समस्त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्कृष्ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.
शिक्षक बलदाऊ सिंह श्याम गांव के नन्हे बच्चों में जगा रहे हैं शिक्षा की अलख
जिला मुख्यालय बिलासपुर से 40 किलोमीटर और विकासखंड मुख्यालय कोटा से 25 किलोमीटर दूर स्थित शासकीय प्राथमिक शाला तिलकडीह हैं. शिक्षक बलदाऊ सिंह श्याम स्थानांतरण से 2012 में यहां आये. तब यह विद्यालय आहाता विहिन था. भवन जर्जर था. पेयजल की कोई ब्यवस्था नहीं थी. बच्चों की बैठने हेतु कोई दरी या टाटपट्टी तक नही थी.
आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग एवं ग्रामीण परिवेश में पल रहे बच्चों के भविष्य को संवारने का सपना लिए हुये शिक्षक बलदाऊ सिंह श्याम ने जन प्रतिनिधियों से मिलकर अतिरिक्त कक्ष हेतु राशि स्वीकृत कराके कक्षों का निर्माण करवाया, जहां आज कक्षायें संचालित हैं. साथ ही शिक्षक की पहल पर जनपद सदस्य के व्दारा आहाता निर्माण भी करवाया गया. समुदाय की सहायता से बलदाऊ जी ने बच्चों के लिए अन्य भौतिक संसाधनों, जैसे टेबल-कुर्सी, पंखा-कुलर, कंम्पयूटर आदि की व्यवस्था भी की. बलदाऊ जी ने बच्चों के लिये स्वेटर, जूता-मोजा, टाई-बेल्ट, आदि की व्यवस्था भी कराई.
भवन के बनते ही बाहरी दीवारों एवं कक्षाओं में सुंदर, आकर्षक, शैक्षणिक पठन पाठन से भरपूर प्रिंटरिच चित्रकारी व वाल पेंटिंग कराई. विद्यालय की भौतिक दशा सुधारने के पश्चात बच्चों के शैक्षणिक स्तर को सुधारना बलदाऊ जी ने अपना मुख्य उद्देश्य बना लिया. बच्चों की छोटी-छोटी कमियों को पूरा करते हुए शाला प्रबंधन समिति से प्रस्ताव पारित करवा कर रविवार/अवकाश के दिनों में भी अतिरिक्त कक्षायें संचालित करके बच्चों के शैक्षणिक स्तर में सुधार लाया. इनकी विशेषता यह है कि इनका स्कूल 365 दिन खुला रहता है. परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में इनके भगीरथ प्रयास से आज इनके विद्यालय से 15 बच्चे एकलव्य, 2 बच्चे उत्कर्ष व 1 बच्चे का सैनिक स्कूल में चयन हो चुका है.
पंडित जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शिक्षा समागम कार्यक्रम रायपुर में इनके स्कूल के बच्चों का चयन विज्ञान के प्रयोग हेतु हुआ था. मौखिक गणित कौशल और व्यक्तित्व विकास प्रतियोगिता में इनके स्कूल के बच्चे जिला व संभाग स्तरीय विजेता रहे हैं, तथा राज्य में बेहतरीन प्रदर्शन रहा है.
बच्चों के स्तर में सुधार आते ही वैश्विक महामारी ने नन्है नौनिहाल के भविष्य को भी प्रभावित किया. समय बदला, विभाग के आदेशानुसार आनलाईन कक्षायें प्रांरंभ की गईं. किन्तु समस्या यथावत बनी रही. ऑनलाईन कक्षा में पढ़ने के लिए अधिकतर बच्चों के पास एन्ड्रायड मोबाइल नहीं था, अगर था भी तो नेटवर्क नहीं रहता था, कहीं नेटवर्क था तो रिचार्ज के पैसे नहीं थे. तब शिक्षक ने स्वंय के व्यय से 10 बच्चों को सेकेंड हेंड मोबाइल दिया, व उनका रिचार्ज भी करवाते रहे.
जैसे ही वातावरण में सुधार हुआ, आपदा को अवसर में बदलते हुए ऑफलाईन मुहल्ला कक्षा सार्वजनिक मंच पर शिक्षक ने लगाना शुरू किया और इस प्रकार बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखा. शिक्षक सप्ताह में एक दिन मोहल्ला कक्षा में ‘कहानी दिवस’ का आयोजन कर बड़े-बुजुर्गो को आमंत्रित कर कहानी वाचन करवाते थे, जिससे बच्चों में श्रवण-वाचन कौशल विकसित हो सके. ग्रीष्मकालीन समर कक्षा आयोजित कर विभिन्न विधाओं में बच्चों को पारंगत कर रहे हैं. अनुभव आधारित शिक्षा में विभिन्न कामगारों को विद्यालय में बुलाकर उनके कार्य की समझ बच्चों में विकसित कर रहे हैं.
किचन गार्डन में मौसमी सब्जियां उगा कर बच्चों को मध्यान्ह भोजन में पौष्टिक सब्जियां उपलब्ध कराते हैं. विद्यालय में 100 फलदार वृक्ष लगाकर विद्यालय परिसर को हरा भरा रखा है एवं बच्चों को मौसमी फल जैसे पपीता, सीताफल, अमरूद, आम, भुट्टा, खीरा, आदि खाने को उपलब्ध कराने में शिक्षक सफल रहे हैं.
शिक्षक अपने उत्कृष्ट कार्यो के कारण मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण शिक्षा दूत से सम्मानित हो चुके हैं. कोरोना काल में इनके द्वारा किये गये कार्यो के कारण शिक्षा मंत्री द्वारा घोषित जिले के 36 उत्कृष्ट शिक्षकों में इनको पुरस्कृत किया जा चुका है. बेहतर कार्यशैली के कारण 2021-22 में राज्य शिक्षक सम्मान पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं.
अस्वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्वयं उनका सत्यापन नही किया है.