पृथ्वी पर जीवन
इस अध्याय में 2 अलग-अलग बातें बताई गई हैं. पहली बात खाद्य श्रंखला के संबंध में हैं, और दूसरी बात पर्यावरण के कारण होने वाली जैव विविधताओं के संबंध में है. आइये हम इन दोनो बातों को पढ़ाने के तरीकों पर विचार करें.
खाद्य श्रंखला – यहां हमें बच्चों को यह बताना होगा कि खाद्य श्रंखला वास्तव में कोई श्रंखला, चेन या ज़ंजीर नहीं है, बल्कि इस दुनिया में जीवधारियों के बीच ऊर्जा कैसे प्रवाहित होती है, उसे बताने का एक तरीका है. यह तो सभी जानते हैं कि जीवधारियों को अपने जीवन के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है. यह ऊर्जा हमें अपने शरीर के दैनिक कार्यों जैसे चलना, उठना, बैठना, पाचन, उत्सर्जन आदि के लिये चाहिये. इसके अतिरिक्त शरीर के बढ़ने के लिये भी हमें ऊर्जा की आवश्यकता है. सभी जानते हैं कि संसार में ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य ही है. अत: जीवधारियों को भी यह ऊर्जा प्रारंभिक रूप में सूर्य से ही मिलती है. पौधे सूर्य की ऊर्जा को हवा में उपस्थित कार्बन-डाई-आक्सासइड गैस तथा जल की सहायता से स्टार्च में परिवर्तित कर लेते हैं. इस कार्य के लिये पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल नामक एक हरा पदार्थ आवश्यक है. क्लोरोफिल की सहायता से पौधों व्दारा प्रकाश की ऊर्जा का उपयोग करके जल और कार्बन-डाई-आक्साइड से स्टार्च बनाने की इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं. स्टार्च में यह ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में रहती है. इस स्टार्च को पौधे और पौधों को खाने वाले प्राणी भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं, और भोजन के पाचन से स्टार्च से रासायनिक ऊर्जा निकाल कर उपयोग करते हैं. इस प्रकार प्रारंभ में ऊर्जा पौधों व्दारा सूर्य से प्राप्त की जाती है. क्योंकि ऊर्जा का मूल स्रोत सूर्य ही है इसलिये सभी खाद्य श्रंखलाएं पौधों से ही प्रारंभ होती हैं. प्रत्येक खाद्य श्रंखला में पौधे उत्पादक होते हैं क्योंकि भोजन का उत्पादन वे ही करते हैं. पौधों को खाने वाले जीव प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता हैं क्योंकि वे अपना भोजन स्वयं नहीं बनाते बल्कि पौधों को खाकर उनसे भोजन और ऊर्जा प्राप्त करते हैं. जो जीव केवल पौधों को ही खाते हैं उन्हें शाकाहारी जीव कहते हैं. कुछ जीव अन्य जीवों को खाकर उनसे भोजन और ऊर्जा प्राप्त करते हैं. इन्हें मांसाहारी जीव कहते हैं. यह व्दितीय श्रेणी के उपभेक्ता हुए. इसी प्रकार त्रितीय श्रेणी के उपभोक्ता वे है तो मांसाहारी जीवों को खाते हैं. खाद्य श्रंखला पूरी तब होती है जब पौधों व्दारा बनाया गया भोजन वापस कार्बन-डाई-आक्साइड एवं जल में बदल जाता है और उसकी ऊर्जा निकलकर वातावरण में विलीन हो जाती है. जब कभी पौधे अथवा जीव अपने जीवन की क्रियाएं करते हैं तो वे भोजन से इसी प्रकार ऊर्जा प्राप्त कर जीवन की क्रियाओं में उसका उपयोग करते हैं. जीवों के मरने के बाद उनके शरीर का अपघटन हो जाता है. अपघटन का यह कार्य अनेक फफूंद एवं बैक्टीरिया आदि करते हैं. अपघटन की इस क्रिया में भी उनके शरीर के अवयवों से ऊर्जा निकल जाती है और अपघटन के अंत में कार्बन-डाई-आक्साइड तथा जल बन जाते हैं. इस प्रकार अपघटन करने वाले प्राणियों को अपघटक कहते हैं. प्रत्येरक खाद्य श्रंखला का अंत अपघटकों से ही होता है.
खाद्य श्रंखला को इस प्रकार समझाने के बाद आप बच्चों को किसी प्राणी का नाम बतायें और उस प्राणी से संबंधित खाद्य श्रंखला को पूरा करने का खेल बच्चों को खिलायें. बच्चों को आप खाद्य श्रंखला पर यह वीडियो भी दिखा सकते हैं –
खाद्य श्रंखला और अच्छी तरह समझाने के लिये आप बच्चों से अन्य खेल भी करा सकते हैं. उदाहरण के लिये एक बच्चे को पौधा बनायें, दूसरे को पौधे को खाने वाला कीड़ा बनायें, तीसरे को कीड़े को खाने वाला चूहा बनायें, आदि. इसके बाद बच्चों से खाद्य श्रंखला का खेल करायें.
आप बच्चों से खाद्य श्रंखला के पोस्टर और कोलाज आदि भी बनवा सकते हैं. यदि आपके पास इंटरनेट हो तो आप इस वेबसाइट पर जाकर बच्चों के साथ खाद्य श्रंखला का खेल भी खेल सकते हैं.
विविधता और अनुकूलन – यहां बच्चों को यह बताना होगा कि पर्यावरण के कारण जीव अपने शरीर के अंगों में परिवर्तन कर लेते हैं. इसे अनुकूलन कहते हैं एवं इससे विविधता उत्पन्न होती है. आप अपने आस-पास से उदाहरण दे सकते हैं कि किस प्रकार कैक्टस के पौधे में जल को एकत्रित करने के कारण उसका तना मोटा हो जाता है. इसी प्रकार कीड़ों, छिपकली, गाय, आदि के उदाहरण देकर विविधता और अनुकूलन को समझाया जा सकता है. बच्चों को रेगिस्तान के जीवों, ध्रुवीय जीवों, समुद्र के जीवों आदि का उदाहरण देकर अनुकूलन और विवधिता के बारे में और अच्छी तरह से समझाया जा सकता है. इस जीवों के बारे में आप उन्हें यह वीडियो भी दिखा सकते हैं-