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छत्तीसगढ़ में नगरीय प्रशासन
भारत में नगरीय प्रशासन का विकास
ब्रिटिश काल में नगरीय प्रशासन - भारत में नगरीय शासन व्यवस्था प्राचीन काल से ही प्रचलन में रही है, लेकिन इसे क़ानूनी रूप सर्वप्रथम 1687 में दिया गया, जब ब्रिटिश सरकार व्दारा मद्रास शहर के लिए नगर निगम संस्था की स्थापना की गयी. बाद में 1793 के चार्टर अधिनियम के अधीन मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई के तीनों महानगरों में नगर निगमों की स्थापना की गयी. बंगाल में नगरीय शासन प्रणाली को प्रारम्भ करने के लिए 1842 में बंगाल अधिनियम पारित किया गया. वर्ष 1882 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रिपन ने नगरीय शासन व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया, लेकिन वह राजनीतिक कारणों से अपने इस कार्य में असफल रहा. नगरीय प्रशासन के विकेन्द्रीकरण पर रिपोर्ट देने के लिए 1909 में शाही विकेन्द्रीकरण आयोग का गठन किया गया, जिसकी रिपोर्ट को आधार बनाकर भारत सरकार अधिनियम, 1919 में नगरीय प्रशासन के सम्बन्ध में स्पष्ट प्रावधान किया गया.<
स्वतंत्रता के बाद नगरीय प्रशासन -नगरीय शासन व्यवस्था के सम्बन्ध में मूल संविधान में कोई प्रावधान नहीं किया गया था, लेकिन इसे सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में शामिल करके यह स्पष्ट कर दिया गया था कि इस सम्बन्ध में क़ानून केवल राज्यही बना सकते थे. इन क़ानूनों के अनुसार नगरीय शासन व्यवस्था के संचालन के लिए निम्नलिखित निकायों को गठित करने के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया था - नगर निगम, नगर पालिका, नगर क्षेत्र समितियाँ, अधिसूचित क्षेत्र समिति तथा छावनी परिषद्.
74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम एवं नगरीय प्रशासन के संवैधानिक प्रावधान
22 दिसम्बर, 1992 को लोकसभा ने तथा 23 दिसम्बर, 1992 को राज्यसभा ने 74वां संविधान संशोधन पारित किया और 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति ने इसे अनुमति प्रदान की. इसे 1 जून, 1993 से लागू किया गया. इसके व्दारा संविधान में भाग 9-क के अंगर्तत नये अनुच्छेद (243 त से 243 य छ तक) एवं 12वीं अनुसूची जोड़कर निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं –
- अनुच्छेद 243 त – परिभाषा
- अनुच्छेद 243 थ - नगर पालिकाओं का गठन
- अनुच्छेद 243 द - नगर पालिकाओं की संरचना
- अनुच्छेद 243 ध - वार्ड समितियों आदि का गठन और संरचना
- अनुच्छेद 243 न - स्थानों का आरक्षण
- अनुच्छेद 243 प - नगर पालिकाओं की अवधि आदि
- अनुच्छेद 243 फ - सदस्यता के लिए निरर्हताएँ
- अनुच्छेद 243 ब - नगरपालिकाओं आदि की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तदायित्व
- अनुच्छेद 243 भ - नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियाँ
- अनुच्छेद 243 म - वित्त आयोग
- अनुच्छेद 243 य - नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा
- अनुच्छेद 243 य क - नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन
- अनुच्छेद 243 य ख - संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना
- अनुच्छेद 243 य ग - इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
- अनुच्छेद 243 य घ - ज़िला योजना के लिए समिति
- अनुच्छेद 243 य ङ - महानगर योजना के लिए समिति
