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छत्तीसगढ़ नामकरण
प्राचीनकाल में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोशल कहा जाता था. बाद में जब कलचुरियों में रतनपुर को राजधानी बनाया तो इसका नाम रतनपुर राज पड़ गया. अबुल फज़ल ने आइने-अकबरी में इसे रतनपुर ही कहा है. छत्तीसगढ़ का प्रथम उल्लेख 1497 में खैरागढ़ के राजा लक्ष्मीनिधि राय के चारण कवि दलराम राव की रचना में आया है. इसके बाद 1689 विक्रम संवत अर्थात् 1746 ई. में कवि गोपाल मिश्र ने अपनी रचना खूब तमाशा में छत्तीसगढ़ का उल्लेख किया है. 1896 में बाबू रेवाराम ने सिंहासन बत्तीसी का पद्यानुवाद करके विक्रम विलास लिखी तो उसमें भी नाम का छत्तीसगढ़ का उपयोग किया.
छत्तीसगढ़ का शासकीय कार्य में प्रथम उपयोग कैप्टेन ब्लंट ने 1795 में किया. इसके बाद नागपुर में पदस्थ ब्रिटिश रेज़ीडेंट ज़मीन्दार्स आफ छत्तीयसगढ़ शब्दों का उपयोग करने लगा. आगे चलकर यही नाम छत्तीसगढ़ प्रचलित हो गया.
यह नाम पड़ने के बारे में अनेक विचार हैं. यह कहा जाता है कि चेदि राज्य का अंग होने के कारण इसका नाम चेदिसगढ़ पड़ा जो बाद में बिगड़कर छत्तीसगढ़ हो गया. एक मत यह है कि रतनपुर पर 36 क्षत्रिय कुलों ने राज किया इसलिये इसे छत्तीसगढ़ कहा गया. एक किंवदंती यह भी है कि व्दापर युग में जरासंघ के समय 36 चमारों का परिवार यहां आकर रहने लगे इसलिये इसे छत्तीसघर कहने लगे जो बाद में छत्तीसगढ़ हो गया. मराठा काल में गढ़ एक प्रशासनिक क्षेत्र को कहते थे. कहा जाता है कि इस समय यहां पर 36 गढ़ थे, इसलिये इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ गया. दरअसल यही तर्क सबसे उचित भी प्रतीत होता है.