समस्त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्कृष्ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.
संध्या साहू के बड़े काम
प्रा. शा. पंचाल फड़की, दूरस्थ वनांचल क्षेत्र में जंगलों एवं पहाड़ो से आच्छदित एक गांव मे है. यह आदिवासी बाहुल गांव है, जहां छोटे किसान व मजदूरों के बच्चे स्कूल आते हैं. संध्या साहू जी ने इसी स्कूल से अपना कार्य प्रारंभ किया.
इस स्कूल में रसोइया एक महिला है. पीरिएड के समय वह दो दिनों तक वह खाना बनाने नही आती थी. गांव वाले अपने समाज की परम्परा की दुहाई देते थे. बार बार समझाने पर कि यह महिलाओं की प्रकृति है, बड़ी मुश्किल पर संध्या जी ने यह चुनौती पार करके उन्हें समझा पाया.
यहां बच्चे नियमित शाला नही आते थे. प्रतिदिन स्नान नही करते थे. पढ़ने-लिखने के स्थान पर खेती में लगे रहते थे. संध्या जी ने किचन गार्डन तैयार किया. बच्चों व समुदाय के साथ मिलकर सब्जियां व फल लगाये. बच्चे नियमित शाला आने लगे. हैंडपंप में लाल पानी की समस्या को देखते हुए उन्होने स्वयं के व्यय से मोटर पंप लगवाया. बच्चों को स्कूल में ही नहलाकर तैयार करने लगी.
यहां बच्चों में गुडा़खू करने व तंबाखू खाने की आदत लगी थी. संध्या जी ने नशा मुक्ति कार्यक्रम चलाया. तंबाखू से होने वाली बीमारियों के बारे में लेपटाप पर दिखाकर प्रचार प्रसार किया. गांव की दोवारों पर नारे लिखवाये. बच्चे अब नशे से बिल्कुल मुक्त हैं.
बच्चों को गार्डन में काम करते-करते गिनती, पहाड़ा, जोड़ना, घटाना, गुणा-भाग आदि सिखाना प्रारंभ किया. इससे बच्चे जल्दी ही सीखने लगे. महिला समूह के व्दारा सब्जी का पैसा इकट्ठा कर एवं स्वयं के व्यय से एक कम्प्यूटर खरीदा. यहां के मुख्यकार्यपालन अधिकारी श्री डी. डी. मंडले से पांच हजार का सहयोग मिला. शाला की पूरी दीवाल प्रिंट रिच संध्या जी ने स्वयं के हाथों से बनाई. वे पूरी बच्चों की पढ़ाई गतिविधि आधारित टी.एल.एम. बनाकर करवाती हैं.
कोरोना काल में संध्या जी ने घर-घर जा कर बच्चों के लिए सभी विषयों के चार्ट लगाये. कॉपी जांचने, गृहकार्य देने का कार्य घर में जाकर किया. ऑन लाइन पढ़ाई करवायी.
वे महिलाओं के उन्मुखीकरण की कार्यशाला महीने में एक बार जरूर करती हैं. समुदाय से सहयोग लेकर अहाते की पोताई करवायी. किचन गार्डन में भी महिलाओं का सहयोग मिलता है. बच्चों को बांस की कलाकारी शनिवार को सिखाती हैं. बच्चे बांस से छोटी-छोटी रचनात्मक चीजों का निर्माण करते हैं. उन्होने बच्चों के साथ मिलकर बांस की तीलियो से राष्ट्रगान, राज्यगीत की प्रतिलिपि बनवायी है.
बच्चों के स्वास्थ्य को देखते हुए स्वयं के व्यय से वाटर फिल्टर एवं आर.ओ. लगवाया है, जिससे बच्चों को स्वच्छ पानी मिलने लगा है. साथ में आंगनबाड़ी के बच्चों को भी पानी की सुविधा दी जाती है. वे स्वयं के व्यय से हर वर्ष बच्चों को टाई, बेल्ट और समय-समय पर कॉपी, पेन आदि भी देती हैं. अपने पिताजी के श्राध्द, जन्मदिन आदि पर बच्चों को भोज कराती हैं.
वे भाषा अभिव्यक्ति के लिये एक कार्यक्रम चला रही हैं, जिसका नाम है - "हम भी बोलेंगे". इसके तहत बच्चे अपनी भावना को अभिव्यक्त करते हैं. क्रीडा के क्षेत्र में तथा कबाड़ से जुगाड़ में हमेशा उनके स्कूल को जिले में विशिष्ट स्थान मिला है.
अस्वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्वयं उनका सत्यापन नही किया है.