- अनुच्छेद 243 य च - विद्यमान विधियों पर नगर पालिकाओं का बना रहना
- अनुच्छेद 243 य छ - निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन
बारहवीं अनुसूची
इसमें शामिल विषयों के सम्बन्ध में राज्य विधानमण्डल क़ानून बनाकर नगरीय संस्थानों को अधिकार एवं दायित्व सौंप सकते हैं –
- नगरीय योजना (इसमें शहरी योजना भी सम्मिलित है)
- भूमि उपयोग का विनियम और भवनों का निर्माण
- आर्थिक और सामाजिक विकास की योजना
- सड़के और पुल
- घरेलू, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों के निमित्त जल की आपूर्ति
- लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफ़ाई तथा कूड़ा-करकट का प्रबन्ध
- अग्निशमन सेवाएँ
- नगरीय वानिकी, पर्यावरण का संरक्षण और पारिस्थितिक पहलुओं की अभिवृध्दि
- समाज के कमज़ोर वर्गों (जिसके अन्तर्गत विकलांग और मानसिक रूप से मन्द व्यक्ति सम्मिलित हैं) के हितों का संरक्षण
- गन्दी बस्तियों में सुधार
- नगरीय निर्धनता में कमी
- नगरीय सुख-सुविधाओं, जैसे पार्क, उद्यान, खेल का मैदान इत्यादि की व्यवस्था
- सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौन्दर्यपरक पहलुओं की अभिवृध्दि
- क़ब्रिस्तान, शव गाड़ना, श्मशान और शवदाह तथा विद्युत शवदाह
- पशु-तालाब तथा जानवरों के प्रति क्रूरता को रोकना
- जन्म-मरण सांख्यिकी (जन्म-मरण पंजीकरण सहित)
- लोक सुख सुविधायें (पथ-प्रकाश, पार्किंग स्थल, बस स्टाप, लोक सुविधा सहित)
- वधशालाओं तथा चर्म शोधनशालाओं का विनियमन
छत्तीसगढ़ में नगरीय प्रशासन से संबंधित महत्वपूर्ण सांख्यिकी
- नगर पालिक निगम – 13 इनके वार्ड 688
- नगर पालिका परिषद् – 44 – इनके वार्ड 864
- नगर पंचायत – 111 – इनके वार्ड 3217
- कुल नगरीय निकाय – 168 – कुल वार्ड – 4769
नगर पालिक निगम
- इसमें महापौर एवं वार्डों के पार्षर्दो का प्रत्यक्ष निर्वाचन होता है.
- इसके अतिरिक्त विशेष अनुभव रखने वाले 6 सदस्य राज्य सरकार नामांकित कर सकती है जो एल्डरमैन कहलाते हैं.
- लोक सभा सांसद, एवं विधायक जिनका क्षेत्र पूर्ण अथवा आंशिक रूप से नगर पालिक निगम के क्षेत्र में आता है, अथवा उनके प्रतिनिधि
- राज्य सभा सदस्य जो उस नगर पालिक निगम के क्षेत्र में मतदाता सूची में पंजीक्रत हों
- एल्डरमैन का कार्यकाल शासन के विवेकाधिकार पर होता है. उसकी निश्चित अवधि निर्धारित नहीं है.
- बैठकों में मतदान का अधिकार केवल महापौर और निर्वाचित पार्षदों को है.
- किसी भी नगर पालिक निगम में वार्डो की न्यूनतम संख्या 40 एवं अधिकतम संख्या 70 हो सकती है, परंतु 10 लाख से अधिक जनसंख्या, वाले निगमों में वार्डों की संख्या 85 तक हो सकती है.
स्थानों का आरक्षण
- वार्डों की कुल संख्या में से आरक्षित अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित वार्डों की संख्या उस नगरीय क्षेत्र में यथास्थिति अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में होगी. ऐसे वार्डों को आरक्षित किया जायेगा जिनमें अजा/अजजा की जनसंख्या सर्वाधिक है.
- जिन निगमों में 50% या कम स्थान आरक्षित हैं तो कुल आबादी में अपिव की आबादी के अनुपात में 50% आरक्षण होने तक अपिव के लिये उनकी जनसंख्या के अवरोही क्रम में स्थान आरक्षित किये जायेंगे.
- यदि अपिव के लिये आरक्षित किसी वार्ड में कोई नामांकन फाइल नहीं होता है तो कलेक्टर उसे अनारक्षित वार्ड के रूप में घोषित करेगा.
