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ग्रामीण साख
साख का सामन्य शब्दों में अर्थ है – ऋण. साख अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था में निवेश के लिये धन उपलब्ध होता है, जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी होती है और अर्थव्य्वस्था में सुधार होता है.
ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश के लिये जो ऋण दिया जाता है उसे ग्रामीण साख कहा जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, पशुपालन, भूमि विकास, ग्रामोद्योग आदि गतिविधियों क लिये ऋण की आवश्य्कता होती है. पुराने समय में ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण का एकमात्र स्रोत साहूकार थे, जो लागों को बहुत उच्च ब्याज दर पर उनकी ज़मीन जायदाद को गिरवी रखकर ऋण देते थे. अक्सर लोग उनकी उच्च ब्याज दर के कारण ऋण नही लौटा पाते थे और अपनी भूमि से भी हाथ धो बैठते थे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद साहूकारों की लूट को रोकने के लिये अनेक कानून बनाये गये. इसके अतिरिक्त सरकार ने ग्रामीण साख उपलब्ध कराने के लिये अनेक सस्थागत प्रबंध भी किये. इनमे व्यावसायिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बेंक, सहकारी बैंक, आदि शामिल हैं.
प्रथम पंचवर्षीय योजना प्रारंभ होने के समय लगभग 70 प्रतिशत ग्रामीण ऋण साहूकारों व्दारा दिये जाते थे. 1954 में पहला अखिल भारतीय ग्रामीण साख सर्वेक्षण किया गया. इसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में साख की उपलब्ता बढ़ाने के लिये अनेक कार्य हुए –
- कृषि वित्त निगम (Agriculture Finance Corporation) वर्ष 1963 में गठित की गई.
- व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण 2 चरणों में वर्ष 1969 और 1980 में किया गया.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना 1975 में हुई.
- राष्ट्रीय कृषि विकास बैंक (NABARD) 1982 में बना.
- प्रायरिटी सेक्टर लैंडिंग में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान बना.
- सरकार और रिज़र्व बैंक के प्रयासों से तथा उपरोक्त सभी वित्तीय संस्थाओं के प्रयासों से कृषि, ग्रामोद्योग, ग्रामीण क्षेत्र की परियोजनाएं, ग्रामीण अधोसंरचना विकास, हरित क्रांति में कृषि साख आदि के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में साख का विकास होता रहा.
- वर्ष 1988 में नरसिंम्हरन समिति ने कहा कि बैंकों का संचालन व्यावसायिक तरीके से किया जाना चाहिये जिसमें लाभ कमाना मुख्य उद्देश्य हो. इसके कारण अनेक बेंको की ग्रामीण शाखाएं बंद कर दी गईं. अनेक क्षेत्रीय ग्रामीण बेंकों का आपस में विलय कर दिया गया. इस समय ग्रामीण साख सिकुड़ने लगी और साहूकारों की बन आई. /li>
- हाल ही में भारत सरकार ने जन धन योजना के रूप में वित्तीय समावेशन की बड़ी योजना प्रारंभ की है जिससे ग्रामीण साख में सुधार आने की आशा बंधी है.
ग्रामीण साख के मुख्य स्रोत
आज की स्थिति में ऐसा अनुमान है कि लगभग 63.56% ग्रामीण साख औपचारिक स्रोतों से और 36.4% अनौपचारिक स्रोतों से आती है.
औपचारिक स्रोतों में 3.61% शासन से, 25.37% सहकारी संस्थाओं से और 71.02% बैंकों से है. अनौपचारिक स्रोतों में जंमीदार से 2.34%, साहूकारों से 64.05%, दुकानदारों से 4.93%, रिश्तेदारों और मित्रों से 24.03% तथ अन्य स्रोतों से 4.65% हैं.
ग्रामीण साख के प्रमुख स्रोत हैं –
- सहकारी समितियां
- भूमि विकास बैंक
- व्यावसायिक बैंक
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
आलोचना
- ग्रामीण साख अभी भी आवश्यकता के अनुरूप उपलब नहीं हैं.
- अक्सर किसानों को मिलने वाले ऋण किसानो की आवश्यकता से कम होते हैं.
- इसके अतिरिक्त उपभेक्ता ऋण न मिलने के कारण कई बार हारी-बीमारी, शादी-ब्याह आदि में किसान निवेश के लिये प्राप्त ऋण का उपयोग करने पर बाध्य हो जाते हैं.
- गरीब किसानों को ऋण लेने में बड़ी कठिनाई होती है.
- लालफीताशाही भी एक बड़ी समस्या है.
- फसल अच्छी न होने पर किसानों को कोई सुरक्षा नहीं है जिसके कारण ऋणग्रस्तता बढ़ती जा रही है और ऋण माफी की मांग भी उठ रही है.
छत्तीसगढ़ की कुछ महत्वपूर्ण सांख्यिकी
- क्षेत्रीय ग्रामीण बेंकों की शाखाएं – वर्ष 2008 में 429, वर्ष 2017 में 597, 2018 में 607
- क्षेत्रीय ग्रामीण बेंकों की कुल साख – 2008 में 800 करोड़, 2017 में 2600 करोड़
- ज़िला सहकारी बेंक – 6, प्राथमिक सहकारी साख समितियां – 2257, अंश पूंजी – 190 करोड़, जमा – 3403 करोड़
- व्या–वसायिक बेंकों की शाखाएं – 31.03.2018 को 2621