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भारत का भूगोल - भूगर्भशास्त्रीय पहलू
भारत देश भारतीय प्लेट के ऊपर स्थित है जो भारतीय आस्ट्रेलियाई प्लेट का उपखण्ड है. यह प्राचीन काल में गोंडवानालैण्ड का हिस्सा था और अफ्रीका और अंटार्कटिका के साथ जुड़ा हुआ था. ९ करोड़ वर्ष पहले क्रीटेशियस काल में यह प्लेट १५ से०मी०/वर्ष की गति से उत्तर की ओर बढ़ने लगी और इओसीन पीरियड में यूरेशियन प्लेट से टकराई. भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के मध्य स्थित टेथीज भूसन्नति के अवसादों के वालन व्दारा ऊपर उठने से तिब्बत पठार और हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ. भारतीय प्लेट अभी भी लगभग ५ से०मी०/वर्ष की गति से उत्तर की ओर बढ़ रही है और हिमालय की ऊंचाई में अभी भी २ मि०मी०/वर्ष कि गति बढ़ रही है.
प्रायव्दीपीय पठार भारत का प्राचीनतम भूखंड है. यह मुख्य रूप से ग्रेनाइट, नीस और शिस्ट नामक चट्टानों से बना है. अरावली पर्वत प्राचीनतम वलित पर्वत है. पूर्वी घाट प्राचीन वलित तथा पश्चिमी घाट अवशिष्ट पहाड़ों के उदाहरण हैं.
हिमालय का पर्वतीय भाग अधिकांशतः नवीन परतदार चट्टानों से निर्मित है, जो लाखों वर्षो तक टेथिस समुद्र में एकत्रित होती रही थीं. परतदार चट्टानें जो क्षैतिज अवस्था में जमा हुई थीं, भूसंचलन के प्रभाव से अत्यंत मुड़ गई हैं और एक दूसरे पर चढ़ गई हैं. विशाल क्षेत्रों में वलन (folds), भ्रंश (faults), क्षेप-भ्रंश (thrust faults) तथा शयान वलन (recumbent folding) के उदाहरण मिलते हैं.
सिन्धु-गंगा मैदान भूवैज्ञानिक दृष्टि से सबसे नवीन है. हिमालय पर्वतमाला के निर्माण के समय उत्तर से जो भूसंचलन आया उसके धक्के से प्रायव्दीप का उत्तरी किनारा नीचे धँस गया जिससे विशाल खड्ड बन गया. हिमालय पर्वत से निकलनेवाली नदियों ने अपने निक्षेपों से इस खड्ड को भरना शुरू किया और इस प्रकार उन्होंने कालांतर में एक विस्तृत मैदान का निर्माण किया. इस प्रकार यह मैदान मुख्यत: हिमालय के अपक्षरण से उत्पन्न तलछट और नदियों व्दारा जमा किए हुए जलोढक से बना है. इसमें बालू तथा मिट्टी की तहें मिलती हैं, जो अत्यंत नूतन (Pleistocene) और नवीनतम काल की हैं.