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छत्तीसगढ़ में पंचायती राज

भारत में पंचायती राज का विकास

प्राचीन भारत में गांव के प्रमुख लोगों की बैठकों में गांव के महत्वपूर्ण निर्णय लिये जाते थे. इन बैठकों को पंचायत कहते थे. पंचायत के निर्णय साधारणत: सभी को मान्य होते थे.

स्वतंत्र भारत में पंचायती राज पर लिये सुझाव देने हेतु अनेक समितियां बनी –

  1. बलवंत राय मेहता समिति - बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोद्धार समिति का गठन 1957 में किया गया. इस समिति ने गाँवों के समूहों के लिए प्रत्यक्षतः निर्वाचित पंचायतों, खण्ड स्तर पर निर्वाचित तथा नामित सदस्यों वाली पंचायत समितियों तथा ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद् गठित करने का सुझाव दिया. मेहता समिति की सिफ़ारिशों को 1 अप्रैल, 1958 को लागू किया गया. इस सिफ़ारिश के आधार पर राजस्थान राज्य की विधानसभा ने 2 सितंबर, 1959 को पंचायती राज अधिनियम पारित किया. इस अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर ज़िले में पंचायती राज का उदघाटन किया गया. इसके बाद अनेक राज्यों में पंचायती राज अधिनियम पारित किए.
  2. अशोक मेहता समिति - बलवंतराय मेहता समिति की सिफारिशों की कमियों पर सुझाव देने के लिए अशोक मेहता समिति का गठन दिसम्बर, 1977 में अशोक मेहता की अध्यक्षता में किया गया. समिति ने 1978 में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी, जिसमें पंचायती राज व्यवस्था का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया गया था. इसकी प्रमुख सिफ़ारिशें थीं-
    1. राज्य में विकेन्द्रीकरण का प्रथम स्तर ज़िला हो,
    2. ज़िला स्तर के नीचे मण्डल पंचायत का गठन किया जाए, जिसमें क़रीब 15000-20000 जनसंख्या एवं 10-15 गाँव शामिल हों,
    3. ग्राम पंचायत तथा पंचायत समिति को समाप्त कर देना चाहिए,
    4. मण्डल अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष तथा ज़िला परिषद के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष होना चाहिए,
    5. मण्डल पंचायत तथा परिषद का कार्यकाल 4 वर्ष हो,
    6. विकास योजनाओं को ज़िला परिषद के द्वारा तैयार किया जाए
    अशोक मेहता समिति की सिफ़ारिशों को अपर्याप्त माना गया और इसे अस्वीकार कर दिया गया.
  3. डॉ. पी. वी. के. राव समिति - 1985 में डॉ. पी. वी. के. राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करके उसे यह कार्य सौंपा गया कि वह ग्रामीण विकास तथा ग़रीबी को दूर करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था पर सिफ़ारिश करे. इस समिति ने राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद्, ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद्, मण्डल स्तर पर मण्डल पंचायत तथा गाँव स्तर पर गाँव सभा के गठन की सिफ़ारिश की. इस समिति ने विभिन्न स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण की भी सिफ़ारिश की, लेकिन समिति की सिफ़ारिश को अमान्य कर दिया गया.
  4. डॉ. एल. एम. सिंधवी समिति - पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा करने तथा उसमें सुधार करने के सम्बन्ध में सिफ़ारिश करने के लिए सिंधवी समिति का गठन किया गया. इस समिति ने ग्राम पंचायतों को सक्षम बनाने के लिए गाँवों के पुनर्गठन की सिफ़ारिश की तथा साथ में यह सुझाव भी दिया कि गाँव पंचायतों को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराया जाए.
  5. पी. के. थुंगन समिति - इस समिति का गठन 1988 में पंचायती संस्थाओं पर विचार करने के लिए किया गया. इस समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि राज संस्थाओं को संविधान में स्थान दिया जाना चाहिए.

पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा

  1. थुंगन समिति की सिफ़ारिश के आधार पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए 1989 में 64वाँ संविधान संशोधन लोकसभा में पेश किया गया, जिसे लोक सभा ने पारित कर दिया, लेकिन राज्य सभा ने नामंजूर कर दिया. इसके बाद लोकसभा को भंग कर दिए जाने के कारण यह विधेयक समाप्त कर दिया गया.
  2. इसके बाद 74वाँ संविधान संशोधन पेश किया गया, जो लोकसभा के भंग किये जाने के कारण समाप्त हो गया.
  3. इसके बाद 16 दिसम्बर, 1991 को 72वाँ संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिसे संयुक्त संसदीय समिति (प्रवर समिति) को सौंप दिया गया. इस समिति ने विधेयक पर अपनी सम्मति जुलाई 1992 में दी और विधेयक के क्रमांक को बदलकर 73वाँ संविधान संशोधन विधेयक कर दिया गया, जिसे 22 दिसम्बर, 1992 को लोकसभा ने तथा 23 दिसम्बर, 1992 को राज्यसभा ने पारित कर दिया.
  4. 17 राज्य विधान सभाओं के व्दारा अनुमोदित किया जाने पर इसे राष्ट्रपति की अनुमति के लिए उनके समक्ष पेश किया गया. राष्ट्रपति ने 20 अप्रैल, 1993 को इस पर अपनी अनुमति दे दी और इसे 24 अप्रैल, 1993 को प्रवर्तित कर दिया गया.

पंचायती राज के संबंध में प्रमुख संवैधानिक प्रावधान

73वें संविधान संशोधन के व्दारा संविधान में भाग-9 एवं 11वीं अनुसूची को जोड़ा गया जिसमें पंचायती राज के संबंध में प्रावधान हैं. संविधान के भाग-9 में यह प्रावधान किए गए हैं. प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं –

  1. 243. परिभाषाएं
  2. 243क. ग्राम सभा
  3. 243ख. पंचायतों का गठन - प्रत्येक राज्य में ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर इस भाग के उपबंधों के अनुसार पंचायतों का गठन किया जाएगा
  4. 243ग. पंचायतों की संरचना - किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि व्दारा, पंचायतों की संरचना की बाबत उपबंध कर सकेगा
  5. 243घ. स्थानों का आरक्षण
  6. 243ङ. पंचायतों की अवधि
  7. 243च. सदस्यता के लिए निरर्हताएं - कोई व्यक्ति किसी पंचायत का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा, यदि वह संबंधित राज्य के विधान-मंडल के निर्वाचनों के प्रयोजनों के लिए तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है
  8. परंतु कोई व्यक्ति इस आधार पर निरर्हित नहीं होगा कि उसकी आयु फच्चीस वर्ष से कम है, यदि उसने इक्कीस वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है;
  9. 243छ. पंचायतों की शक्तियां , प्राधिकार और उत्तरदायित्व - किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि व्दारा, पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा, जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों और ऐसी विधि में पंचायतों को उपयुक्त स्तर पर, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएं, निम्नलिखित के संबंध में शक्तियां और उत्तरदायित्व न्यागत करने के लिए उपबंध किए जा सकेंगे, अर्थात् :-
    1. आार्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना;
    2. आार्थिक विकास और सामाजिक न्याय की ऐसी स्कीमों को, जो उन्हें सौपीं जाएं, जिनके अंतर्गत वे स्कीमें भी हैं, जो ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में हैं, कार्यान्वित करना
  10. 243ज. पंचायतों व्दारा कर अधिरोपित करने की शक्तियां और उनकी निधियां - किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि व्दारा -
    1. पंचायत को कर, शुल्क, पथकर और फीसें उद्गॄहीत, संगॄहीत और विनियोजित करने के लिए प्राधिकॄत कर सकेगा ;
    2. राज्य सरकार व्दारा उद्गॄहीत और संगॄहीत ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फीसें किसी पंचायत को, ऐसे प्रयोजनों के लिए , तथा ऐसी शर्तों और निर्बंधनों के अधीन रहते हुए, समनुदिष्ट कर सकेगा;
    3. राज्य की संचित निधि में से पंचायतों के लिए ऐसे सहायता-अनुदान देने के लिए उपबंध कर सकेगा; और
    4. पंचायतों व्दारा प्राप्त किए गए धनों को जमा करने के लिए निधियों का गठन करने और उन निधियों में से धन को निकालने के लिए भी उपबंध कर सकेगा.
  11. 243झ. वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन - राज्य का राज्यपाल, संविधान (तिहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारंभ से एक वर्ष के भीतर यथाशीघ्र, और तत्पश्चात, प्रत्येक पांचवें वर्ष की समाप्ति पर, वित्त आयोग का गठन करेगा जो पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करेगा,
  12. 243ञ. पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा - किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि व्दारा, पंचायतों व्दारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के बारे में उपबंध कर सकेगा
  13. 243ट. पंचायतों के लिए निर्वाचन - पंचायतों के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा, जिसमें एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा, जो राज्यपाल व्दारा नियुक्त किया जाएगा
  14. 243ठ. संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना
  15. 243ड. इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना - इस भाग की कोई बात अनुच्छेद 244 के खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और उसके खंड (2) में निर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों को लागू नहीं होगी
  16. 243ढ. विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना
  17. 243ण. निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन

संविधान की ग्याहरवीं अनुसूची

इस अनुसूची में वे विषय दिये गऐ हें जिन्हें राज्य विधान मंडल विधि व्दारा पंचायतों को हस्तांसतरित कर सकते हैं. इन विषयों की सूची निम्निलिखित है –

  1. कृषि विकास एवं विस्तार
  2. भूमि विकास, भूमि सुधार लागू करना, भूमि संगठन एवं भूमि संरक्षण
  3. पशुपालन,दुग्ध व्यवसाय तथा मत्यपालन
  4. मत्स्य उद्योग
  5. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन एवं नदियों के मध्य भूमि विकास
  6. वन विकास
  7. लघु उद्योग जिसमे खाद्य उद्योग शामिल है
  8. ग्रामीण विकास
  9. पीने का शुध्द पानी
  10. खादी, ग्राम एवं कुटीर उद्योग
  11. ईंधन तथा पशु चारा
  12. सड़क, पुल, तट जलमार्ग तथा संचार के अन्य साधन
  13. वन जीवन तथा कृषि खेती (वनों में)
  14. ग्रामीण बिजली व्यवस्था
  15. गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत
  16. यांत्रिक प्रशिक्षण एवं यांत्रिक शिक्षा
  17. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी विद्यालय
  18. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
  19. वयस्क एवं बुजुर्ग शिक्षा
  20. पुस्तकालय
  21. बाजार एवं मेले
  22. सांस्कृतिक कार्यक्रम
  23. अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जिनमे दवाखाने शामिल हैं
  24. पारिवारिक समृद्धि
  25. सामाजिक समृद्धि जिसमे विकलांग एवं मानसिक समृध्दि शामिल है
  26. महिला एवं बाल विकास
  27. समाज के कमजोर वर्ग की समृध्दि जिसमे अनुसूचित जाति और जनजाति दोनों शामिल हैं
  28. लोक विभाजन पध्दति
  29. सार्वजानिक संपत्ति की देखरेख

छत्तीसगढ़ में पंचायती राज के संबंध में महत्व पूर्ण सांख्यिकी

  1. 27 ज़ि‍ला पंचायत अध्यक्ष, 146 जनपद पंचायत अध्यक्ष, 10976 सरपंच, 1,55939 पंच, 2973 जनपद पंचायत सदस्य, 402 ज़़ि‍ला पंचायत सदस्य‍. इस प्रकार कुल निर्वाचित पद – 170358. अजा/अजजा/अपिव/महिला मिलाकर कुल 2/3 पद आरक्षित.
  2. आरक्षण – अजजा – 19852, अजा – 70058, अपिव – 23583, अनारक्षित – 55885
  3. कुल ग्रामों की संख्या – 19756
  4. महिलाओं की स्थिति – महिला ज़ि‍ला पंचायत अध्यक्ष – 15, महिला जनपद अध्यक्ष – 90, महिला सरपंच – 5822, महिला पंच – 86008

ग्राम सभा

त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम सभा प्रजातंत्र की सबसे नीचे की और सबसे महत्वपूर्ण इकाई है. यह गांव के सभी वोटरों से मिलकर बनी होती है. छत्तीसगढ़ पंयायत राज अधिनियम में ग्राम सभा के संबंध में निम्नलिखित प्रावधान हैं -