- कुल स्थानों का एक तिहाई महिलाओं के लिये आरक्षित होगा. यह आरक्षण क्षैतिज आरक्षण होगा.
- महापौर के पदो का आरक्षण – कुल निगमों के महापौरों के पदों में से उस संख्या में महापौर के पद अजा/अजजा के लिये आरक्षित रखे जायेंगे जो राज्य के सभी निगमों की सीमाओं में अजा/अजजा की जनसंख्या के अनुपात में होगा. महापौर के पदों में से यथासंभव 25% अपिव के लिये आरक्षित किये जायेंगे. महापौर के पदों में भी एक तिहाई का महिलाओं के लिये क्षैतिज आरक्षण होगा.
- नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतों में भी आरक्षण नगर निगम के समान ही होगा.
मतदाताओं की अर्हता
आयु 18 वर्ष तथा निगम के किसी वार्ड का निवासी होना चाहिए.
महापौर/पार्षद के रूप में निर्वाचन की निरर्हता
- महापौर के लिये आयु 25 वर्ष तथा पार्षद के लिए 21 वर्ष न होने पर
- जमाखोरी, मुनाफाखोरी, खाद्य और औषधि अपमिश्रण या दहेज प्रतिषेध अधिनियम में दोषसिध्द, होने पर.
- विक्रत चित्त,
- दीवालिया
- शासन या स्थानीय प्राधिकारी की सेवा में हो या अभिभाषक हो
- निगम के किसी कार्य में हित रखता हो
- एक वर्ष से अधिक अवधि से निगम का बकायेदार हो
- विद्युत मंडल की 6 माह से अधिक की देनदारी हो
- वोटर लिस्ट में नाम न हो
- निर्धारित प्रारूप मे कलेक्टर के समक्ष शपथ लेना अनिवार्य है. यदि बिना संभागीय आयुक्त की अनुमति के महापौर या पार्षद 3 माह तक शपथ न ले तो उसका निर्वाचन स्वयमेव समाप्त होकर पद रिक्त हो जायेगा
अध्यक्ष/सभापति (स्पीकर)
- महापौर एवं पार्षदों के निर्वाचन की अधिसूचना के 15 दिन के भीतर कलेक्टर की उपस्थिति में आयोजित बैठक में गुप्त मतदान व्दारा पार्षदों में से एक अध्यक्ष निर्वाचित किया जायेगा.
- अध्यक्ष का कार्य निगम के सम्मिलनों की अध्यक्षता करना है. अध्यक्ष की अनुपस्थिति में अध्यक्ष व्दारा नामांकित 2 पार्षदों में से एक सम्मिलन की अध्यक्षता करेंगे.
- अध्यक्ष का कार्यकाल निगम के कार्यकाल के बाराबर होगा.
- अध्यक्ष के लिये आरक्षण का प्रावधान नही है.
- अध्यक्ष के विरुध्द अविश्वास प्रस्ताव – निगम के पार्षदों की कुल संख्या के 1/3 सदस्यों व्दारा कलेक्टर को हस्ताक्षर युक्त अनुरोध करने पर कलेक्टर व्दारा 10 दिनों के भीतर पूर्व सूचना देकर निगम का विशेष सम्मिलन आहूत किया जोयगा. इस सम्मिलन में उपस्थित तथा मतदान करने वाले निर्वाचित पार्षदों के 2/3 बहुमत से तथा कुल पार्षदों के आधे से अधिक सदस्यों व्दारा अध्यक्ष को हटाये जाने का प्रस्ताव पारित होने पर अध्यक्ष का पद रिक्त हो जायेगा. अध्यक्ष के पद ग्रहण करने से 2 वर्ष के भीतर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता.
महापौर, अध्यक्ष या पार्षद का हटाया जाना
राज्य सरकार की राय में यदि महापौर या अध्यक्ष का पद पर बने रहना लोकहित में या निगम हित में वांछनीय न हो या वे अपने कर्तव्य के पालन में अक्षम हों या निर्धारित आरक्षित प्रवर्ग से न हों तो राज्य सरकार संबंधित को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात पद से हटाने का आदेश पारित कर सकेगी.
