उत्‍कृष्‍ट शिक्षकों की कथाएं
समस्‍त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्‍कृष्‍ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्‍वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.

छत्तीसगढ़ में नवाचार शिक्षा की नायिका दिव्यांग शिक्षिका हिमकल्याणी सिन्हा

इंसान शरीर से नहीं अपनी नकारात्मक सोच से अपंग होता है. स्टीफन हाकिंग, चलना- फिरना तो दूर, बोल भी नहीं पाते थे. उन्होंने विज्ञान की दुनिया को ही बदल डाला. अमेरिका की हेलेन केलर देख और सुन नहीं सकती थीं. वे दुनिया की पहली स्नातक बनी और शीर्ष लेखिका भी. पैरालिंपिक खेलों में भारतीय दिव्यांग देश को गौरवाविन्त करते हैं. ऐसे सितारे विरले ही होते हैं. इन्ही सितारों में शामिल हैं हमारे छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के साजा विकासखंड के ग्राम सैगोना प्राथमिक शाला की सहायक शिक्षिका हिमकल्याणी सिन्हा. 75% दोनों पैरो से दिव्यांग होने और जीवन में तमाम संघर्षो के बावजूद उन्होंने बच्चों की जिन्दगी संवारने में स्वयं को लीन कर दिया है. उनके आदर्श उनके पिताजी है जिन्होंने साथ में संघर्ष किया.

हिमकल्याणी सिन्हा बचपन से कभी चल नहीं पायीं, पर कभी अपनी कमजोरी को अपने कार्य में बाधा नहीं बनने दि‍या. वे ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से कार्य करती हैं.

तीन साल पहले की बात है, जब पूरी दुनिया में कोरोना महामारी का कोहराम मचा था, स्कूल बंद हो गए थे, औा बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी. तब हिमकल्याणी सिन्हा ने कोरोना गाइडलांइस का पालन करते हुए, गाँव में जाकर पालक-बालक सम्पर्क कि‍या. गाँव के पढ़े लिखें युवाओं को बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक किया. स्वयं के व्यय से गाँव में मास्क और सैनेटाइजर का वितरण किया. गाँव में उचित जगह का चुनाव करके बच्चों को नियमित मुहल्ला क्लास प्रदान किया. शिक्षा सचिव ने विभाग की पूरी टीम के साथ मुहल्ला क्लास का निरीक्षण भी किया. गाँव के काजल सिन्हा और मोना गंधर्व, शिक्षा सारथी के रूप में बच्चों की शिक्षा में सहयोग प्रदान करते थे. कोरोना का प्रकोप अत्यधिक बढ़ने पर मुहल्ला क्लास बंद हो गए. तब ऑनलाइन क्लास के माध्यम से बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखा. सैगोना ही नहीं बल्कि अपने निजि निवास बहेरा में भी हिमकल्याणी जी ने बच्चों को ऑफलाइन क्लास में जोड़े रखा. इस दौरान छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों के शिक्षक और बच्चों के साथ मिलकर कार्य किया.

कबाड़ से जुगाड़ करके अनेक टी.एल.एम. खिलौनो का निर्माण किया, जिनका वे नियमित रूप से कक्षा में उपयोग करती हैं. पी.एल.सी. के अंतर्गत तीन बिग बुक निर्माण किया है. आमाराइट प्रोजेक्ट पर कार्य किया. आर्गमेटेड रियालिटी से बच्चों का आभासी दुनिया से परिचय कराया. कई जन जागरूकता प्रेरणा गीतों की स्वयं रचना की और स्वर भी दिया. वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण आदि में भी वे सहभागिता देती हैं.

रुचिकर नवाचारी गतिविधियों का प्रदर्शन वे लगातार करती हैं. अलाउन्स पब्लिक स्कूल बेमेतरा में कबाड़ से जुगाड़ का प्रदर्शन किया. जिला स्तरीय टी.एल.एम. मेले में प्रदर्शन किया. समग्र शिक्षा कार्यालय से अनुभव शेयरिंग कार्यक्रम में दुर्ग संभाग से प्रतिभागी रहीं. वे पॉडकास्ट वीडियो भी बनाती हैं, जिससे हिंदी कहानी का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद कर प्रस्तुत करती हैं.