  1. ग्राम सभा की कितनी बैठक होंगी – वर्ष में 6 बैठकें अनिवार्य हैं. यह बैठकें 23 जनवरी, 14 अप्रेल, 20 अगस्त, 2 अक्टूबर, तथा माह जून एवं नवंबर में राज्य सरकार व्दारा निर्धारित दिन को होती हें. प्रत्येक तीन माह में कम से कम एक बार परन्तु ग्राम सभा के एक तिहाई से अधिक सदस्यों व्दारा लिखित में मांग किये जाने पर अथवा जनपद, जिला पंचायत या कलेक्टर व्दारा अपेक्षा किए जाने पर, अपेक्षा के दिनांक से 30 दिनों के भीतर ग्राम सभा की बैठक की जायेगी.
  2. बैठक की तारीख, समय और स्थान सरपंच व्दारा या उसकी अनुपस्थिति में उपसरपंच व्दारा और दोनों की अनुपस्थिति में सचिव व्दारा निर्धारित की जावेगी.
  3. पंचायत के प्रत्येक ग्राम में ग्राम सभा का आयोजन किया जाएगा
  4. ग्राम सभा की वार्षिक बैठक पंचायत मुख्यालय पर होगी
  5. वार्षिक बैठक आगामी वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ होने के कम से कम 3 माह पूर्व आयोजित की जावेगी.
  6. बैठक की सूचना देने की रीति - बैठक की तारीख से कम से कम 7 दिन पूर्व दी जावेगी.
  7. बैठक में कोई सुझाव देने या कोई विषय उठाने के लिए सूचना की तारीख से एक सप्ताह के भीतर ग्राम पंचायत सचिव को लिखित में एक सूचना देनी होगी. किसी लिखित आपत्ति की दशा में बैठक 3 दिन की पूर्व सूचना देकर बुलाई जा सकेगी.
  8. वार्षिक बैठक के लिए कार्यसूची -
    1. लेखाओं का वार्षिक विवरण
    2. पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के प्रशासन की रिपोर्ट
    3. आगामी वित्तीय वर्ष के लिए प्रस्तावित विकास कार्यक्रम
    4. अंतरिम संपरीक्षा टिप्पणी और उसके सबंध में दिए गये उत्तर
    5. ग्राम पंचायत का वार्षिक बजट और अगले वित्तीय वर्ष के लिए वार्षिक योजना
    6. सभापति की अनुमति से कोई अन्य विषय भी चर्चा में रखा जा सकता है.
  9. बैठक की अध्यक्षता –
    1. सरपंच व्दारा और उसकी अनुपस्थिति में उपसरपंच व्दारा, दोनों की अनुपस्थिति में इस बैठक के लिए उपस्थित सदस्यों में से बहुमत व्दारा निर्वाचित सदस्य.
    2. अनुसूचित क्षेत्रो के लिए बैठक की अध्यतक्षता - अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी ऐसे सदस्य व्दारा जो सरपंच, उपसरपंच या पंचायत का सदस्य न हो और बैठक में उपस्थित सदस्यों द्वारा चुना गया हो, वह केवल उसी बैठक के लिए अध्यक्षता करेगा.
  10. बैठक के लिए गणपूर्ति –
    1. कुल सदस्य संख्या का 1/10 जिसमें एक तिहाई से अधिक महिला सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य.
    2. अनुसूचित क्षेत्र के लिए गणपूर्ति - कुल सदस्य संख्या का 1/3 जिसमें 1/3 महिला सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य
    3. गणपूर्ति पूरा नही होने पर बैठक को स्थगित कर आगे बढ़ा दिया जाता है.
    4. स्थगित बैठक जो आगामी किसी तारीख पर होने वाली हो उसके लिए गणपूर्ति की आवश्यकता नही होती है.
    5. स्थगित बैठक के आयोजन पर किसी नए विषय पर विचार नही किया जा सकता है.
    6. गणपूर्ति कराने का उत्तरदायित्व सरपंच और पंच का होगा
    7. लगातार 3 बैठको में गणपूर्ति नही होने पर पंच/सरपंच को नोटिस दिया जाएगा और आगे की दो ग्राम सभा की बैठक में गणपूर्ति करने का अवसर दिया जाएगा. फिर भी गणपूर्ति नही होने पर सरपंच/पंच को पद से हटाया जा सकता है
    8. सरपंच/पंच को उनके पद से हटाने की कार्यवाही उन्हें सुनवाई का पूरा अवसर प्रदान करने के बाद ही की जाएगी.
  11. बहुमत व्दारा निर्णय - समस्त विषय उपस्थित सदस्यों के बहुमत से विनिश्चित किये जाते हैं. मत समानता की स्थिति में अध्यक्ष निर्णायक मत दे सकता है.

छत्तीगसढ़ में पंचायती राज संस्थाएं

धारा 8 - पंचायत का गठन

  1. ग्राम के लिए ग्राम पंचायत
  2. खण्ड के लिए जनपद पंचायत
  3. जिला के लिए जिला पंचायत

धारा 9 - पंचायत की अवधि

प्रत्येक ग्राम पंचायत अपने प्रथम सम्मिलन कि तारिख से 5 वर्ष तक के लिए बनी रहेगी. किसी पंचायत का गठन करने के लिये चुनाव –

  1. उसकी 5 वर्ष की अवधि समाप्ति के पूर्व कर लिया जाएगा.
  2. बीच में ही पंचायत के विघटन होने पर, विघटन के 6 माह के भीतर कर लिया जायगा.
  3. किसी पंचायत का कार्यकाल 6 माह से कम बचा हो और वह विघटित हो जाए तो, पंचायत की शेष अवधि के लिए चुनाव कराना आवश्यक नही है.
  4. पंचायत के विघटन पर गठित की गई नई पंचायत केवल शेष अवधि के लिए ही बनी रहेगी.

