समस्त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्कृष्ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.
38 सालों से सरकारी स्कूल में बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहे पुजारी सर
उनके छात्र भी उनसे प्रेरणा ले रहे हैं. शिक्षा का दान महादान माना जाता है. बदलते परिवेश के साथ शिक्षा का व्यवसायीकरण हो चुका है. इसके बाद भी पुजारी सर, बिना किसी शुल्क के सरकारी मिडिल स्कूल में विगत 38 सालों से शिक्षा देते आ रहे हैं. उनकी इच्छा है कि जब तक शरीर है तब तक शिक्षा का दान करना है. इससे उनके छात्र भी प्रेरित हो रहे हैं.
बलौदा विकासखंड अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत कमरीद निवासी रामकृष्ण वैष्णव पुजारी महाराज उम्र 60 वर्ष पिता देवदास वैष्णव गांव के ही मिडिल स्कूल में विगत 38 सालों से निशुल्क शिक्षा देते आ रहे हैं. उनका जन्म 10 नवंबर 1963 को हुआ था. पुजारी महाराज स्वभाव से ही आध्यात्म से जुड़े हुए हैं. रामकृष्ण वैष्णव चांपा से 11वीं पास करने के बाद 1985 में शांतिकुंज हरिद्वार चले गए थे और लगभग दो साल यहां शिक्षा लेने के बाद जब वह गांव वापस लौटे तो उनके मन में बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का भाव जगा. वर्ष 1986 एवं 87 में पुजारी सर भाटापारा प्राथमिक स्कूल में निशुल्क शिक्षा देने पहुंचे. इसके बाद 1988 से निरंतर शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला कमरीड के स्कूल में संस्कृत विषय पढ़ रहे हैं. उनके द्वारा पढ़ाए गए बच्चे, डॉक्टर, इंजीनियर, लोको पायलट, शिक्षक, सरपंच, जनपद सदस्य, सहित अन्य पदों पर पदस्थ भी हैं.
पुजारी सर का कहना है कि वर्तमान समय में शिक्षा का पूर्ण रूप से व्यवसायीकरण हो गया है, जिसके चलते नि:शुल्क शिक्षा दान करने वाले शिक्षक कम ही मिल रहे हैं. उनका कहना है कि शिक्षा का दान सबसे बड़ा दान है. जिनके पास ज्ञान रहेगा तभी तो लोग अपने भविष्य के बारे में सोच विचार कर सकते हैं.
रामकृष्ण वैष्णव पहले मौसमी उतार-चढ़ाव होने की स्थिति में सर्दी जुकाम से प्रभावित रहते थे. परन्तुक उन्होंने योग गुरु बाबा रामदेव के योग एवं आसान की क्रियायें देखकर उन्हेंे योगाभ्यास करने की प्रेरणा मिली. अब वे सुबह 3 बजे उठकर नियमित रूप से योगासन करते हैं. इस बीच उन्हें दवा सेवन की जरूरत महसूस नहीं हुई. वहीं अपने छात्रों को भी नियमित रूप से योग करने की सलाह भी देते हैं.
रामकृष्ण वैष्णव की निस्वार्थ शिक्षा सेवा भावना को देखते हुए ग्रामीण उनका बेहद सम्मान करते हैं. गांव के अधिकांश आपसी एवं घरेलू झगड़ों का निपटारा वे बेहद सरल तरीके से करते हैं. गांव के लोग भी उनकी बातों को सहजता से ही स्वीकार कर लेते हैं. बड़े प्रेम और भाईचारे के साथ रहते हैं.
रामकृष्ण वैष्णव विगत करीब 4 दशकों से बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का काम कर रहे हैं. गांव में सभी लोगों का सम्मान भी करते हैं, साथ ही साथ शिक्षा के प्रति उनके समर्पण भाव से गांव के लोगों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है. शिक्षक दिलीप कश्यप एवं सुरेश कुमार मधुकर का भी कहना है कि पुजारी सर संस्कृत विषय की पढ़ाई कराने के साथ ही बच्चों को नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी देते हैं. इससे न केवल छात्र सीखते हैं, बल्कि उनसे स्कूल स्टाफ को भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
अस्वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्वयं उनका सत्यापन नही किया है.