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भारतीय अर्थव्यवस्था में वैदेशिक क्षेत्र
शब्दावली
मुद्रा की परिवर्तनीयता (Convertibility of Currency) – जब देश की मुद्रा मुक्त रूप से प्रमुख विदेशी मुद्राओं में तथा प्रमुख विदेशी मुद्राएं देश की मुद्रा में परिवर्तनशील हो तो उसे मुद्रा की परिवर्तनशीलता कहा जाता है.
फ्लोटिंग आफ करेंसी – इसका आशय है कि मुद्रा की विनिमय दर सरकार व्दारा नियंत्रित न होकी स्वतंत्र हो जिससे यह दर मांग एवं आपूर्ति के आधार पर तय हो सके.
मुद्रा अवमूल्यन (Devaluation of Currency) – देश की मुद्रा की तुलना में विदेशों की मुद्रा का मूल्य बढ़ना. इससे निर्यात सस्ता हो जाता है और आयात महंगा हो जाता है. निर्यात एवं निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये तथा आयात को हतोत्साहित करने के लिये मुद्रा का अवमूल्यन किया जाता है.
हार्ड करेंसी – अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में जिस मुद्रा की मांग अधिक हो और आपूर्ति कम हो वह हार्ड करेंसी कहलाती है. विकसित देशों की मुद्राएं हार्ड करेंसी होती हैं.
हवाला – अनधिकृत और गैर कानूनी तरीके से देश का धन बाहर भेजना हवाला कहलाता है. इसमें लोग अनधिकृत तरीके से देश में घरेलू मुद्रा प्राप्त कर लेते हैं और उसके बदले विदेशों में उन देशों की मुद्रा दे देते हैं.
राशिपातन (Dumping) – किसी वस्तु के बहुत अधिक उत्पादन के कारण देश में उसका मूल्य न गिरे इस उद्देश्य से विदेशों में उसे बहुत कम कीमत पर बेचने या नष्ट तक कर देने को राशिपातन कहते हैं.
घाटबंदी (Embargo) – किसी अन्य देश के माल को अपने देश में पहुचंने न देने को घाटबंदी कहते हैं. इसमें उस देश के जहाजों को बंदरगाह में प्रवेश नहीं करने दिया जाता या वहां पर रोक दिया जाता है.
फ्री-पोर्ट – ऐसे बंदरगाह को कहते हें जहां पर पुर्ननिर्यात होने वाली वस्तुओं पर कोई कर नहीं लगता है.
अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) – यह समुद्र तट से समुद्र के भीतर का वह क्षेत्र है जिसके सभी संसाधनों पर किसी देश का एकाधिकार होता है. भारत के समुद्री तट से 200 नाटिकल मील तक का 24 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र इस श्रेणी में आता है.
विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone - SEZ) – यह भौगोलिक रूप ये घरेलू क्षेत्र मे होता है परन्तु इसमें घरेलू टैरिफ लागू नहीं होता. इसका उद्देश्य निर्यातकों को कुछ सुविधाएं एवं शुल्क मुक्त वातावरण प्रदान करना होता है. इन क्षेत्रो से यदि घरेलू क्षेत्र में कोई वस्तु बेची जाती है तो उसे आयात माना जाता है और उसपर सीमा शुल्क का भुगतान करना होता है.
व्यापार संतुलन – आयात और निर्यात के मूल्यों के आधार पर संतुलन को व्यापार संतुलन कहते हैं. यदि आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से अधिक है तो व्यापार संतुलन प्रतिकूल है. इसके उलट यदि निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से अधिक हे तो व्यापार संतुलन अनुकूल है. अभी तक केवल 1972-73 तथा 1976-77 में ही भारत का व्यापार संतुलन अनुकूल रहा है.
भुगतान संतुलन – किसी देश का भुगतान संतुलन एक निश्चित अवधि में अन्य देशों के साथ उसके मौद्रिक सौदों का लेखा-जोखा हेाता है. चालू खाते के अंर्तगत वस्तुओ एवं सेवाओं के आयात और निर्यात को शामिल किया जाता है. इसमें वस्तुएं दृष्य मद मानी जाती हैं और सेवाएं जैसे पर्यटन, परिवहन, बीमा, आदि अदृश्य मद मानी जाती हैं. पूंजीगत खाते में ऋणों की प्राप्ति एवं अदायगी, करेंसी लेन-देन, स्वर्ण हस्तांतरण आदि शामिल होता है.
विदेशी सहायता – विदेशी सहायता 3 प्रकार की होती है – ऋण, अनुदान और अमरीका व्दारा पी.एल. 470/665 के अंतर्गत रुपये में वापस किये जाने वाले ऋण.
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधनियम (फेमा) – यह 1 जून 2000 से लागू है. इसे 1973 के फेरा के स्थान पर लाया गया है. इसमें विदेशी मुद्रा संबंधी प्रावधानों को सरल बनाया गया है जिससे विदेश व्यापार सुगम हो और विदेशी मुद्रा का बाज़ार सुव्यवस्थित किया जा सके.
विदेशी मुद्रा के घटक –
- भारतीय रिज़र्व बैंक की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां.
- भारतीय रिज़र्व बेंक का स्वर्ण भंडार.