धारा 12 - पंचायत का वार्डो में विभाजन

  1. प्रत्येक ग्राम पंचायत क्षेत्र को दस से अन्यून वार्डो में, जैसा कलेक्टर अवधारित करे, विभाजित किया जायगा.
  2. प्रत्येक वार्ड एक सदस्यीय होगा.
  3. जहां जनसंख्या 1000 से अधिक हो वहां वार्डो की कुल संख्या 20 से अधिक नही होगी और प्रत्येक वार्ड में जनसंख्या यथासाध्य एक जैसी होगी.

धारा 13 - ग्राम पंचायत का गठन

  1. प्रत्येक ग्राम पंचायत निर्वाचित पंचो तथा सरपंच से मिलकर बनेगी.
  2. किसी वार्ड या ग्राम में पंच या सरपंच का निर्वाचन न हो तो, नई निर्वाचन प्रक्रिया 6 माह के भीतर प्रारम्भ की जायगी.
  3. सरपंच का निर्वाचन लंबित होने पर, पंच धारा 20 के अधीन अपने में से एक कार्यवाहक सरपंच का निर्वाचन करेंगे.
  4. वह तब तक पदभार ग्रहण करेगा जब तक नया सरपंच चुन नही लिया जाता है.
  5. पुनः यदि पंच या सरपंच का निर्वाचन नही होता है तो नई निर्वाचन प्रक्रिया राज्य चुनाव आयोग तब तक नही करेगा जब तक उसे यह समाधान न हो जाए की ऐसे ग्राम से सरपन्च या पंच का निर्वाचन किये जाने की सम्भाव्यता है.

धारा 15 – एक ही वार्ड से चुनाव लड़ना

कोई भी व्यक्ति यथास्थिति एक से अधिक वार्डो से या निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव नही लड़ सकता है.

धारा 17 - सरपंच और उपसरपंच का निर्वाचन

प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सरपंच तथा एक उपसरपंच होगा.

कोई भी व्यक्ति –

  1. पंच के रूप में निर्वाचित किए जाने के लिए अर्हित है.
  2. संसद या राज्य विधानसभा का सदस्य नही है.
  3. किसी सहकारी सोसाइटी का सभापति या उपसभापति नही है.

वह सरपंच के रूप में निर्वाचित किया जा सकता है.

आरक्षण

  1. खण्ड के भीतर ग्राम पंचायतों में ST व SC की कुल जनसंख्या में जो अनुपात है, उसी अनुपात में ST व SC के लिए सरपंच के पद आरक्षित रखे जाएंगे.
  2. जहां ST व SC की सम्मिलित जनसंख्या आधे से कम है वहां खण्ड के भीतर सरपंच के कुल पदों का 25% अन्य पिछड़े वर्गो के लिए आरक्षित होगा.
  3. खण्ड के भीतर सरपंचो के स्थानों की कुल संख्या का आधा (50%) स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होगा
  4. आरक्षित रखे गए स्थान विहित प्राधिकारी द्वारा चक्रानुक्रम से आबंटित किये जाएंगे.
  5. ग्राम पंचायत का सरपंच यदि ST, SC या OBC वर्ग का नही है तो उपसरपंच को ST, SC या OBC वर्ग के पंचो से निर्वाचित किया जाएगा.
  6. ग्राम पंचायत में उपसरपंच व जनपद तथा जिला पंचायत में उपाध्यक्ष का पद होगा.
  7. पंच, सरपंच तथा जनपद व जिला पंचायत के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान द्वारा होता है.
  8. उपसरपंच तथा जनपद व जिला पंचायत के अध्य्क्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों में से अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है.
  9. यदि सरपंच या पंच, संसद या विधानसभा का सदस्य बन जाता है तो वह पंच या सरपंच नही रहेगा.
  10. जनपद पंचायत में भी ST व SC के लिए स्थान उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षित रहेंगे.

