प्रागैतिहासिक छत्तीसगढ़
प्रागैतिहासिक काल का अर्थ है इतिहास से भी पहले का समय. प्रागैतिहासिक काल के कोई लिखित प्रमाण नहीं हैं. उस समय के मानव के व्दारा उपयोग किए गए औजारों, हथियारों और गुफाओं में प्राप्त शैल चित्रों से ही हम उस समय के मानव के जीवन का अनुमान लगा सकते हैं. प्रागैतिहासिक काल को पाषाण काल ताम्र काल और लौह काल में विभाजित किया जा सकता है.
पाषाण काल
पाषाण काल में मानव केवल पत्थर के औज़ारों एवं हथियारों का उपयोग करता था. इसके बाद मानव में धातु को खोज निकाला. सबसे पहले ताम्र का उपयोग किया गया. इस काल को ताम्र काल कहते हैं. तांबे के बाद लोहे को खोजा गया. इसे लौह काल कहा जाता है. पाषाण काल को भी तीन भागों में बांटा गया है –
- पूर्व पाषाण काल – इस युग के औजार बहुत अच्छे नहीं थे. ये हथियार बहुत धारदार नहीं थे. ऐसे औजार महानदी घाटी तथा रायगढ जिले के सिंघनपुर से प्राप्त हुए हैं.
- मध्य पाषाण काल - मध्य युग में औजार बेहतर हो चुके थे. यह लम्बे फ़लक के तथा अर्ध-चंद्राकार आकार के होते थे. आकार में अपेक्षाकृत छोटे थे. लघु पाषाण काल के औजार रायगढ जिले के कबरा पहाड़ के चित्रित शैलाश्रय के निकट से प्राप्त हुए हैं.
- उत्तर पाषाण युग अथवा नव पाषण काल - उत्तर पाषाण युग में लघुकृत पाषाण औजारों का उपयोग होता था. मनुष्य ने इन छोटे और धारदार पत्थरों के नुकीले सिरों को लकड़ी और बांस पर बांधकर तीर तथा भाले की तरह उपयोग करना सीख लिया था. महानदी घाटी, बिलासपुर जिले के धनपुर तथा रायगढ जिले के सिंघनपुर के चित्रित शैलाश्रय के निकट ऐसे औजार प्राप्त हुए हैं.
ताम्र और लौह काल
पाषाण के पश्चात् 'ताम्र' और 'लौह युग' आता है. इस काल के बहुत अधिक औजार आदि छत्तीसगढ़ में नहीं मिले हें. धमतरी बालोद मार्ग पर लोहे के कुछ उपकरण आदि प्राप्त हुए हैं.
पाषाण काल और धातु युग के बहुत से शैल चित्र छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर मिले हैं. इन शैल चित्रों को सर्वप्रथम बंगाल नागपुर रेल्वे के इंजीनियर सी.डब्यू. एंडरसन ने 1910 में खोजा था. इस कार्य में उनकी सहायता सी.जे. वेलिंगटन ने की थी. इसके बाद अनेक पुरातत्वविदों ने इन खोजों पर काम किया और अनेक प्रकाशन भी किए. इंडिया पेंटिग्स 1918 में तथा इन्साइक्लोपिडिया ब्रिटेनिका के 13वें अंक में रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के शैलचित्रों का प्रकाशन पहली बार हुआ था. अमरनाथ दत्त ने 1923 से 1927 के मध्य रायगढ़ के शैल चित्रो का सर्वेक्षण किया. डॉ एन. घोष, डी. एच. गार्डन, पंडित लोचनप्रसाद पांडेय आदि ने इन शैलचित्रो का अध्ययन किया. चित्तवा डोंगरी के शैलचित्रों को सर्वप्रथम श्री भगवान सिंह बघेल एंव डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र ने उजागर किया. धनोरा के महापाषाण स्मारकों का सर्वेक्षण प्रो जे आर काम्बले और डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र ने किया था.
यह शैलचित्र मुख्य रूप से रायगढ़ ज़िले में सिंघनपुर, कबरापहाड़, बसनाझार, ओंगना, करमगढ़, खैरपुर, बोताल्दाय, भंवरखोल, अमरगुफा, गाताडीह, सिरोली डोंगरी, बैनीपहाड़ आदि में मिले हैं. इन चित्रों में पक्षी, सांप, हाथी, भैंस, अन्य पशु, जंगली सूअर, हिरन, नृत्य एवं शिकार करते लोग, आदि का अंकन है.
छत्तीसगढ के प्रमुख शैलाश्रयों एवं उनके चित्रों का विवरण
- सिंघनपुर – यहां डंडे तथा सीढ़ी के आकार की मानव अकृतियां हैं, जिसमे जलपरी, शिकार के दृश्य, नृत्य के दृश्य आदि हैं. इन आकृतियों की तुलना आस्ट्रेलिया में प्राप्त सीढ़ीनुमा पुरुष से की जाती है.
