उत्‍कृष्‍ट शिक्षकों की कथाएं
समस्‍त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्‍कृष्‍ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्‍वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.

आदिवासी विकासखंड नगरी में स्‍कूल को स्‍वर्ग बनाने वाले संतोष कुमार बांधव

शासकीय प्राथमिक शाला टेंगना ग्राम पंचायत से 3 किमी. दूर खेतों के बीच है. यहां के लोग बड़े सरल स्वभाव एवं सहयोगात्मक व्यक्तिव के धनी हैं. इस गांव में गोंड और हल्बा जनजाति के लोग अधिकाश निवासरत हैं. ग्रामवासी आपसी बैठक लेकर समस्त मुद्दों पर चर्चा करके समाधान करते हैं. बुर्जुगों की बात सभी मानते हैं. संतोष कुमार बांधव, एक पैर से दिव्‍यांग हैं. उनकी नियुक्ति 24 फरवरी 2009 को प्राथ. शाला टेंगगना में हुई. यहां का विद्यालय जो कि सन् 1956 में बनाया गया था तब तक लगभग खंडहर हो चुका था. वहां पर संतोष जी एकमात्र शिक्षक पदस्थ थे. शाला में एक आलमारी दो कुर्सी एक टेबल व टूटी हुआ ब्लैक बोर्ड था. बच्चे भी फटे पुराने कपड़े पहनकर आते थे. संतोष जी को लगा कि वे वहां नहीं पढ़ा पाएंगे. बारिश के समय सांप बिच्छु व बारिश के पानी से जर्जर भवन गिरने का भय लगा रहता था. संतोष जी ग्राम के बुर्जगों से कहकर दूसरे के घरों में लकड़ी के बोर्ड, कुर्सी, झोले, रजिस्टर एवं अन्य सामग्री को लेकर पढ़ाने जाने लगे. लगभग दो सालों तक दूसरों के प्रांगण में अध्यापन कार्य करने जाना पड़ता था. धीरे-धीरे उनहोने लोग से संपर्क करके सहयोग मांगना प्रारंभ किया. ग्रामवासी उनकी बातों का हमेशा समर्थन करते थे. उन्‍होने प्रण लिया और लोगों से कहा कि इस खंडहर स्कूल को पूरी तरह विकास की ओर अग्रसर कर देंगे. इसका परिणाम यह हुआ कि आज विद्यालय में किसी भी संसाधन की कमी नहीं है. शिक्षकों के प्रयास व ग्रामवासि‍यों के सहयोग के बिना यह संभव नहीं था.

वर्ष 2011 में स्कूली छात्र-छात्राओं को ज़मीन पर बेठकर, झुककर लिखना पडता था. बी.आर.सी. नगरी व श्री बी.एम. साहू, माध्यमिक शाला प्रधानपाठक, के सहयोग से बीआरसी में पड़े कबाड फर्नीचर को शाला में मंगाकर उससे बच्चों के लिए डेस्क एवं टेबल का निर्माण किया. इससे बच्चों के लेखन में स्पष्टता दिखाई देने लगी. बच्चों को छेराछेरा में मिलने वाली इनाम राशि को छात्रों व पालक की सहमति से शाला के विभिन्न कार्यों में लगाया. धीरे-धीरे संस्कृतिक कार्यकम हेतु लगभग 15000 रूपये का समान जैसे - डी.वी.डी प्लेयर, कपड़े व छत्तीसगढ़ी श्रृंगार सामग्री आदि समान बच्चों के लिये क्रय किया. शिक्षिका श्रीमती हेमपुष्पा देवांगन सभी कार्यों में मदद करती हें. वे घर जाकर पालाकों से संपर्क कर विद्यार्थी की प्रोग्रेस रिपोर्ट के बारे में चर्चा करते हैं.

अध्यापन गतिविधियों की गुणवत्ता इसके लिए एक कार्ययोजना बनाई. शैक्षणिक खेल गतिविधियों का निर्माण किया. शाला में उपलब्ध मैदान में घास-फूस व‍ पत्थरो को हटाकर क्यारी निर्माण कराया. वृक्षारोपण जल्द ही कराने की सहमति बनी. गांव के सभी घरों से शाला विकास हेतु आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ. इस तरह लगभग 15000 रुपये एकत्र हुए. इन रूपये से शाला प्रबंधन समिति के सामूहिक प्रयास से क्यारी निर्माण, वृक्षारोपण, प्रिंट रिच वातावरण आदि का कार्य हुआ. संतोष जी के पिताजी ने भी 20,000/- रूपये दान में दिए. संतोष जी ने लगभग 2 महीने तक कक्ष में होने वाली गतिविधियों पर अध्ययन व चिंतन कर कमरे को सजाने की रूपरेखा तैयार की. जब पेंटर से पेटिंग्स कराया जाती थी तब वे उसके साथ 7 से 8 घंटे लगातार खड़े हो कर मार्गदर्शन देते थे. इस प्रकार स्‍कूल में शैक्षणिक खेल गतिविधि कक्ष का निर्माण हुआ. इस कक्ष में लर्निंग कार्नर बनाया गया है, जिसमें बच्चे बिना पुस्तक के ही अध्ययन कर सकते हैं. शिक्षको को समूह में गतिविधियां कराने तथा तैयारी करने का समय मिल जाता है. सांप सीढ़ी, लूडो आदि की गतिविधियों के माध्‍यम से अंग्रेजी, हिन्दी में रंगों, पशु-पक्षी, सब्जी-फलों के नामों आदि की जानकारी दी जाती है. गणित, अंग्रेजी हिन्दी आदि की गतिविधियों के लिये अलग-अलग लर्निंग कार्नर दीवारों पर बनाये गए हैं, जिसमे अलग-अलग विषयों से संबधित अध्यापन कार्य कराये जाते हैं. उदाहरण स्वरूप हिन्दी कक्ष में अक्षर, शब्द, अनुच्छेद एवं वाक्य बनाना, विलोम, समानार्थी शब्द, मुहावरे, पर्यायवाची, पेड़ सजाओ, माइंड मैप, आदि गतिविधियां कराई जाती हैं. ग्रामवासी सरल व मृदु स्वभाव के हैं. शिक्षकों का सम्मान करते हैं. 7 जनवरी वर्ष 2019 को शाला प्रांगण में ग्रामवासियों के सहयोग व शिक्षको के प्रयास से बाल मेला का आयोजन हुआ. स्वास्थ्य विभाग की चिरायु योजना में नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर का आयोजन हुआ, जिसमे ग्राम टेंगना व सामतरा के लगभग 235 लोगों ने बी.पी., शुगर व अन्य बिमारियों की जांच कराके निःशुल्क दवाईयों का लाभ लिया. बच्चों के द्वारा विभिन्न स्टाल लगाकर 29 हजार रुपये का समान बेचा गया. इससे बच्‍चों को लाभ-हानि, क्रय-विक्रय आदि सीखने मे मदद मिली. जिस वीरान खंडहर शाला में संतोष जी ने कदम रखा था वह नलजल योजना, कि‍चन गार्डन, खेल गतिविधि, प्रिंट रिच वातावरण, बालवाड़ी संचालन, शैक्षणिक नवाचार, नवोदय व आवासीय विद्यालयों में एवं शैक्षणिक गुणवत्‍ता का केन्‍द्र बन गई है.
अस्‍वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्‍वयं उनका सत्‍यापन नही किया है.

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