पंचायत पदाधिकारी होने हेतु निरर्हताएं

  1. नारकोटिकस एक्ट में दोषसिध्द होने पर या किसी अन्य मामले में दोषसिध्द होने पर सज़ा समाप्ति के बाद पांच वर्ष की अवधि व्यतीत न हुई हो.
  2. विक्रत चित्त हो.
  3. दीवालिया हो.
  4. पंचायत के अधीन लाभ का पद धारण करता हो अथवा किसी अन्य शासकीय सेवा में हो, या किसी शासकीय सेवा से भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त हुआ हो.
  5. पंचायत की किसी निविदा में हित रखता हो.
  6. विदेशी नागरिक हो.
  7. पूर्व में पंचायत संस्थाओं के पद से बर्खास्त हुआ हो.
  8. विधान सभा सदस्य बनने से अयोग्य हो. (अपवाद – विधान सभा सदस्य के लिये 25 वर्ष की आयु आवश्यक है परंतु पंचायत के लिये 21 वर्ष की आयु आवश्यक है)
  9. शैक्षणिक योग्यता – पंच पद के लिये 5वीं उत्तीर्ण न होने पर निरर्हरित और उससे उच्‍च पद के लिये 8वीं की परीक्षा उत्ती‍र्ण न होने पर निरर्हरित. (यह निरर्हता 2016 में जोड़ी गई. पहले निरक्षर होना निरर्हता थी)
  10. निवास में जल वाहित शौचालय न हो.
  11. पंचायत का बकायेदार हो.
  12. पंचायत की भूमि अथवा शासकीय भूमि पर अतिक्रमण किया हो.
  13. पंचायत की बैठकों मे लगातार 3 बार अनुपस्थित रहा हो.
  14. पंचायत के विरुध्द विधि व्यवयासी के रूप में नियोजित हो.
  15. दो से अधिक संतानों वाली निरर्हरता 2008 से विलुप्त.

उपरोक्त निरर्हताओं के आधार पर पद से हटाने का अधिकार ग्राम पंचायत और जनपद पंचायत के मामले मे कलेक्टर को तथा ज़ि‍ला पंचायत के मामले में संचालक को है. परंतु इस संबंध में कोई भी आदेश सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिये बिना पारित नहीं किया जाएगा.

पंचायत पदाधिकारी व्दारा त्यायगपत्र

  1. ग्राम पंचायत का कोई पंच जनपद सदस्य या ज़ि‍ला पंचायत का कोई सदस्य यथास्थिति संरपंच या अध्यक्ष को इस आशय की सूचना देकर अपना पद त्याग सकेगा.
  2. ग्राम पंचायत का सरपंच या उपसरपंच, जनपद या ज़ि‍ला पंचायत का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष विहित प्राधिकारी को सूचना देकर त्याग पत्र दे सकेगा.
  3. उप-सरपंच, सरपंच के लिये विहित प्राधिकारी अनुविभागीय अधिकारी, जनपद पंचायत के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के लिये विहित प्राधिकारी कलेक्टर तथा ज़िला पंचायत के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के लिये संचालक हैं.

सरपंच एवं उपसरपंच के विरुध्द अविश्वास प्रस्ताव‍

  1. उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के तीन चौथाई तथा कुल सदस्य संख्या के दो तिहाई सदस्यों व्दारा अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने पर अविश्वास प्रस्‍ताव पारित हो जाता है और संबंधित सरपंच या उप सरपंच पद पर बने रहने के अयोग्य हो जायेंगे.
  2. सरपंच या उपसरपंच के कार्यकाल के प्रथम वर्ष में तथा अंतिम 6 माह में अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा.
  3. अविश्वास प्रस्ताव के लिये आहूत बैठक की अध्यक्षता सरपंच या उपसरपंच व्दारा नहीं बल्कि विहित प्राधिकारी व्दारा नियुक्त व्यक्ति व्दारा की जायेगी.

उपसरपंच का चुनाव

  1. पंचायत के गठन के 15 दिन के भीतर सचिव बैठक बुलाकर निर्वाचित सदस्यों में से एक का निर्वाचन उप सरपंच के रूप में करायेगा.
  2. सरपंच यदि अजा/अजजा/अपिव का नहीं है तो उपसरपंच इन वर्गों में से चुना जायेगा.

पंचायत के प्रतिनिधियों का निलंबन

  1. यदि किसी पदाधिकारी के विरुध्द किसी आपराधिक प्रकरण में आरोप विरचित किय गए है तो विहि‍त प्राधिकारी उसे निलंबित कर सकेगा.
  2. निलंबन के 10 दिनों के भीतर रिपोर्ट राज्य शासन को की जायेगी.
  3. यदि निलंबन की पुष्टि राज्य शासन व्दारा 90 दिनो के भीतर नहीं की जाती है तो निलंबन स्वयमेव निष्प्रभावी हो जायेगा.
  4. किसी पदाधिकारी के निलंबन की स्थिति में संबंधित कार्यपालिक अधिकारी सदस्यों की बैठक आहूत करके स्थानापन्न पदाधिकारी का निर्वाचन करायेगा.