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights – SDR)
- रिज़र्व ट्रांश पोज़िशन (Reserve Tranche Position) – यह देश की करेंसी है जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास रखी जाती है और जिसका उपयोग कोई देश स्वयं के लिये बिना सेवा शुल्क के कर सकता है.
विशेष आहरण अधिकार – यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की हिसाबी मुद्रा है जिसका मूल्य बड़े देशों की मुद्राओं की पिटारी व्दारा निर्धारित होता है. यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व्दारा किसी देश को दिया गया आहरण अधिकार है जिसका उपयोग वह देश कभी भी कर सकता है.
विदेशी पूंजी निवेश
विदेशी पूंजी निवेश 2 प्रकार का होता है –
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Direct foreign Investment) – जब विदेशी निवेशक किसी विशिष्ट परियोजना में धन लगाते हैं. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाले देश हैं – मारीशस, सिंगापुर, जापान, यू.के., नीदरलैंड, यू.एस.ए., जर्मनी, साइप्रस, फ्रांस और यू.ए.ई. सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सेवा क्षेत्र जैसे वित्त, बैंक, अनुसंधान, बीमा, कूरियर, कम्प्यूटर साफ्टवेयर एवं हार्डवेयर तथा निर्माण के क्षेत्रों में हुआ है. महाराष्ट्र, दिल्ली तथा तमिल नाडु को सबसे अधिक राशि प्राप्त हुई है.
- संविभाग निवेश (Portfolio Investment) – वित्तीय विपत्रों में विदेशी निवेश को संविभाग निवेश कहते हैं. इसमें दूसरे देश के निवेशक कंपनियों के शेयर, बांड एवं अन्य प्रतिभूतियों में धन लगाते हैं.
भारत में निर्यात और आयात की कहानी – वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते भारत से निर्यात में मई 2014 से मई 2015 के बीच 20.2% की कमी आई है और आयात में 16.5% की कमी आई है. अच्छी बात यह है कि भारत का अंर्तराष्ट्रीय व्यापार घाटा 11.2 बिलियन डालर से कम होकर 10.4 बिलियम डालर रह गया है. यह मुख्यतय: स्वर्ण आयात में कमी के कारण है तथा कुछ हद तक तेल की अंर्तराष्ट्रीय कीमतों में कमी के कारण भी है. मई 2014 की तुलना में चावल के निर्यात में 14.6%, अन्य अनाजों के निर्यात में 77.7%, कच्चे लोहे के निर्यात में 86% और मूल्यवान पत्थरों और ज़ेवरों के निर्यात में 12.9% की कमी आई है. न केवल अमरीका और योरोप में मंदी है बल्कि इन्होने ने हाल ही में अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिये संरक्षणवादी नीतियां भी अपना ली हैं.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर चीन से व्यापार का असर
2015-16 में भारत के कुल आयात का 16% चीन से था. यह आयात 61.7 बिलियन डालर का था, जबकि भारत का चीन को कुल निर्यात उसी अवधि में केवल 9.05 बिलियन डालर का था. स्पष्ट ही है कि भारतीय अर्थव्यसवस्था चीनी आयातों पर जितनी निर्भर है, उसकी तुलना में भारतीय निर्यातों पर चीन की निर्भरता कुछ भी नहीं है. चीन से आयात होने वाली वस्तुओं में टेलीकाम उपकरण, कम्प्यूटर हार्डवेयर, मोबाइल फोन, खाद, बड़ी मशीनों में लगने वाले इलेक्ट्रानिक उपकरण, कार्बनिक रसायन, दवाएं, विशेष प्रकार का इस्पाात, खिलौने और अन्य उपभोक्ता सामग्री आदि शामिल हैं. लोक सभा में दिये गये एक लिखित उत्तर में बताया गया था, कि चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा वर्ष 2012-13 में 38.67 बिलियन डालर से बढ़कर वर्ष 2014-15 में 48.45 बिलियन डालर हो गया है. भारतीय बाज़ार में चीनी माल की मांग बढ़ने का प्रमुख कारण चीनी माल की कम कीमत और वैराइटी है. दीवाली के अवसर पर सजावट के लिये लगाई जाने वाली बिजली की लाइटें और पटाखे, बच्चों के खिलौने और यहां तक कि राखियां भी चीन से आयात की जा रही हैं. 12 वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत में ऊर्जा की लगभग 30% उत्पादन क्षमता चीन से आयातित उपकरणों से निर्मित हुई है. अप्रेल 2016 से जनवरी 2017 के मध्य सौर ऊर्जा के लगभग 87% उपकरण चीन से आयात किये गये थे, जिनकी कीमत लगभग 1.9 बिलियन डालर आंकी गई है.
चीन की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में तिगुनी है. विश्व मौद्रिक कोष के अनुसार वर्ष 2016 में चीन का अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद 11.4 ट्रिलियन डालर था, जबकि भारत का अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद मात्र 2.25 ट्रिलियन डालर था. चीन की जनसंख्या 137 करोड़ थी और भारत की जनसंख्या 134 करोड़ थी. इस आधार पर चीन के पास भारत की तुलना में न केवल 3 गुना बड़ा भू-भाग है, बल्कि चीन का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 8,260 डालर और भारत का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद मात्र 1,718 डालर होने के कारण चीन के लोग भारत के लोगों की तुलना में लगभग 5 गुना अधिक अमीर भी हैं.