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भारत की अर्थव्यवस्था - सामान्य

अर्थव्यवस्था (Economy) सामग्री (माल) एवं सेवाओं के उत्पादन, संसाधन आबंटन, वितरण एवम खपत की एक सामाजिक व्यवस्था है

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ऐसी अर्थव्यवस्था को कहते हैं जिसमें उत्पादन के साधनों का निजी स्वामित्व होता है और उनका उपयोग निजी लाभ के लिए प्रतिस्पर्धात्मक बाज़ारों में किया जाता है. आज अधिकांश देशों में यही व्यवस्था है. इस अर्थव्य्वस्था में उत्पादन और संविरण के साधन (भूमि, कारखाने, प्रौद्योगिकी, परिवहन आदि) कुछ थोड़े से लोगों के स्वामित्व में होता है. इन लोगों को पूंजीपति कहा जाता है. बहुसंख्य‍क लोग अपनी कार्यक्षमता वेतन अथवा मजदूरी लेकर पूंजीपतियों को बेचने के लिये विवश होते हैं. इन्हें श्रमिक वर्ग कहा जाता है.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के लाभ –

  1. पूंजीवाद में कठिन मेहनत और लगन आदि को बढ़ावा मिलता है.
  2. इसी प्रकार इसमें आलस्य को सज़ा भी मिलती है.
  3. इसमें उपभोक्ताओं को चुनने की आज़ादी होती है.
  4. सभी को अपने सपने पूरे करने का अवसर होता है.
  5. कालाबाज़ारी कम होती है.
  6. यह व्यक्ति के चुनने के अधि‍कार पर आधारित होने के कारण प्रजातंत्रिक है.

पूंजीवाद की कमियां -

  1. इसमें लालच को बढ़ावा मिलता है इसलिये सदाचार पर ज़ोर कम होता है.
  2. वास्तव में बाज़ार कभी पूरी तरह मुक्त नहीं होते.
  3. कुछ थोड़े लोगों के हाथों में धन-दौलत सिमट जाते हैं.
  4. समाज में असमानता बढ़ती है.
  5. व्यापारी वर्ग सरकार के साथ लाबी करता है और सरकार अपने पंसंद के पूंजीपतियों के लाभ के लिये काम करने लगती है (क्रोनी कैपिटलिज़्म)
  6. एकाधिकारवाद पनपता है.
  7. श्रमिकों का शोषण होता है.

समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों का सामूहिक स्वामित्वम होता है तथा सैध्दांतिक रूप से उनपर प्रजातांत्रिक तरीके से नियंत्रण किया जाता है. वास्वाविकता यह है कि अधिकांश निर्णय सामूहिक न होकर, केवल कुछ अधिकार प्राप्त लोगों व्दारा लिए जाते हैं. समाजवाद का मुख्य लक्ष्य समाजिक बराबरी का है और मुख्य तर्क यह है कि समाजवाद पूरे समाज के सामूहिक लाभ के लिए है.

समाजवाद के लाभ -

  1. बेहतर वेतन और मजदूरी
  2. बेहतर कार्य वातावरण
  3. शोषण और गरीबी से मुक्ति
  4. धन-दौलत के वितरण में समानता
  5. धन कमाने के अतिरिक्त अन्यत प्रकार के व्यवसायों को करने की छूट

समाजवाद की कमि‍यां -

  1. क्रत्रिम रूप से अधिक या कम मूल्य
  2. बेहतर प्रदर्शन करने पर कोई पुरस्कार नहीं
  3. व्यक्ति को चुनने का अधिकार नहीं – आर्थिक आज़ादी का हनन
  4. अक्षमता को बढ़ावा
  5. तानाशाही प्रवृत्तियों का उदय

म्रिश्रित अर्थव्यवसथा – यह ऐसी अर्थव्यवसथा है जिसमें निजीकार्पोरेट उद्यम और सार्वजनिक उद्यम एक साथ रह सकते हैं. आंशिक रूप से योजना बाजार तंत्र की पूरक होती है. कहते हैं कि इसमें पूंजीवाद एवं समाजवाद दोनो ही के लाभ होते हैं. अधिकांशत: अधोसंरचना और रणनीतिक गतिविधियां सार्वजनिक क्षेत्र में रखी जाती हैं. धन के कुछ लोगों के हाथों में केन्द्रित होने तथा एकाधिकार पर सरकार के नि‍यमों व्दारा रोक लगाई जाती है. वयक्ति को चुनने की स्वतंत्रता होती है जिस पर केवल लोक व्यवस्था और नैतिकता के आधार पर रोक लगाई जा सकती है.