पंचायत प्रतिनिधियों का हटाया जाना –

राज्य सरकार या विहित प्राधिकारी निम्नलिखित परिस्थितियों में ऐसी जांच के बाद जैसी कि वह उचित समझे पंचायत प्राधिकारी को पद से हटा सकेगा –

  1. देशहित के विपरीत कार्य करने पर
  2. धर्म, जाति, भाषा, संप्रदाय या वर्ग की भावनाओं के संबंध में भेदभाव करने पर
  3. स्त्रिायों के सम्मान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने वाला कार्य करने पर

विहित प्राधिकारी व्दारा संबंधित को सुनवाई के पश्चात् पद से हटाने का आदेश जारी किया जायेगा तो वह आगामी 6 वर्षों के लिये भी चुनाव लड़ने से निरर्हरित हो जायेगा.

पंचायत प्रतिनिधियों का वापस बुलाया जाना

  1. ग्राम सभा के एक तिहाई सदस्यों व्दारा सूचना पर हस्ताक्षर कर विहित प्राधिकारी को प्रस्तुत करने पर विहित प्राधिकारी व्दारा गुप्त मतदान कराया जायेगा.
  2. यदि ग्राम सभा के आधे से अधिक सदस्यों व्दारा वापस बुलाया जाने का प्रस्तााव पारित कर दिया जाता है तो सरपंच का निर्वाचन समाप्त हो जायेगा तथा उस पंचायत के सरपंच का पद रिक्त हो जायेगा.
  3. उक्त प्रक्रिया सरपंच के निर्वाचन के 2 ½ वर्ष के पूर्व आरंभ नहीं की जा सकेगी.
  4. पंचों को भी समान प्रक्रिया से पद से हटाया जा सकेगा.

जनपद पंचायत

  1. प्रत्येक 5000 हज़ार की जनसंख्या पर एक जनपद सदस्य होगा.
  2. जनपद पंचायत में कम से कम 10 और अधिक से अधिक 25 सदस्य होंगे.
  3. बिना निर्वाचन के अन्य जनपद सदस्य - संबंधित विधायक अथवा उसका प्रतिनिधि, कुल पंचायतों के 1/5 सरपंच.

ज़ि‍ला पंचायत

  1. राज्य सरकार की अधिसूचना से किसी ज़ि‍ले को कम से कम 10 और अधि‍क से अधिक 35 निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जायेगा.
  2. प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या यथासंभव 50000 रखी जायेगी.
  3. ज़ि‍ला पंचायतों की बैठकों में शहरी विधायकों छोड़कर अन्य विधायक तथा सांसद भाग ले सकेंगे और विधायकों तथा सांसदों की अनुपस्थिति में उनके प्रतिनिधि भाग ले सकेंगे.

ग्राम पंचायत की स्थाई समितियां

  1. ग्राम पंचायत 5 स्थाई समितियां गठित कर सकेगी – सामान्य प्रशासन समिति, शिक्षा; स्वास्‍थ्‍य तथा समाज कल्याण समिति; कृषि, पशुपालन एवं मत्‍स्‍य पालन समिति; निमार्ण एवं विकास समिति; राजस्व एवं वन समिति.
  2. ग्राम पंचायत के निर्वाचित पंच स्थाई समितियों के सदस्य होते हैं.
  3. ग्राम पंचायत की विशेष बैठक में स्थाई समिति के सदस्यों का चुनाव किया जाता है.
  4. एक स्थाई समिति में 4 सदस्य होते हैं.
  5. कोई भी पंच 2 से अधि‍क समितियों का सदस्य नही हो सकता.
  6. स्थाई समिति का कार्यकाल 5 वर्ष होता है.
  7. सरपंच सामान्य प्रशासन समिति का पदेन सभापति होता है.
  8. उपसरपंच शिक्षा, स्वास्‍थ्‍य एवं समाज कल्याण समिति का पदेन सभापति होता है.
  9. शेष तीन समितियों के सभापति का चुनाव उनके सदस्य करते हैं.
  10. ग्राम पंचायत का सचिव इन सभी समितियों का सचिव होता है.