पार्षदों को भी इन्हीं कारणों से तथा ऐसी ही प्रक्रिया का पालन करके संभागायुक्त वदारा पद से हटाया जा सकेगा.
महापौर व्दारा त्यागपत्र
लिखित में त्याग पत्र देने पर राज्य सरकार उसे स्वीकार कर सकती है, परंतु कदाचरण के दोषी महापौर का त्यागपत्र स्वीकार नहीं किया जायेगा.
अध्यक्ष एवं पार्षदों का त्यागपत्र
अध्यक्ष या पार्षद महापौर के माध्यम से अथवा सीधे संभाग आयुक्त को त्याग पत्र प्रस्तुत कर सकते हैं.
महापौर का वापस बुलाया जाना
निर्वाचित पार्षदों के तीन चौथाई यदि हस्ताक्षरयुक्त अनुरोध प्रस्तुत करते हैं तो वापस बुलाने के लिये गुप्त मतदान कराया जायेगा और यदि निगम क्षेत्र के कल मतदाताओं के आधे से अधिक वापस बुलाने के पक्ष में मतदान करते हैं तो महापौर का पद रिक्त हो जायेगा. यह प्रक्रिया महापौर के पद धारण करने के दो वर्ष के भीतर प्रारंभ नहीं की जायेगी.
नगर पालिक निगम की अवधि
प्रथम सम्मिलन से 5 वर्ष. यदि किसी पद की रिक्ति निगम का कार्यकाल 6 माह से अधिक रहने पर होती है तभी उस पद के लिये कार्यकाल की शेष अवधि हेतु निर्वाचन कराया जायेगा.
पार्षदों के कर्तव्य
- निगम के सम्मिलनों में उपस्थित होना तथा एजेंडा में शामिल विषयों पर अपना पक्ष रखना तथा वोट देना.
- निगम की किसी योजना के क्रियांवयन में कमी अथवा निगम को होने वाली हानि के प्रति आयुक्त अथवा संबंधित अधिकारी का ध्यान आकृष्ट करना.
निगम का सम्मिलन
- प्रत्येक 2 माह में कम से कम एक बार आवश्यक.
- आयुक्त ऐजेंडा तैयार कर महापौर को प्रस्तुत करेगा और महापौर के अनुमोदन के बाद अध्यक्ष को भेजेगा.
- अध्यक्ष एजेंडा के विषयों के साथ सम्मिलन की सूचना सभी पार्षदों को भिवायेगा.
- विशेष सभा – पार्षदों के 1/3 के लिखित आवेदन पर विशेष सभा बुलाई जाती है.
- कोरम – पार्षदों की कुल संख्याा का 1/3 कोरम है. कोरम के अभाव मेंआगामी बैठक की तिथि एवं समय निर्धारित करके अध्यक्ष बैठक स्थागित कर देगा. स्थगित बैठक में कोरम की आवश्यकता नहीं होगी.
- सम्मिलन में सामान्य व्यवस्था बनाए रखने का दायित्व अध्यक्ष का है.
मेयर इन काउंसिल
- पाषदों एवं अध्याक्ष के निर्वाचन के 7 दिन के भीतर महापौर निर्वाचित पार्षदों में से उनकी संख्या के 20% के बारबर सदस्यों को लेकर मेयर इन काउंसिल (महापौर परिषद्) गठन करेगा. इसमें कम से कम 5 और अधिक से अधिक 10 सदस्य होंगे.
- मेयर इन काउंसिल में कम से कम 1 सदस्य अजा या अजजा वर्ग से होगा कम से कम 1 अपिव से होगा और कम से कम 1 महिला सदस्य होगी.
- मेयर इन काउंसिल के सदस्य महापौर के प्रसाद पर्यन्त कार्य करेंगे.
- इन सदस्यों को विभिन्न विभागों का प्रभारी बनाया जा सकता है.
- मेयर इन काउंसिल की बैठक का कोरम आधे सदस्यों का है और निर्णय बहुमत से लिया जाता है.