- कबरा पहाड़ – रायगढ़ के विश्वनाथपाली के निकट कबरा पहाड़ की सारी चित्रकारी लाल रंग से हुई है. छिपकली, सांभर, घड़ियाल इत्यादि चित्र हैं. समूह शिकार का सर्वप्रथम चित्र भी यहां है. यहां पर बना जंगली भैसे का चित्र रायगढ़ का विशालतम शैल चित्र है. यहां पाषाणयुगीन अर्धचन्द्राकार फलक वाले औजार भी प्राप्त हुए हैं.
- बसनाझर शैलाश्रय – सिंघनपुर से 8 कि.मी. दूर 2000 फुट की ऊंचाई पर बसनाझर शैलाश्रय है. इसमें शिकार एवं सामूहिक नृत्य के दृश्य हैं तथा जीव-जंतुओं के चित्र भी हैं. इन्हें 10 हजार साल पुराना माना जाता है. रायगढ़ जिले में प्राप्त हाथी का एकमात्र चित्र बसनाझर में है.
- ओंगना शैलाश्रय – ओंगना में मुखौटे लगाए हुए मानव का चित्र है. घडी के आकार का चित्र भी मिला है.
- कर्मागढ़ शैलाश्रय – यह रायगढ़ से 30 कि.मी. दूर हैं. इसमें 300 से अधिक बहुरंगी आकृतियां एवं जलचरों की आकृतियां हैं जो 300 फीट लम्बी तथा करीब 20 फीट चौड़े क्षेत्र में पूर्वमुखी पाषाण शिलाखंड पर अंकित है. यह चित्र मुख्य रूप से सफेद, पीला, लाल और गैरिक रंगों के हैं.
छत्तीसगढ़ के शैलाश्रयों का विवरण
1 | सिंघनपुर | रायगढ़ | सीढि़यां, जलपरी, कंगारू, शिकार के दृश्य, जिराफ |
2 | कबरा पहाड़ | रायगढ़ | कछुआ, बाइसन, मानव आकृतियां ज्यामितीय आकृतियां |
3 | बसनाझार | रायगढ़ | हाथी, ज्यामितीय आकृतियां, हाथी, शिकार के दृश्य |
4 | ओंगना | रायगढ़ | शिरस्त्राण पहने पुरुष ज्याीमितीय अकृतियां |
5 | करमागढ़ | रायगढ़ | रंगबिरंगी आकृतियां |
6 | खैरपुर | रायगढ़ | नृत्य के दृश्य पशुओं के चित्र |
7 | चापामड़ा | रायगढ़ | पशुओं की आकृतियां युध्द के दृश्य |
8 | बोतलाडाह | रायगढ़ | पशु, शिकार के दृश्य जलपरी |
9 | भंवरखोल | रायगढ़ | बाइसन, जलपरी, भालू, शिकार, स्वास्तिक |
10 | अमरगुफा एवं चेरीगोडरी | रायगढ़ | पशु, शिकार |
11 | सूतीघाट | रायगढ़ | कृषि, पशु |
12 | टिपाखोल | रायगढ़ | ज्यामितीय अकृतियां |
13 | नवागढ़ी | रायगढ़ | धार्मिक चिन्ह जैसे सूरज, चंदा, पशु, शिकार आदि |
14 | बैनीपाट | रायगढ़ | ज्यामितीय आकृतियां |
15 | सिरोली डोंगरी | रायगढ़ | शिकार, ताड़ |
16 | पोटिया | रायगढ़ | मानव एवं पशुओं के चित्र |
17 | गीधा | रायगढ़ | विभिन्न चित्र |
18 | उदकुंदा - देवता की कचहरी
- चंदा पथरा
- आद्या पहाड़
| कांकेर | ताड़ एवं पैरों के चित्र, मानव चित्र |
19 | गाडा गावरी | कांकेर | पशु |
20 | खेरखेड़ा - बालेराव
- नौकर गुडारा
- गडिया गुडारा
| कांकेर | पशु एवं मानव चित्र, ताड़ आदि |
21 | कान्हागांव | कांकेर | मानव एवं पशु चित्र |
22 | गोटीटोला | कांकेर | राम, सीता, लक्षमण, ताड़ वृक्ष आदि |
23 | सीता रामगुड़ा | कांकेर | मानव आकृतियां |
24 | कुलगांव | कांकेर | पशु, मानव आकृतियां, सफेद एवं पीले रंग में |
25 | घोड़सर | कोरिया | पशु, दैनिक जीवन के चित्र सफेद रंग में |
26 | कोहबहार | कोरिया | ज्यामितीय आकृतियां |
27 | चितवा डोंगरी | दुर्ग | चीनी आकृतियां, ड्रेगन, कृषि कार्य |
28 | सीतालेखनी (ओडगी) | सरगुजा | ज्यामितीय आकृतियां |
29 | रामगढ़ | सरगुजा | मानव अकृतियां, ज्यामितीय आकृतियां |
30 | लिमडारिहा | बस्तर | मावन एवं पशु आकृतियां |
31 | मुरेलगढ़ | कोरिया | मानव एवं ज्यामितीय आकृतियां |