब धर्म के आधार पर नागरिकता देने के लिये कानून बनाया गया है.
नागरिकता की समाप्ति
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा-9 में किसी व्यक्ति की नागरिकता ख़त्म करने का भी ज़िक्र किया गया है. तीन तरीक़ों से किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता समाप्त हो सकती है. से हैं -
.1. यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी और देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वयं ही समाप्त हो जाएगी.
2. यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से अपनी नागरिकता का त्याग कर दे तो उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाएगी.
3. भारत सरकार को भी निम्न शर्तों के आधार पर अपने नागरिकों की नागरिकता समाप्त करने का अधिकार है -
क. नागरिक 7 वर्षों से लगातार भारत से बाहर रह रहा हो.
ख. यदि ये साबित हो जाए कि व्यक्ति ने अवैध तरीक़े से भारतीय नागरिकता प्राप्त की.
ग. यदि कोई व्यक्ति देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो.
घ. यदि व्यक्ति भारतीय संविधान का अनादर करे.