लाभ –

  1. उत्पादकों एवं उपभोत्काओं को आज़ादी होती है और सरकार व्दारा बहुत कम नियंत्रण किया जाता है.
  2. बाज़ारवादी व्यदवस्था की तुलना में असामनता कम होती है.
  3. व्य़क्ति के अधिकार और सामाजि‍क लक्ष्यों के बीच समन्वय होता है.

अर्थव्यवस्था का विश्व बैंक वर्गीकरण – विश्व बैंक ने वर्ष 2016 की स्थिति में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं का वर्गीकरण किया है -

  1. न्यून आय अर्थव्य्वस्थाएं – प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1005 डालर या कम.
  2. निम्न-मध्य्म आय अर्थव्यावस्थाएं - प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1006 से 3955 डालर के बीच.
  3. उच्च -मध्य्म आय अर्थव्यावस्थाएं - प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 3956 से 12235 डालर के बीच.
  4. उच्च आय अर्थव्य्वस्थाएं - प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 12236 डालर या अधिक.

भारत की अर्थव्यवसथा निम्न-मध्यम आय अर्थव्यवस्था है.

सकल राष्ट्रीय उत्पाद के आधार पर भारत की अर्थव्यवस्था विश्‍व की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्य्वस्था है और क्रय शक्ति समता के आधार पर यह तीसरे नंबर पर आती है.

क्रय शक्ति समता

विभिन्न देशों के बीच तुलना करने के लिये राष्ट्रीय आय एवं अन्य सूचकांकों को किसी सामान्य मुद्रा में परिवर्तित करने की आवश्यकता होती है.

इसके 3 तरीके हैं:

  1. बाज़ार मुद्रा विनियम दर

    बाज़ार की मुद्रा विनिमय दर के उपयोग में 2 मुख्य कठिनइयां हैं:

    पहली यह कि, बाज़ार मुद्रा निविमय दरें तेजी से बदल सकती हैं जिसके कारण सूचकांकों में क्रत्रिम परिवर्तन हो सकता है. उदाहरण के लिये यदि येन के मुकाबले डालर के मूल्य में 5 प्रतिशत की वृध्दि एक माह के भीतर हो जाती है तो इससे जापान की अर्थव्यवस्था के डालर मूल्य में 5 प्रतिशत की कमी हो जायेगी जबकि वास्तव में जापान की अर्थव्यवस्था में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं होगा.

    दूसरा यह कि, मुद्रा विनिमय दरों में परिवर्तन मुद्रा की मांग और पूर्ति के कारण होता है जो माल एवं सेवाओं के आयात और निर्यात पर निर्भर करता है. परन्तु सभी देश अपने उत्पाद का एक प्रकार व्यापार नहीं करते.
  2. क्रय शक्ति समता

    किसी मुद्रा की क्रय शक्ति विश्व के सभी देशों के लिये निर्धारि‍त माल एवं सेवाओं के समान समूह (कामन बास्केकट आफ गुड्स एंड सर्विसेज़) को क्रय करने के लिये उस मुद्रा की मात्रा की आवश्यकता को कहते हैं. क्रय शक्ति समता का तात्पर्य है दो देशों की मुद्राओं की क्रय शक्ति को उन देशों में जीवन यापन की लागत, महंगाई आदि को ध्यान में रखकर बराबरी पर लाना.

