उत्‍कृष्‍ट शिक्षकों की कथाएं
समस्‍त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्‍कृष्‍ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्‍वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.

तुलेश्वर कुमार सेन के संघर्षों की कहानी

तुलेश्वर कुमार सेन का जीवन पूरी तरह संघर्षों से भरा रहा. इसका एक कारण एक पैर से दिव्यांग होना है. बचपन में उनका पैर पोलियो से ग्रसित हो गया था. बैसाखी ही उनका सहारा बन गयी. इसके बाद हर पल चुनौती को स्वीकार करना पड़ता था. कुछ ही लोग ही सम्मान से बात करते थे. बाकी लोग हमेशा आलोचना या निराशा वाली बातें करते थे. फिर अंदर से प्रेरणा मिली कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जिससे लोगों के बीच अलग पहचान बन जाए. जो लोग आज आलोचना कर रहे हैं, वही प्रशंसा करने पर मजबूर हो जाएं.

तुलेश्‍वर जी पढ़ाई में होशियार थे, परंतु कई बार आर्थिक स्थिति मजबूरी बन जाती थी. आठवीं के बाद पैसा नहीं होने के कारण पढ़ाई छूटने वाली थी, परंतु उसी समय एक नया चमत्कार हो गया. गांव में गायत्री मंदिर था. सुबह शाम वे प्रसाद के लालच में वहां जाते थे. पूजा विधि विधान का पूरा ज्ञान हो गया था. उन्‍हें पढ़ाई के लिए पैसा चाहिए था और लोगों को मंदिर में पुजारी. बस दोनों के बीच समझौता हो गया. वे मंदिर के पुजारी बन गये. बदले में पैसा मिलने लगा. इस प्रकार बारहवीं तक की पढ़ाई पूर्ण हो गई. पढ़ाई के साथ सब्जी लाकर अपने ट्राइसिकल से गांव में बेचते थे. नाई परिवार से संबंध रखते हैं, तो सेलून में हजामत भी बनाते थे.

इसी बीच मंदिर के पैसे और छात्रवृत्ति के पैसों को मिलाकर एक याशिका कैमरा खरीदा, और फोटोग्राफी का काम सीख गये. अब अच्छी आवक होने लगी. आगे पढ़ना चाहते थे. बी.टी.आई. खैरागढ़ में उनका चयन हो गया. वहां ट्रेनिग की. हॉस्टल में केवल एक कमरा मिला. सारा काम अपने हाथों से करना पड़ता था. समय निकाल कर वहां भी सेलून जाते थे. पढ़ाई पूरी हो गई. पढ़ाई को पूरा कराने के लिए बहुत सारे लोगों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोग प्रदान किया था, जिसमें स्व० श्री अनिल शुक्ला जी, पूर्व जनपद अध्यक्ष, पुरोहित सर, बी.आर. जोशी जी, रतन यादव जी, धनेश पाटिला जी, सुश्री साधना अग्रवाल जी, सुश्री डी. मिश्रा मैडम, सुंदर सिंह मरकाम जी, धरम चंद लूनिया जी, बाबा श्री देवव्रत सिंह जी, श्री लाल श्रीराज सिंह जी, श्री गणपत दुबे जी, श्री वीरेन्द्र दुबे जी, सरपंच घुमका आदि शामिल हैं.

जब वे कक्षा दसवीं में पढ़ते थे तबकी एक घटना है. उनके घर में बिजली नहीं लगी थी. जब वे कक्षा दसवीं में 58.6% अंक लेकर पास हुए, तो सीधा उस समय के ऊर्जा मंत्री धनेश पाटिला जी से घुमका के विद्युत आपूर्ति वितरण केन्द्र के उद्घाटन कार्यक्रम में जाकर मिले और निवेदन किया कि – ‘‘मैं एक दिव्यांग हूं, और पढ़ाई में भी होशियार हूं. अब तक मेरे घर में बिजली नहीं लगी है.’’ उन्होंने तुरंत विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया कि इसे तत्काल कनेक्शन दिया जाए. कुछ दिन के अंदर कनेक्शन मिल गया.

