समस्त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्कृष्ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.
विद्यालय के साथ माताओं की सहभागिता सुनिश्चित करने वाली सावित्री सेन
सावित्री सेन, सहायक शिक्षक, प्राथमिक शाला देवरी, विकास खंड मस्तुरी, बिलासपुर ने जब यह देखा कि बहुत प्रयास के बाद भी एस.एम.सी. के सदस्य बैठक मे उपस्थित नही होते, तो उन्होने विचार करना प्ररंभ किया कि बच्चों की बातें पालकों के साथ कैसे साझा की जाएं. ऐसा क्या किया जाए जिससे एस.एम.सी. के सदस्य विद्यालय के साथ जुड़ें और अपने बच्चों के लिए जागरूक हों. उन्होने ‘अंगना म शिक्षा’ कार्यक्रम के अंतर्गत माताओं को साथ लेकर काम करना प्रारंभ किया. कोरोना के समय सभी से जुड़ना आसान नही था, परंतु फिर भी उन्होने घर-घर जाकर एक कोशिश की. वे अब माताओं को जोड़ने मे काफी सफल हुई हैं.
जैसे ही कोरोना की समाप्ति के बाद शाला लगना प्रारम्भ हुआ, तब फिर से माताओं का जुड़ाव कम होता दिखाई देने लगा. तब उन्होनेन माताओं को जोड़कर रखने के लिए माताओं के लिए नि:शुल्क सिलाई क्लास प्रारंभ किया, ताकि इसी बहाने से माताओं से उनकी मुलाकात होती रहे. आज गाँव की माताओं के सिलाई क्लास का पहला बैच समाप्त होकर दूसरा बैच चल रहा है.
जितनी भी योजनाएं बच्चों, माताओं के लिए आती उनकी चर्चा वे सिलाई क्लास मे ही माताओं से करती हैं. एफ.एल.एन., निपुण भारत मिशन, नई शिक्षा नीति, छात्रवृत्ति, पेंशन योजना, विधवा पेंशन, राशन कार्ड आदि के बारे मे वे माताओं से चर्चा करके जानकारी देती हैं. कुछ बातो को उनकी ही भाषा मे गाकर भी साझा किया जाता है, जैसे एफ.एल.एन. की समझ हेतु भरथरी और पंडवानी की तर्ज पर उन्हे सुनाया कि क्या, कब और कैसे करना है. उनका साथ पाने के लिए समय-समय पर तीज त्योहार भी मनाया गया. आज की स्थिति ऐसी है कि माताएं स्वयं अपने बच्चों के विषय मे जानने हेतु शाला मे आती है. बुलाने की भी जरूरत भी नही होती. जो भी जानकारी चाहिए वो शाला मे आकर लेती है, साथ ही सन्तुष्ट होकर जाती हैं.
अस्वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्वयं उनका सत्यापन नही किया है.