    उदाहरण के लिए यदि हम जापान के सकल घरेलू उत्पाद को केवल मुद्रा विनियम दर के आधार पर बिना क्रय शक्ति समता का ध्यान रखे अमरीकी डालर में परिवर्तित करें तो ऐसी तुलना उपयुक्त नहीं होगी. परन्तु यदि यह तुलना क्रय शक्ति समता के आधार पर की जाये तो अधिक उपयुक्त होगा.

क्रय शक्ति समता और बाज़ार भाव की तुलना

विश्वशबैंक हर तीन सालों में अमरीकी डालर में इसका तुलनात्मक चार्ट तैयार करता है. क्रय शक्ति समता के आधार पर धनी और गरीब देशों की बीच का अंतर काफी कुछ कम हो जाता है.

इसे एक सरल वीडियो से समझें -

क्रय शक्ति समता पर करों, परिवहन और गैर कर व्यारपार अवरोधों का असर पड़ता है. दो देशों में करों की दर, परिवहन लागत के अतिरिक्त अन्य प्रकार के अवरोध भी हो सकते हें. उदाहरण के लिये कुछ वि‍शेष प्रकार के उत्पादों के विक्रय पर किसी देश में रोक हो सकती है.

भारत एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था है

भारत को अल्पविकसित अर्थव्यवस्था मानने के करण हैं –

  1. निम्न प्रतिव्यक्ति आय
  2. आय और सम्पत्ति के वितरण में बहुत अधिक असमानता
  3. कृषि की प्रधानता
  4. तीव्र जनसंख्या वृध्दि एवं उच्च निर्भरता अनुपात (बड़ी संख्या में काम न करने वाले – बच्चे तथा बुजुर्ग – कम संख्या में काम करने वालों पर निर्भर हैं)
  5. पूंजी की कमी
  6. बेरोजगारी
  7. गरीबी
  8. बाज़ार की अपूर्णताएं
  9. अधोसंरचनाओं की कमी
  10. प्रौद्योगिकी का पिछड़ापन

गरीबी का दुष्चक्र – रेगनर नर्क्से ने कहा है गरीबी का मुख्य कारण पूंजी निर्माण का न होना है. गरीबी के कारण बचत कम हेाती है और पूंजीगत निवेश कम होता है. कम निवेश के कारण उत्पादकता कम रहती है जिससे गरीबी और बढ़ती है. इसे ही गरीबी का दुष्चक्र कहते हैं.

लोरेंज़ वक्र

यह किसी देश में असमानता को नापने का ग्राफ है. इसमें कुटुंबों का प्रतिशत एक्स अक्ष पर तथा आय में हिस्सेदारी का प्रतिशत वाय अक्ष पर रखा जाता है.

मानव विकास प्रतिवेदन

यह विभिन्न देशों में मानव विकास की तुलना करने का माध्यम है. इसमें मानव विकास सूचकांक की गणना की जाती है. पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब-उल-हक ने इसके विकास में बड़ा योगदान किया है. तीन सूचकों को एक समान मूल्य देकर मानव विकास सूचकांक निकाला जाता है. यह हैं – वास्वतिक प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता दर एवं जन्म के समय जीवन प्रत्याशा. वर्ष 2016 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.) ने भारत को मध्‍यम मानव विकास श्रेणी में रखा है. विश्व में भारत का स्थान 131 वां है औ ब्रिक्स देशों में सबसे नीचे है. अंतिम 188 वां स्थान सेन्ट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक का है. भारत के पड़ोसियों में श्रीलंका 73 वे स्थान पर, चीन 90 वे स्थान पर, भूटान 132 वे स्थान पर, बांगला देश 139 वे स्थान पर, नेपाल 144 वें स्थान पर, पाकिस्तान 147 वे स्थान पर और अफगानिस्तान 169 वे स्थान पर है. भारत का मानव विकास सूचकांक 0.624 है. भारत में यह रिपोर्ट राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद जारी करता है. भारत के लिये यह सबसे पहले 2001 में जारी हुई थी. राज्य स्तर पर सबसे पहले इसे मध्यप्रदेश ने जारी किया था. भारत के राज्यों में केरल पहले नंबर पर और छत्तीसगढ़ सबसे नीचे 23 वे नंबर पर है.

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