भाषा उत्सव के अंतर्गत बहुभाषावाद को प्रोत्साहित करने हेतु बच्चों के साथ उड़िया भाषा की अच्छी जानकारी रखने वाली सागरिका यादव और महाराष्ट्र, पुणे से लाला साहेब लक्ष्मण जाधव व वहाँ की शिक्षिका से मराठी भाषा में संवाद किया. हिमकल्याणी सिन्हा बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करती हैं. आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पढ़ाई लिखाई में सहयोग करती हैं. विभिन्न त्यौहार बच्चों के साथ मनाती हैं, जिससे बच्चें अपनी संस्कृति और परम्परा से परिचित होते हैं. इनकी शाला के बच्चे खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, निबंध लेखन, चित्र कला आदि में भाग लेते हैं और जीत भी हासिल करते हैं. बच्चों की कई रचनाएँ किलोल बाल पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं. हिमकल्याणी समय समय पर टाई बेल्ट, कॉपी पेन, कम्पास बॉक्स, आदि प्रदान कर भी बच्चों को प्रोत्साहित करती हैं.

हिमकल्याणी जी ने स्वयं के व्यय से ग्रीनमेंट प्रदान किया है. कक्षा में टाइल्स लगवाई हैं. खिलौना कार्नर लगवाया है. शाला को स्मार्ट शाला बनाने हेतु भी यथा संभव सहयोग किया है. हिमकल्याणी सिन्हा के कार्यों को शिक्षा के गोठ में स्थान मिला था. पढ़ई तुंहर दुवार पोर्टल पर दो बार हमारे नायक का स्थान मिला है. समग्र शिक्षा राज्य परियोजना कार्यालय द्वारा खिलौना निर्माण पुस्तिका में इनके खिलौना - गुल्लक को स्थान मिला है. साहित्य शोध मंथन द्वारा प्रकाशित पर्यावरण संरक्षण समय की मांग पुस्तिका में इनकी रचना को स्थान मिला है. बाल पत्रिका किलोल में इनकी कई रचनाओं को स्थान मिला है. नेशनल टीचर्स क्रियेटिव फोरम द्वारा हमारे नायक में सम्मानित हुई हैं. बाल रक्षक प्रतिष्ठान महाराष्ट्र और शिक्षा कला साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित हुई हैं.

हिमकल्याणी शिक्षा के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में भी सक्रिय हैं. कोरोना काल में कोरेन्टाइन सेंटरो में स्वयं जाकर प्रवासी मजदूरों के लिए दैनिक जरूरतों की सामग्री पहुँचाती थीं. गाँव में जरूरतमंदो के दरवाज़े तक जाकर मदद करती थीं. स्वयं रक्तदान करते हुए औरो को भी रक्तदान हेतू प्रेरित करती हैं. अपने जिले के साथ ही दूसरे जिले के जरुरतमंदो को भी मदद पहुंचाने का पूरा प्रयास करती हैं. इनके कार्यों को यूट्यूब लिंक और फेसबुक पेज पर देखा जा सकता है.

पहले उपके पापा ही ग्राम बहेरा से सैगोना तक स्कूल छोड़ने और लेने जाया करते थे. चार साल पहले उन्होने स्कूटी खरीदी और उसे मॉडिफाई करवाकर ट्राई साईकिल में तब्दील करवाया. अब अपनी स्कूटी से प्रतिदिन 14 किलोमीटर का सफर वे स्व यं तय करती हैं. पिछले 17 साल से वे बच्चों के जीवन को संवारने में तन-मन-धन से जुटी हैं.

हिमकल्याणी ने न सिर्फ अपने परिवार का अपितु गाँव, जिले और राज्य का नाम रोशन किया है. बिना किसी का सहयोग लिए खुद ही सारे कार्य करती हैं. सहज और सौम्य हिमकल्याणी के कार्यों ने अनेक शिक्षकों, विद्यार्थियों, समाजसेवियों और गणमान्य नागरिकों को प्रेरित किया है. उनके जीवन का एक ही लक्ष्य है - अच्छे वातावरण में बच्चों नई नई तकनीक से पढ़ाती रहें.

हिमकल्याणी को मिले प्रमुख सम्मान

  1. कोरोना योद्धा सम्मान
  2. उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान
  3. मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण शिक्षा दूत सम्मान
  4. Best Teacher अवार्ड
  5. पढ़ई तुहर दवार उत्कृष्ट शिक्षा योगदान सम्मान
  6. सावित्री बाई फूले सम्मान
  7. सृजनशील शिक्षक सम्मान
  8. अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मान
अस्‍वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्‍वयं उनका सत्‍यापन नही किया है.

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