जनपद एवं ज़ि‍ला पंचायत की स्थाई समितियां

  1. सामान्य प्रशासन समिति
  2. कृषि समिति
  3. शिक्षा समिति
  4. संचार एवं संकर्म समिति
  5. सहकारिता उवं उद्योग समिति

पंचायतों के कृत्य

स्वच्छता, कुओं तथा तालाबों का जीर्णोध्दार, जल प्रदाय, ग्रामीण अधोसंरनाओं का निर्माण एवं रखरखाव, स्ट्रीट लाइट, शौचालय निर्माण, लावारिस पशुओं की व्यवस्था, कांजी हाउस, सार्वजनिक हाट बाज़ार का प्रबंध, टीकाकरण में सहायता, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण, युवा कल्याण, परिवार कल्याण, अग्नि शमन, वृक्षारोपण, दहेज, छुआछूत जैसी बुराइयां दूर करने के प्रयास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, आर्थिक एवं सामाजिक विकास की योजना बनाना, हितग्राहियों का चयन, सरकार की विभिन्न योजनाओं का क्रियांवयन, कोलोनियो की स्थापना पर विचार, सामान्य चेतना में अभिवृध्दि, आदि.

पंचायतों व्दारा अधिरोपित किए जाने वाले कर

  1. ग्राम पंचायत – संपत्ति कर, स्वच्छता कर, प्रकाश कर, व्यापार कर, बाज़ार कर, पशुओं के रजिस्ट्रीकरण पर शुल्क.
  2. जनपद पंचायत – नाट्य गृहो, नाट्य प्रदर्शनों एवं सार्वजनिक मनोरंजन पर कर.
  3. ज़ि‍ला पंचायत – कोई कर नहीं.

पेसा अधिनियम (Panchayat Extension to Scheduled Areas Act)

  1. अनुसूचित क्षेत्र की पंचायतों को आदिवासी समाज की रूढ़ि‍यों, परंपराओं आदि के आधार पर उन अधिकारों को मान्यता और उन्हें ध्यान में रखते हुए स्वशासन का प्रावधान.
  2. 73वें संविधान संशोधन में इसका उल्लेख नही है इसलिये यह अधि‍नियम – पंचायती राज (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधि‍नियम बनाया गया है.
  3. छत्तीसगढ़ में 27 में से 13 ज़ि‍ले पूर्णत: और 6 ज़ि‍ले आंशिक रूप से अनुसूचि‍त क्षेत्र में आते हैं. (कुल 85 विकास खंड)
  4. 146 में से 85 जनपद पंचायतें पूर्णत: तथा 16 जनपद पंचायतें आंशिक रूप से अनुसूचि‍त क्षेत्र में हैं.
  5. 10976 में से 5055 ग्राम पंचायतें अनुसूचि‍त क्षेत्र में हैं.
  6. पेसा में विशेष प्रावधान –
    1. पंचायतों एवं ग्राम सभाओं को आदिवासियों की रूढ़ि‍गत, समाजिक एवं धार्मिक पध्दतियों और सामुदायिक परंपराओं को ध्यान में रखकर प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंध एवं विवाद निपटाने की शक्तियां प्रदत्त.
    2. ग्राम सभा की अध्यक्षता वही व्यक्ति कर सकता है जो पंचायत का सरपंच, उपसरपंच या पंच न हो और जिसे ग्राम सभा के उस सम्‍मेलन में उपस्थित सदस्यों ने बहुमत से चुना हो.
    3. राज्य वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार राज्य के स्वयं के स्रोतों से 2 लाख रुपये प्रतिवर्ष पेसा क्षेत्र की पंचायतों को आबंटित किया जाना है.
    4. पंचायत क्षेत्र में किसी भी परियोजना की स्थापना के पूर्व ग्राम सभा से परामर्श आवश्यक है.
    5. सरपंच, जनपद एवं ज़ि‍ला पंचायत अध्यक्ष के सभी पद अनुसूचि‍त जनजाति के लिये आरक्षित.
    6. मद्यनिषेध लागू करने का तथा लघु वनोपज पर स्वामित्व पंचायत का होता है.

मूल्यांकन

  1. उपलब्धियां
    1. जनभागीदारी और जागरूकता में वृध्दि
    2. अजा/अजजा/अपिव/महिलाओं का सशक्तिकरण
    3. अधेसंरचना विकास
    4. स्वरोज़गार के बढ़ते अवसर
    5. गरीबी दूर करने की योजनाओं का सफल क्रियांवयन
    6. जन चेतना का विकास
    7. स्थानीय नेतृत्व क्षमता का विकास
  2. कमियां
    1. दल-गत राजनीति के दुष्परिणाम
    2. ग्राम के सभी लोगों की सहभागिता में कमी
    3. विशेषज्ञ सलाहकारों का अभाव
    4. अनुभवहीनता
    5. राजनीतिक एवं प्रशासनिक हस्तक्षेप

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