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान खैरागढ़ में डी.एड. के तुलेश्‍वर जी का चयन हुआ तो बहुत खुशी हुई. तीन दिन के अंदर जाकर ज्वाइन करना था, परंतु पास में पैसा नहीं था. तब जन सहयोग लेने का मन में निश्चय किया और जितने भी जान पहचान के शिक्षक, मित्रगण, साथी, जन प्रतिनिधिगण, रिश्तेदार थे, सभी से सहयोग लिया. यथा शक्ति सभी ने सहयोग किया. तुलेश्‍वर जी जनपद पंचायत राजनांदगांव में श्री अनिल शुक्ला, जनपद अध्यक्ष से मिले तो उन्होंने तुरंत विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया की जब तक इनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती है तब तक हर महिना पांच सौ रुपया दिया जाएगा और डी.एड. पूरा होते तक दिया भी.

डी.एड. पूरा होने के बाद अपने गांव सलोनी के स्कूल में एक साल तक नि:शुल्क पढ़ाया. कई जगह फार्म भरे परंतु कहीं पर नौकरी नहीं लगी. अंत में बिजनेस करने का फैसला किया. बैंक से लोन लेकर दुकान खोली परंतु दो-तीन महीने बाद ही ताला तोड़कर पूरा सामान चोरी हो गया. इसी बीच उनकी नौकरी बीहड़ वनांचलमें लगी, जहां आजादी के साठ साल बाद भी कोई सुविधा नहीं थी. स्कूल, आंगनबाड़ी नही थे. बस, रोड, मोबाइल कुछ भी नहीं था. पैदल ही जाना पड़ता था. बस के लिए दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. संकुल आठ किलोमीटर दूर था. बैगा और गौड़ जनजाति के चालीस घर थे. बहुत संघर्ष करके तुलेश्‍वर जी ने तीन साल में उस गांव का काया कल्प कर दिया. जिस घर में रहते थे, वही स्कूल भी था और उनका निवास भी था. वहीं सारी गतिविधियां संचालित करते थे.

साप्ताहिक दीप यज्ञ, नशा मुक्ति अभियान, बाल संस्कार शाला, गांव में रामायण मंडली, स्वच्छता अभियान, प्रभात फेरी, गांव के महिला-पुरुष को पढ़ाना और आकाशवाणी रायपुर के कार्यक्रमों से जोड़ना, आदि उन्‍होने प्रारंभ किया. इसका यह फल हुआ कि आज वहां के बच्चे कालेज में पढ़ रहे हैं. इसके बाद उनकी पदस्‍थापना पैलीमेटा हो गई. वहां भी इसी तरह कार्य किया. शिक्षा, साहित्य, समाज सेवा, शिक्षा में नवाचार आदि करते रहे. वहां पर तेरह साल रहे. अब प्रधान पाठक बनकर पुरैना आ गये हैं. वहां भी यही सब कार्य कर रहे हैं. इसके अतिरिक्त साहित्य लेखन, आकाशवाणी में प्रस्तुति, लघु फिल्मों में काम करना, प्रतिदिन मीडिया में समाचारों का प्रिंट और इलेक्ट्रानिक कवरेज करना, मंच संचालन करना तथा अपनी आवाज देना, आदि कार्य करते रहते हैं.

उन्‍हें मुख्य मंत्री शिक्षा दूत गौरव अलंकरण, राज्यपाल शिक्षक सम्मान, छत्तीसगढ़ राज्य गौरव सम्मान, अग्रदूत सम्मान, श्रेष्ठ और आदर्श शिक्षक सम्मान आदि सौ से अधिक मंचों पर सम्मान मिला है. आज एक जाने पहचाने चेहरे के रूप में स्थान रखते हैं.

अस्‍वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्‍वयं उनका सत्‍यापन नही किया है.

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