उत्‍कृष्‍ट शिक्षकों की कथाएं
समस्‍त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्‍कृष्‍ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्‍वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.

लगातार सुधार का प्रयास करने वाली शांता देवी साहू

शांता देवी साहू वर्ष 2003 से शिक्षक के पद पर कार्य कर रही हैं. उनकी शाला के बच्चे उनसे बहुत घुल मिलकर रहते हैं. उनकी हर बात मानते हैं. वृक्षारोपण, स्वच्छ भारत अभियान आदि में उन्हें बहुत सहयोग करते हैं.

शिक्षक का कार्य सिर्फ कोर्स को किताबे पढ़ाते रहना नहीं होता. शांता जी अपने जीवन के अनुभव भी बच्चों में बाटती हैं. इससे बच्चों से बेहतर तालमेल बैठाना सरल होता है. वे हमेशा बच्चों को सही गलत की पहचान कराती हैं. उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी बातें, व्यवहार और मानवता की सीख बच्चों को देती हैं. इससे बच्चों का बौध्दिक, सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक और नैतिक विकास होता है.

बच्चों की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए शाला में माता-पिता का बैठक रखती हैं. और भी कार्यक्रम जैसे आँगना म शिक्षा, शाला समिति की बैठक, नाटक, गतिविधियों, बाल सभा, बाल दिवस पर बाल मेला का आयोजन, सुरक्षित शनिवार आदि भी कराती हैं. इसके अलावा अन्य गतिविधियां जैसे, रंगोली बनाना, कबाड़ से जुगाड़, मेहंदी प्रतियोगिता, मिट्टी के खिलौने, दि‍या सजाना, कठपुतली बनाना, कागज से नाव, टोपी, विभिन्न आकृति बनाना भी सिखाती हैं. पालक सम्पर्क करके बच्चों की समस्या को जानने का प्रयास करती हैं और उसका निवारण करती हैं. वे कमजोर बच्चो को क्या समस्या है, जिसके कारण शाला नहीं आते हैं और आते है तो सीखते नहीं हैं, उस समस्या की खोज करती हैं और फिर उस पर कार्य करती हैं.

एक बच्चे के पिता उसे शाला रोज छोड़ते थे और शाला के बाहर बैठे रहते थे. प्रतिदिन 1 बजे छुट्टी माँग कर उसे लेकर चले जाते थे. शांता जी को लगा कि यह पालक हमेशा अपने बच्चों को लेकर चला जाता है, जिसके कारण वह बच्चा कमजोर है. एक दिन पालक को बुलाकर पूछा तो उन्होने बताया कि कोई दूसरा बच्चा उसे न मारे इस कारण वह वहां बैठा रहता था. शांता जी के समझाने पर पालक समझ गया. बच्चा अब पूरे दिन कक्षा में बैठता है और पढ़‌ना भी सीख गया है.

कबाड़ से जुगाड़ में प्रतियोगिता में शांता जी ने संकुल में प्रथम स्थान प्राप्त किया है. खिलौना कॉर्नर के लिए नये भवन में अलमारी बनवा रही हैं. उनकी शाला के बच्चों के अधिकांश पालकों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. बच्चे ज्यादातर सिदार, ढी़मर, रोहिदास, ध्रुव वर्ग के हैं. शांता जी से जितना हो सकता है, वे बच्चों के लिए टाई, पहाड़ा, पेन, कापी, पेन्सिल और स्लेट अपने पैसे से लेकर बच्चों को देती हैं.

कन्या शाला खरौद में प्रधान पाठक के पद में आते ही उन्हे सबसे बड़ी चुनौती का सामना पड़ा. शाला में भवन नही है. रसोई घर नहीं है. कार्यालय नहीं है. बहुत प्रयास करने पर उन्हे पता चला शाला से लगी जमीन शाला की ही है. फिर उनके से प्रयास शाला में कक्षों का निर्माण प्रारंभ हुआ.

वे बच्चों को शब्द पढ़ना सिखाने पर काम करती हैं. अ की (T) मात्रा का ज्ञान कराने के बाद वे बारह खड़ी को पढ़ना सि‍खाती हैं. बारह खड़ी सीधा पढ़ना, खड़ा पढ़ना और तिरछा पढ़ना सि‍खाती हैं. उसके बाद उल्टा और बीच-बीच से पूछती हैं. उसके बाद अक्षर को जोड़कर पढ़ना सि‍खाती हैं. बच्चे आसानी से पुस्तक पढ़ लेते हैं.

अस्‍वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्‍वयं उनका सत्‍यापन नही किया है.

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