- नगर पालिका एवं नगर पंचायत में इसे प्रैसिडेंट इन कांउसिल कहा जाता है.
सलाहकार समितियां
- मेयर इन काउंसिल के प्रत्येक सदस्य के विभाग हेतु अध्यक्ष सलाहकार समितियों का गठन कर सकेगा.
- प्रत्येक समिति में 7 से 9 सदस्य होंगे
- मेयर इन काउंसिल का प्रभारी सदस्य प्रत्येक माह अपने विभाग की सलाहकार समिति की बैठक आयोजित करेगा.
वार्ड समितियां
3 लाख से अधिक जनसंख्या वाली निगमों मे न्युनतम 3 समितियां. 1 लाख पर एक समिति. निर्वाचित पार्षद तथा क्षेत्र में निवास करने वाले 2 व्यक्ति इसके सदस्य होते हैं. इन्हें महापौर नामांकित करते हैं. यह राज्य सरकार व्दारा निर्धारित कार्य संपादित करती हैं.
मुहल्ला समितियां
निगम क्षेत्र के प्रत्येक वार्ड में एक मुहल्ला समिति होती है जिसके 10 सदस्य होते हैं. नगर पालिका क्षेत्र के प्रत्येक वार्ड में एक समिति होती है जिसके 7 सदस्य होते हैं. नगर पंचायत क्षेत्र के प्रत्येक वार्ड में एक समिति होती है जिसके 5 सदस्य होते हैं. आधे सदस्य अजा/अजजा/अपिव/महिला होना चाहिये. इनका कार्यकाल निगम के बराबर होता है. इनका कार्य मुहल्ले की विकास योजना बनाना, जनभागीदारी को प्रोत्साहन देना, निगम की संपत्ति को सुरक्षित रखना आदि है.
आयुक्त
शासन व्दारा नियुक्त निगम का मुख्य कार्यपालन अधिकारी आयुक्त कहलाता है. निगम के सारे कर्मचारी उसके अधीन होते हैं. आयुक्त का अधिकतम कार्यकाल 5 वर्ष का है. यदि किसी सम्मिलन में उपस्थित ¾ सदस्य आयुक्त को हटाने का प्रस्ताव पारित करें तो शासन व्दारा आयुक्त को हटाया जायेगा. नगर पालिका एवं नगर पंचायत में मुख्य कार्यपालिक अधिकारी को मुख्य नगरपालिका अधिकारी कहा जाता है.
निगम व्दारा अधिरोपित कर
संपत्ति कर, जल कर, समामन्य स्वच्छता कर, सामान्य अग्नि कर, बिक्री पर स्थानीय निकाय कर, बाज़ार फीस, पशुओं की बिक्री पर फीस, निर्यात कर, कालोनी निर्माण पंजीकरण शुल्क अदि.
नगर पालिका एवं नगर पंचायत
- निर्वाचित पार्षदों की संख्या न्यूकतम 15 एवं अधिकतम 40, नगर पालिका में 4 एल्डरमैन एवं नगर पंचायत में 2 एल्डरमैन. विधायक एवं सांसद के सदस्यता प्रावधान निगम की भांति. वोट देने का अधिकार केवल निर्वाचित पार्षद को है.
- आरक्षण निगम की भांति.
- अध्यक्ष तथा पार्षद का निर्वाचन प्रत्यक्ष मतदान से होता है. उपाध्यक्ष का निर्वाचन पार्षदों व्दारा प्रथम सम्मिलन में किया जाता है.
- पार्षद को हटाने का अधिकार कलेक्टर को है.
- अघ्यक्ष को वापस बुलाने का अधिकार निगम के मेयर के समान.
- अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सम्मिलन की अध्यक्षता करता है.
- शपथ प्रथम सम्मिलन में अुनुविभागीय अधिकारी के समक्ष ली जाती है.
- निगम के किसी संकल्प को राज्य शासन रद्द कर सकता है. नगर पालिका एवं नगर पंचायत के लिये यह अधिकार कलेक्टर को है.